देश की सभ्यताओं का
इतिहास अगर उठा कर देखें तो पता चलेगा कि नदियां हमारे देश के जीवन की प्राण
दायिनी जीवन रेखाएं थीं. शायद यही वजह थी कि नगरीय सभ्यताएं नदियों के किनारे
बसती चलीं गईं. जल के बिना सब सून हमेशा से ही रहा है.
इसीलिए नदियों को हमारे देश
में मां की उपमा दी गई और उन्हें सदियों से मां के रूप में ही पूजा जाता रहा है.
और जब बात गंगा की हो तो वह मां के दर्जे से भी बढ़कर देवी स्वरूपा हो जाती है.
मिथकों, कथानकों, परंपराओं और कर्मकांडों में हमेशा से आराध्या रही गंगा आज भी देश के बड़े
जनमानस के लिए पूजनीय है.
घर में शिशु के जन्म पर उसके मुंडन से लेकर मृत्यु पर
अंतिम संस्कार या अस्थि विसर्जन तक गंगा का अस्तित्व जीवन में निरंतर बना रहता
है. यह गंगा के प्रति भारतीयों की आस्था की पराकाष्ठा ही है कि देश के तीन शहरों
हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में प्रतिदिन संध्या के समय मां और देवी स्वरूप गंगा की
नियमित रूप से आरती की जाती है।
हाल की बनारस यात्रा
के दौरान मुझे बनारस (वाराणसी) में गंगा आरती को करीब से देखने का अवसर मिला. एक
पंक्ति में उस अनुभव को वर्णन करना हो तो इसे ‘अद्भुत, अलौकित और अविस्मरणीय’ ही कहा जाएगा. शाम के पांच
बजते-बजते मैं काशी विश्वनाथ के दर्शन कर चुका था.
मंदिर से निकल कर बनारस की उन
मशहूर पतली-पतली गलियों से निकल कर मैं बनारस के सबसे प्रसिद्ध और बड़े घाट दशाश्वमेध
घाट पर पहुंच चुका था. पौराणिक कथाओं के मुताबिक दशाश्वमेध घाट का निर्माण
ब्रह्मा जी ने भागवान शिव के स्वागत के लिए कराया था. एक दूसरी कथा के अनुसार भगवान
ब्रह्मा ने यहां दस-अश्वमेध यज्ञ के दौरान दस अश्वों की बलि दी थी.
सच जो भी आज बनारस
के आज का सच यह है कि इस घाट की सीढियों पर बने खास चबूतरों पर हर रोज संध्या के
समय गंगा जी की भव्य आरती की जाती है. शाम के साढ़े छह बज चुके थे और लोग
धीरे-धीरे घाट की सीढि़यों और आस-पास की बिल्डिंगों पर जमने शुरू हो गए. आरती ठीक
शाम 7 बजे शुरू होती है. आरती के लिए घाट की सीढि़यों पर कुछ खास चबूतरे बनाए गए
हैं जिन पर पांच-सात-ग्यारह की संख्या में प्रशिक्षित पण्डों द्वारा पूरे
विधि-विधान से तकरीबन 40 से 45 मिनट तक आरती की जाती है.
मैंने गंगा आरती को ठीक
से देखने के लिए घाट के ठीक सामने गंगा में किनारे खड़ी बोट को चुना. यहां बोट के
मालिक 100 से 150 रु. प्रति व्यक्ति के हिसाब से बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था
कर देते हैं. हालांकि फोटोग्राफी के लिहाज से ये जगह बिल्कुल गलत है....क्योंकि
सामने घाट पर लगी हैलोजन लाइटें कैमरों को चकाचौंध कर देती हैं.
इसलिए यदि आप
बढि़या तस्वीरें उतारना चाहते हैं तो ठीक घाट पर चबूतरों पर पुजारियों के बगल में
बैठें. गंगा आरती के दौरान ये पुजारी सभी दिशाओं की पूजा के दौरान अपने स्थान पर
घूमते हैं सो आपको बेहतर एंगल मिल जाएंगे. खैर साते बजने से कुछ पहले ही घाट के
चबूतरों पर लाउड स्पीकरों से भजन बजने शुरू हो गए जिससे पूजा के लिए बहुत ही
सुरमयी माहौल तैयार होने लगा.
अब तक सभी पुजारियों के पूजा के स्थान पर लकड़ी के
बड़े तख्तों पर गंगा की तस्वीरों के सामने शंख, अगरबत्तियां, धूप, दीप, लंबे पीतल के सर्पमुखी दिए, फूल, जल के पात्र, याक के पूंछ से बने पंखे, मोरपंख और तमाम पूजा
सामग्री सजायी जा चुकी थी. वहीं इन पूजा के लिए बने मंचों के इर्द-गिर्द पर्यटकों
में हर धर्म, जाति, संप्रदाय और देश के लोग खचाखच भर चुके थे. इनकी बीच कुछ विदेशी चैनलों के
डाक्यूमेंट्री बनाने वाले लोग अपने कैमरों को महत्वपूर्ण कोणों पर फिक्स करते
हुए दिखाई दे रहे थे. सबके आंखों में एक अजीब से कौतूहल. ठीक सात बजे मंत्रोच्चारण
के साथ आरती की प्रकिया शुरू हो गई.
मेरे सामने 7 पुजारी एक जैसे भगवा कुर्ते और
चटक पीली रेशमी धोतियों में अपने-अपने मंचों पर खड़े होकर गंगा की स्तुति
में मंत्रोच्चारण कर रहे थे. इसके बाद एक साथ शंखध्वनि के साथ अगरबत्तियों और घंटियों से चारों दिशाओं की पूजा शुरू हो गई.
ये सारा दृश्य इतना सम्मोहक और अद्भुत था कि मैं कुछ पलों के लिए तस्वीरें लेना
भूल गया. सातों पुजारियों की भाव भंगिमाएं और पूजा के सभी चरण एक शानदार
कोरियोग्राफी का नमूना थे.
मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि पूरे विश्व में शायद
ही किसी नदी की इतनी भव्य और मनमोहक पूजा होती होगी. इसके बाद मोरपंख, याक की पूंछ, पुष्पों आदि से बारी-बारी
गंगा की पूजा की जाती है. ये पूरी प्रकिया तकरीरबन 40 मिनट तक चलती है और अंत में
पुजारी मंच पर पात्र में रखे जल को गंगा के जल में प्रवाहित कर देते हैं। इसी के
साथ गंगा आरती संपन्न होती है. आरती खत्म होते-होते पूरा दृश्य इतना भावप्रण हो
जाता है कि भक्त सुध-बुध सी खोकर घाट पर बज रहे संगीत में खो जाते हैं.
आप चाहे धर्म में
आस्था रखें या न रखें मगर ये एक अनुपम अनुभव है. आरती खत्म होते-होते वहां मौजूद
हर शख्स आध्यात्म की और एक अद्भुत खिंचाव महसूस करता है. गंगा कहीं न कहीं जीवन
के मूल प्रश्नों की ओर हमारा ध्यान खींचती है जिनके उत्तर सिर्फ हम खोज सकते
हैं. दुनिया के इस सबसे प्राचीन शहर में गंगा की संध्या मेरी लिए अविस्मरणीय
रहेगी. अगली पोस्ट में ‘सुबह-ए-बनारस’ की बात होगी
जिसमें गंगा की प्रात: आरती और अस्सी घाट के मिज़ाज पर बात होगी.
आपको यह पोस्ट
कैसी लगी इस पर कुछ शब्द जरूर लिखने का कष्ट कीजिएगा. अगली पोस्ट लिखने के लिए
हौसला बढ़ जाता है. :)
बेहतरीन लेखन
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा।
शुक्रिय कोठारी जी...अपनी प्रतिक्रिया देते रहें. धन्यवाद :)
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