मानूसन के
दिल्ली आने का वक़्त हो चुका था. दिल्ली के लोग बारिश की बूंदों के शामियाने
में चलने के लिए बेताब हो रहे थे और मानसून था कि बस आंय-बांय देने में जुटा था.
जुलाई का दूसरा सप्ताह खत्म होने को था और दिल्ली में गर्मी अपना रौद्र रूप धरे
हुए थी. रोम रोम से फूटती पसीने की गंगा में मानो शरीर रोज कई बार डूबता और राहत
की बूंदों के लिए तड़फता. इधर ब्लॉगिंग की दुनिया में मानसून की और भी अधिक
शिद्दत से प्रतीक्षा की जा रही थी. उन भीगी और सुहावनी तस्वीरों की बात ही कुछ और
होती है. इस वक़्त कोई पहाड़ों की ओर यात्रा पर निकले तो समझ आता है. मगर हमारी
किस्मत हमें गर्मी और उमस के लिए बदनाम कोलकाता ले जा रही थी. कोलकाता और
बारिश का अब तक इतना ही कनेक्शन समझा जाता था कि बारिश में ये शहर और भी अधिक अस्त
व्यस्त और गंदा हो जाता है. मगर कुछ तो होगा यहां जो इसे ‘सिटी ऑफ जॉय’ कहा जाता है. सच मानिए पिछले सात-आठ सालों में
कोलकाता तेजी से बदला है. हां, महानगरीय जीवन की समस्याएं अभी
भी वहां हैं मगर बारिश अब इस शहर की जिंदगी को दूभर नहीं बनाती. हम जिस दिन
कोलकाता पहुंचे रिमझिम फुहारों ने हमारा स्वागत किया और चार दिन की यात्रा के
अंतिम दिन कोलकाता छोड़ते वक्त मूसलाधार बारिश ने हमें विदा किया. कोलकाता में
घूमते-टहलते अपने मोबाइल में कुछ तस्वीरें कैद कर लीं. कोलकाता में बारिश की चंद बूंदें
पड़ते ही शहर की तासीर ही बदल जाती है....सब कुछ सुहावना, उमस भरी यंत्रणा से जैसे एक पल में मुक्ति.....तब बनता है आमार
सोनार बांग्ला।! ये तस्वीरें मुझे उस हसीन
कोलकाता की हमेशा याद दिलाएंगी:
हावड़ा ब्रिज हावड़ा और कोलकाता को आपस में जोड़ता है और इस सिटी ऑफ जॉय से हमारी मुलाकात कराता है. इस ब्रिज से जब हम गुज़रे तो ऊपर से बारिश की फुहारों ने स्वागत किया.
ये तस्वीर मैंने जतिनदास पाार्क
मेट्रो स्टेशन के बाहर खींची थी.
हावड़ा ब्रिज तो जैसे कोलकाता की शान
है दूर से हमेशा अपनी ओर बुलाता सा नज़र आएगा....कोलकाता प्रवास के दौरान कई दफ़ा
इससे गुज़रना हुआ और जब भी गुज़रे मानसून बस इसके ऊपर से अपना प्यार बरसाता नज़र
आया.
बारिशें जहां शहर के बाशिंदों के लिए
राहत की सांस लेकर आती हैं वहीं सड़क पर काम धंधे के लिए निकले लोगों के लिए थोड़ी
तकलीफ़ें भी. मैं सुबह के नाश्ते की तलाश में कोलकाता में मुख्यमंत्री के आवास
के पास से गुज़र रहा था तो बारिश से लगे जाम में दूसरी और कोलकाता की आइकॉनिक पीली
टैक्सी चमक रही थी. अपनी कार की खिड़की से मैं देर तक उस ड्राइवर को देखता रहा और
फिर जाम से निकलने की जुगत भिड़ाते उस ड्राइवर की तस्वीर लेनी ही पड़ी. पीली टैक्सी
तो जैसे कोलकाता की लाइफ-लाइन है.
ये दोपहर का वक़्त था. क्लब से
दोपहर का खाना खाकर हम पार्क स्ट्रीट की ओर निकले. एक सिग्नल पर गाड़ी रुकी तो
मेरी दांई ओर मुझे एक बहुत पुरानी इमारत नज़र आई जिस पर गुज़रा वक़्त अपनी छाप
खूब छोड़ कर गया था. खंडहर होती इमारत से भी जिंदगी फूट रही थी ...कि तभी एक बुजुर्ग
बारिश में छाता लेकर उधर से गुज़़रे. कैमरा को जैसे उसका सब्जेक्ट मिल गया था.
जो तस्वीर बनी वो बता रही थी गुज़रता वक्त न सिर्फ इमारतों बल्कि इंसानों पर भी
अपना असर करता है. चीजें बदलती हैं, पहले जैसी नहीं रहतीं ....मगर फिर भी जिंदगी जीने का
हौसला बनाए रखती है.
इस तस्वीर को सुप्रसिद्ध ब्लॉगर प्रसाद जी ने अपने ब्लॉग Desi Traveller पर http://desitraveler.com/chasing-monsoon-travel-bloggers-chase-monsoon/ नाम से एक अनूठी पोस्ट में शामिल किया है. जिसमें दुनिया भर के 25 ट्रैवल ब्लॉगर्स ने अपनी मानसून की ताजा खींची गई तस्वीरों को साझा किया है.
नीचे की तस्वीर 'द बंगाल क्लब' के मेरे कमरे की खिड़की से खींची गई
है. उस रोज अल सुबह कमरे से बाहर बारिश की आवाज ने नींद खोल दी. खिड़की पर बारिश
की बूंदें टकरा कर आवाजें जो लगा रही थीं. मैंने उठ कर खिड़की के उस पार झांका तो
बस देखता ही रह गया. खिड़की के बाहर सड़़के उस पार वाली इमारत जैसे पानी में बही
जा रही हो. मुझे बारिश की कारिस्तानी और अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. बारिश में
गज़ब का जादू है ये असली को नकली और नकली को असली बना कर दिखा सकती है.
ये तस्वीर भी उसी सुबह की है...चाय
की चुस्की लेते लेते अपने रूम से जुड़ी बैठक की खिड़की खोली तो बारिश अभी भी हो
रही थी. सामने की इस बड़ी इमारत में लोग काम पर जाने की तैयारी करते नज़र आ रहे
थे. एक भीगे से दिन में सुबह की भाग-दौड़ अलग ही होती है.
आज कोलकाता में आखिरी दिन था. हमें
ट्राम की सवारी करनी थी सो ड्राइवर ने हमें धरमतल्ला छोड़ दिया और वो खिदिरपुर
जाकर हमारा इंतजार करने लगा. ट्राम की यात्रा कर हम वापस अपनी गाड़ी में पार्क स्ट्रीट
की ओर बढ़ने लगे. कोलकाता में स्ट्रीट फूूड़़ की कोई कमी नहीं....आप जिधर नज़र
घुमाएंगे नुक्कड़ों और पटरियों पर आपको सैकड़ों ठिए और गुमटियां नज़र आ जाएंगे.
यही आलम कोलकात की सुबहों का भी है. कोलकाता के इन अड्डों पर गरीब से गरीब आदमी के
लिए भी सस्ता भरपेट भोजन आसानी से मिल जाता है.
विक्टोरिया मैमोरियल को बारिश में
देखने का अलग ही मजा है. मैं जिस वक़्त इस एतिहासिक इमारत को देख रहा था...बारिश
तो नहीं ही हुई मगर काले बादलों ने लगातार इस इमारत के आस-पास डेरा डाले रखा.
धरमतल्ला के नज़दीक एक व्यस्त
चौराहा. यहीं पास ही केसी दास के मशहूर रसगुल्लों की दुकान भी है.
सियालदाह स्टेशन छोड़ते ही ट्रेन से
खूब हरे भरे ट्रैक और दृश्य दिखने लगते हैं. सियालदाह के बाद दुर्गापुर तक हमें
जमकर हरियाली देखने को मिली. ये रास्ता अपनी खूबसूरती के लिए यूं भी बहुत मशहूर
है. ये कोलकाता में खींची गई आखिरी तस्वीर थी.
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