यायावरी yayavaree: सुबह-ए-चार मीनार : A morning with Char Minar -1

गुरुवार, 7 जून 2018

सुबह-ए-चार मीनार : A morning with Char Minar -1

सुबह-ए-चार मीनार

A morning with Char Minar 

कहते हैं किसी शहर को ठीक से समझना हो तो उसके साथ नींद से जागो, उसे महसूस करने के लिए उसके साथ ही सुबह की ताज़ा हवा में सांस लो. वरना दिन चढ़ने के साथ ही शहर बहरूपिया हो जाता है. ये देखना बेहद दिलचस्‍प होता है कि एक अलसाया हुआ, देर तक करवटें बदलता हुआ 400 साल पुराना शहर जब उठता है तो अपने बिस्‍तर की सिलवटें कैसे हटाता है? सुबह के उन कुछ घंटों में शहर जैसे रात की खामोशी के शून्‍य से बाहर निकल कर एक बार फिर बहुत तेजी से खिल जाना चाहता है. यही वो वक्‍़त है जब आप शहर की सही नब्‍ज़ को टटोल सकते हैं. यूं तो ये बात हर शहर पर लागू होती है मगर बात हैदराबाद और वो भी पुराने हैदराबाद के चार मीनार इलाके की हो तो और भी ज्‍यादा सटीक बैठती है.

Char Minar, Hyderabad
अप्रैल की उस एक सुबह चार-मीनार दिखाने की जिम्‍मेदारी ब्‍लॉगर मित्र @travelkarmas ने ले ली. इससे बेहतर क्‍या हो सकता था कि एक हैदराबादी की नज़र से उसका शहर देख सकूं. 

तय हो गया था कि चार-मीनार इलाके का दौरा सुबह-सुबह किया जाएगा. हैदराबाद की यात्रा के दौरान मेरा ठिकाना बेगमपेट इलाके में होटल आईटीसी, काकातिया था. ये हैदराबाद में आखिरी दिन था और सुबह होटल से निकलते-निकलते 7 बज गए. खैर, अभी भी वक्‍़त था. हमने चार-मीनार जाने के लिए सिकंदराबाद की ओर से चार-मीनार की तरफ़ जाने का रास्‍ता चुना. इस तरह हम हुसैन सागर लेक की परिक्रमा कर रहे थे. 

सिकंदराबाद और हैदराबाद थे तो दो अलग-अलग शहर मगर दोनों एक साथ मिलकर अब एक महानगर का अहसास कराते हैं. विकास कुछ इस तरह हुआ है कि अब इस महानगर को मोतियों का शहर, नवाबों का शहर, बिरयानी का शहर या साइबराबाद के नाम से भी जाना जाता है. शहर के तमाम इलाकों की सूरत और सीरत दोनों ही लखनऊ से बहुत मिलते हैं. किसी अनजान शख्‍़स को यदि आंख बंद कर शहर के बीचों-बीच छोड़ दिया जाए तो उसे लखनऊ में होने का मुग़ालता हो सकता है. 

हम धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ रहे थे और रास्‍ते में हैदराबाद के पुराने इलाके एक-एक कर अपने किस्‍से कहने के लिए आंखों के आते रहे. हम हैदराबाद में सरदार पटेल मार्ग देखकर चौंके कि सरदार पटेल की कर्मभूमि तो आम-तौर पर गुजरात और उत्‍तर भारत ही रही है फिर हैदराबाद में सरदार पटेल मार्ग क्‍यों? जवाब जानने की बेचैनी में चलती गाड़ी में ही इस सवाल के उत्‍तर के लिए गूगल बाबा को खंगाल डाला और जो जवाब मिला वो बेहद दिलचस्‍प था.

Old Map of Hyderabad
हैदराबाद का नक्‍शा Pic: Madras Courier  
दरअसल हुआ यूं कि भारत की आज़ादी के समय लॉर्ड मांउटबेटन ने भारत की 565 रियासतों को भारत या पाकिस्‍तान के साथ जुड़ने का विकल्‍प दिया और उनमें से ज्‍यादातर बिना किसी ज्‍यादा हील-हुज्‍ज़त के अपने मुस्‍तक़बिल का फैसला इधर या उधर होकर कर रहे थे. मगर हैदराबाद के आखिरी निज़ाम उस्‍मान अली खान के मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. वो ना तो हिंदुस्‍तान के साथ आना चाहता था और ना ही पाकिस्‍तान के साथ. ये बात सभी जानते हैं कि निज़ाम के राज में हैदराबाद एक दौलतमंद राज्‍य था जिसमें उसकी अपनी फौज़, अपना हैदराबादी रुपया चलता था और निज़ाम दुनिया का सबसे अमीर आदमी था. फैसला लेने के लिए और वक्‍़त के नाम पर निज़ाम एक साल तक मामले को लटकाता रहा. उस समय के गृह मंत्री सरदार पटेल निज़ाम के मंसूबों को भांप चुके थे. 

ये जाहिर हो चुका था कि निज़ाम के ख्‍़वाब ओस्‍मानिस्‍तान नाम का अलग देश बनाने के हैं और उसकी नज़दीकी और हमदर्दी पाकिस्‍तान के साथ है. यही नहीं राजाकारों के रूप में वहां कट्टर इस्‍लामी ताकतें भी अपना सिर उठा रही थीं. हिंदुस्‍तान के बीचों-बीच एक कट्टर इस्‍लामी देश भला कैसे बनने दिया जा सकता था. बस अब सरदार पटेल का धैर्य जवाब दे गया और हैदराबाद के भारत में विलय के लिए फौज़ को हैदराबाद को कब्‍जे में लेने का आदेश दे दिया गया. 

ऑपरेशन का कोड नेम था ऑपरेशन पोलो  और 13 सितंबर, 1948 को भारतीय फौज़ ने हैदराबाद में प्रवेश किया. निज़ाम टेढ़ी खीर था सो हैदराबादी फौज़ और राजाकारों के साथ भारतीय फौज़ से टक्‍कर ली. मगर 100 घंटों तक चली जंग के बाद निज़ाम ने हथियार डाल दिए और रेडियो पर आकर सीज़फायर की गुहार लगाई और कुछ दिनों बाद पटेल से मुलाक़ात में निज़ाम ने भारतीय संघ सरकार के साथ पूरी वफ़ादारी निभाने का वायदा किया. इस तरह हैदराबाद हिंदुस्‍तान का हिस्‍सा बना.

हैदराबाद का आखिरी निज़ाम सरदार पटेल के सामने सरेंडर करते हुए
सरदार पटेल के सामने सरेंडर करते हुए आखिरी निज़ाम      Pic Courtesy: Quora.com 
निज़ाम की हेकड़ी के किस्‍से जितने दिलचस्‍प हैं उतने ही उसकी रईसी और निज़ामत के दौर के. कुछ और इलाकों से गुज़रते हुए हम आखिरकार चार मीनार इलाके में आ पहुंचे. चारों तरफ बाज़ार ही बाज़ार. अब ये जानना भी एक दिलचस्‍प बात थी कि इस भरे-पूरे बाज़ार के अधिकांश हिस्‍से निज़ाम के समय से चले आ रहे हैं और निज़ाम ने अपने लोगों को ये दुकानें मुहैया कराई थीं. अभी सुबह का वक्‍़त था सो पूरा बाज़ार बंद था बस जहां-तहां पटरी पर अपना कारोबार करने वाले लोग अपना ठिया जमाने में लगे थे. बस कोई दो घंटे बाद ही इस जगह को भीड़ से भर जाना था. गाड़ी किनारे लगा हमने चार-मीनार का रुख़ किया. चार मीनार के बनने की कहानी को समझने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा और पीछे जाना होगा. 

दरअसल 1463 में कुली कुतुब-उल-मुल्‍क ने आज के हैदराबाद के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर गोलकोंडा किले का निर्माण किया और तेलंगाना क्षेत्र के विद्रोह को दबा दिया. नतीज़तन मुग़लिया सल्‍तनत द्वारा उसे इस क्षेत्र का सूबेदार या प्रशासक बना दिया गया. मगर, 1518 तक वह बहमनी सल्‍तनत से स्‍वतंत्र हो गया और खुद को सुल्‍तान घोषित कर दिया और कुली कुतुब शाह के नाम पर कुतुब शाही सल्‍तनत की नींव रख दी. गोलकोंडा में पानी की बहुत कमी थी इसलिए 1589 में कुली कुतुब शाह के पोते मुहम्‍मद कुली कुतुब शाह ने अपनी राजधानी को गोलकोंडा से आज के हैदाराबाद स्‍थानांतरित करने का फैसला लिया. फिर 1591 में चार मीनार का निर्माण शुरू हुआ. 

कहते हैं कि चार मीनार दरअसल ख़ुदा का शुक्रिया अदा करने के लिए बनवाई गई थी. गोलकोंडा में पानी की कमी से हैजा फैल गया था और हजारों लोग मारे गए थे. इस दौरान मुहम्‍मद कुली कुतुब शाह हैदराबाद में एक जगह पर इस महामारी को रोकने के लिए रोज अल्‍लाह से प्रार्थना करता रहा और जल्‍दी ही अल्‍लाह ने उसकी प्रार्थना सुन भी ली. जिस जगह मुहम्‍मद कुली कुतुब शाह प्रार्थना करता था ठीक उसी जगह उसने ख़ुदा का शुक्रिया अदा करने के तौर पर इस मीनार का निर्माण करवाया. 

इस तरह चारमीनार हैदराबाद की पहली इमारत थी. कुछ ऐसा ही दिलचस्‍प किस्‍सा हैदराबाद शहर के नामकरण का भी है. माना जाता है कि हैदराबाद शहर का नाम मुहम्‍मद कुली कुतुब शाह और स्‍थानीय तेलगु वेश्‍या भागमती के इश्‍क से पैदा हुआ. हुआ यूं कि शाह ने भागमती के नाम पर शहर का नाम भाग्‍यनगर कर दिया. बाद में भागमती ने इस्‍लाम अपना लिया और अब उसका नाम हैदर महलहो गया. अब एक बार फिर शाह ने शहर का नाम बदलकर हैदराबादकर दिया. हालांकि इतिहासकारों में इस किस्‍से की सत्‍यता को लेकर मतभेद है.

चार मीनार
और जैसा कि इतिहास में हमेशा होता रहा है, कोई एक सल्‍तनत हमेशा के लिए नहीं होती. कुतुब शाही सल्‍तनत भी 1687 में मुगल बादशाह औरंगज़ेब द्वारा हैदराबाद पर कब्‍जा करने के साथ ही ख़त्‍म हो गई. औरंगजेब ने अपने अपने गवर्नर को इस इलाके का शासक नियुक्‍त कर दिया और उसे निज़ाम-उल-मुल्‍क का नाम दिया. मुग़लिया सल्‍तनत भी कौन सी हमेशा के लिए ताक़तवर रहने वाली थी. 1734 में कमज़ोर होती मुग़लिया सल्‍तनत से निज़ाम आसफ़ जाह ने आज़ादी हासिल कर ली. 

कहते हैं कि एक बार किसी शिकार अभियान पर निज़ाम को एक संत मिले जिन्‍होंने निज़ाम को कुलचे दिए और कहा कि जितने खा सकते हों खा लें. निज़ाम केवल 7 खा पाए. तब संत ने भविष्‍यवाणी की कि उसकी सल्‍तनत 7 पीढियों तक चलेगी. हुआ भी बिल्‍कुल ऐसा ही. निज़ाम की सात पीढियों ने हैदराबाद पर राज किया. संत की इसी बात के सम्‍मान में निज़ामों के झंडों में कुलचे देखे जा सकते हैं. फिर 1763 में मराठाओं से हारकर और मैसूर के शासक टीपू सुल्‍तान के डर से हैदराबाद ने अंग्रेजों के साथ संधी कर प्रिंसली स्‍टेट का दर्जा हासिल कर लिया. 

अब हुकूमत अंग्रेजों के अधीन थी. इस तरह आज तक शहर का नाम हैदराबाद चला आ रहा है. शहर को ग्रिड प्‍लान पर बसाया भी बड़े सलीक से गया था. इसीलिए फ्रेंच ट्रेवलर जीन-बैप्‍टाइज़ टैवर्निअर ने हैदराबाद की तुलना ओरलिअंस से की थी. और बाद में हैदराबाद के चार मीनार की तुलना पेरिस के आर्क डि ट्रायम्‍फ से की गई और इसे आर्क डि ट्रायम्‍फ ऑफ ईस्‍ट के नाम से भी जाना गया.

तो उस रोज मैं आर्क डि ट्रायम्‍फ ऑफ ईस्‍ट यानि कि चार मीनार के ठीक सामने खड़ा था. इस इमारत को देखने की ख्‍वाहिश बरसों से थी. जब भी इसका जि़क्र हुआ आस-पास के लोगों ने इस इलाके को भीड-भड़क्‍के वाला और चार मीनार को सिर्फ चार खंभों की इमारत कहकर इसे तवज्‍़जो नहीं दी. मगर मुझे ऐसी विरासतें हमेशा से अपनी ओर खींचती रही हैं क्‍योंकि वे एक लंबे इतिहास के जीते-जागते गवाह के रूप में हमारे शहरों के बीचों-बीच खड़ी हैं. 

चार मीनार हैदराबाद शहर के बीचों-बीच बनाई गई एक चौकोर इमारत है जिसकी हर साइड 20 मीटर है और बड़े मेहराब चार अलग-अलग रास्‍तों की ओर खुलते हैं. इसके चारों कौनों पर चार मीनारें हैं जो 56 मीटर उँची हैं जिनके ऊपर छोटे छोटे गुंबद हैं. इन मीनारों के भीतर ऊपर चढ़ने के लिए सीढि़यां हैं. इन दिनों पर्यटक केवल पहली मंजिल तक ही जा सकते हैं. बाहरी दीवारों पर सुंदर नक्‍काशी आकर्षित करती है. अन्‍य खास इस्‍लामी इमारतों से अलग इसकी मीनारें मुख्‍य ढ़ांचे के अंदर ही बनी हैं. मीनार मेंं 149 सीढियां हैं. ये इमारत भारतीय-इस्‍लामी वास्‍तुकला का अनुपम उदाहरण है जिस पर पर्शियन प्रभाव भी साफ-साफ देखा जा सकता है. जहां मेहराब और गुंबद इस्‍लामी प्रभाव को दर्शाते हैं वहीं मीनारें पर्शियन कला से प्रेरित हैं. छतों में फूलों की आकृतियां, झरोखे और बाहरी दीवारों पर हिंदू प्रभाव देखे जा सकते हैं.


तो साहब, सुबह के ठीक साढ़े सात बज चुके थे और चार-मीनार के आस-पास हलचल आहिस्‍ता-आहिस्‍ता बढ़ चली थी. हांलाकि अभी ज्‍यादा लोग यहां नहीं थे फिर भी अकेले चार मीनार को कैमरे में कैद करने के लिए बहुत जद्दोज़हद करनी पड़ रही थी. हमें पास ही पहली मंजिल पर एक दुकान तक जाती सीढि़यां नज़र पड़ीं. यहां से पूरा चार-मीनार कै़द किया जा सकता था. मग़र हवा में लटकती तारों का ताम-झाम यहां भी तस्‍वीर के मिजाज़ को बिगाड़ रहा था. 

इस वक्‍़त मैं अपने दो कैमरों के साथ- साथ @travelkarma के मिरर लैस सोनी कैमरे पर भी हाथ आजमा रहा था. अच्‍छा कैमरा है. गरमियों के दिनों में हैदराबाद का आसमान आग उगलता है मग़र सुबह के इस वक्‍़त में थोड़ी मासूमियत अभी भी बाकी थी. मैं अलग-अलग कैमरों से तस्‍वीरें लेता रहा. इसी दौरान चार मीनार के चारों ओर दुकानें जैसे नींद से जागने लगी थीं.

चार-मीनार से लगता हुआ लाड बाजार चूडियों पर नायाब कारीगरी के हजारों तरीकों के साथ ग्राहकों को लुभाता है. और दाम...बस वो मत पूछिए....जी करता है कि पूरा बाज़ार खरीद लें. 

एक चूड़़ी बेचने वाले बुजुर्ग ने अपनी ओर बुलाया तो उधर ही जा खड़ा हुआ. वो रंग-बिरंगी चूडियां मन मोह रही थीं सो आधा दर्जन खरीद लीं. हां, मोल-भाव यहां भी है तो साहब जितना दाम बताया जाए...मोलभाव के लिहाज़ से सीधा आधा कर दें और फिर बात पौने पर तय कर सौदा पक्‍का कर लें. चार-मीनार के आस-पास बरसातियों के नीचे आबाद होने वाली चूडि़यों की सैकड़ों अस्‍थाई दुकानें हैं जहां 75 रुपए से लेकर सौ-सवा सौ में हाथ के सुंदर कड़े और चूडि़यों के सैट मिल सकते हैं. इनमें थोड़ी और बेहतर क्‍वालिटी और सफाई का काम चाहिए तो लाड़-बाजार की दु‍कानों का जायजा लें. चूडियों से निपट लें तो लाड बाजार और मोती चौक के बीच परफ्यूम मार्केट से इत्र की एकाध शीशी लेना न भूलें. इस बाजार में कुछ दुकानें तो सैकड़ों साल पुरानी हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी यूं ही चली आ रही हैं.




तब तक कुछ और तस्‍वीरें चार-मीनार से... 


और हां, जाने से पहले बताते जाइएगा कि पोस्‍ट कैसी लगी :)  

चार मीनार के पास चूडियां  

अल सुबह बाज़ार बस खुलने से कुछ वक्‍़त पहले 

Morning at Char Minar
चलो शुरू करें जिंदगी का एक और दिन 
चलो जम गई दुकान...आपको क्‍या चाहिए साहिबान 

कुछ ऐसी खामोशी से उठता है शहर 

पहली मंजिल से गुंबद का भीतरी भाग

Beautiful Char Minar from Inside, चार मीनार अंदर से
गुंबद के भीतर छत में भारतीय वास्‍तुकला की छाप 

Beautiful Char Minar from Inside, चार मीनार अंदर से

Beautiful Char Minar from Inside, चार मीनार अंदर से
गुंबद का भीतरी भाग

पहली मंजिल की ओर ले जाने वाली सीढियां 


View of Makka Maszid from Char Minar
चार मीनार की पहली मंजिल से मक्‍का मस्जिद का विंहगम दृश्‍य

चलो चलें काम पर


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8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया आपका. अगली किस्‍त भी जरूर पढिएगा...क्‍योंकि सुबह-ए-चार मीनार तभी मुकम्‍मल होगी 😊

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  2. अगले किस्त के इंतजार में,,, काफी रोचक और सूचनात्मक बना कर लिखा है,

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    1. बहुत-बहुत धन्‍यवाद. अगली किस्‍त आज शाम ही 😊

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  3. I have been to Charminar on a quick visit for pearls long time ago. It was late evening and pretty crowded. Yet to explore it as you have done ��

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  4. उत्तर
    1. Thanks sir, Second part is on blog now. Plz read and tell me how did you find सुबह-ए-चार मीनार :)

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