चार मीनार के आस-पास बसी है बड़ी दिलचस्प दुनिया : सुबह-ए-चार मीनार 2
दोस्तो पिछली किस्त में आपने सुबह चार मीनार की यात्रा पर निकलने, ऑपरेशन पोलो की बदौलत हैदराबाद के भारत का अभिन्न अंग बनने की कहानी, हैदराबाद के भाग्यनगर से हैदराबाद बनने का किस्सा, चार मीनार के बनने की
वजह, आसफ़़ जाही सल्तनत की सात पुश्तों की कहानी, चार मीनार इलाके की सुबह का आलम और लाड बाज़ार में चूडि़यों की रौनक के बारे में पढ़ा. अब आगे....
नीमराह बेकरी के बिस्कुटों और चाय का जवाब नहीं
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नीमराह बेकरी के बिस्कुट और चाय |
सुबह होटल से
बिना कुछ खाए पिए निकल आने के बाद अब तक चाय की तलब हो उठी थी. सुबह की चाय के
अनुभव को और ज्यादा यादगार बनाने के लिए मेरी मेजबान मित्र ने इसका ठिकाना पहले
से सोच रखा था. कुछ ही देर में हम चार मीनार से चंद कदम के फ़ासले पर नीमराह
बेकरी में थे. यहां बेकरी के ताजा बिस्कुटों के साथ ईरानी चाय का अपना अलग
मज़ा है.
चाय की चुस्कियों के साथ बेकरी के मालिक अहमद से थोड़ी गुफ्तगू हुई तो उन्होंने बताया कि उनके
पुरखे ईरान से यहां आए थे और ये दुकान बहुत पुरानी है. अहमद ने हमें दर्जनों तरह
के बिस्कुट दिखाए जिनमें से कोई सात-आठ किस्म के बिस्कुटों को हमने चखा. इनमें चांद बिस्कुट, उस्मानिया बिस्कुट, चोको बार, पिस्ता, काजू, स्टार काजू, ड्राई फ्रूट, ओट्स, डायमंड, रस्क केक शुमार थे.
यहां बेहतरीन ब्रेड, बन और केक भी चखे जा सकते हैं.
चाय के भी अपने किस्से हैं. यहां एक चाय है ‘पौना’. है न दिलचस्प नाम? जहां आम चाय 12 रुपए की है वहीं पौना 15 रुपए की. वैसे मामला सिर्फ इतना सा है कि इस चाय में दूध ज्यादा होता है. ये ज्यादा दूध वाली चाय के भी देश में अलग अलग नाम हैं. मैं जब लुधियाना में पोस्टेड था तो दफ़्तर में एक तो होती थी चाय और एक होती थी ‘मिल्क टी’. निखालिस खड़े दूध की चाय. अब एक चाय से मेरा क्या काम बनता...सो एक कप और पी गई.
चाय के भी अपने किस्से हैं. यहां एक चाय है ‘पौना’. है न दिलचस्प नाम? जहां आम चाय 12 रुपए की है वहीं पौना 15 रुपए की. वैसे मामला सिर्फ इतना सा है कि इस चाय में दूध ज्यादा होता है. ये ज्यादा दूध वाली चाय के भी देश में अलग अलग नाम हैं. मैं जब लुधियाना में पोस्टेड था तो दफ़्तर में एक तो होती थी चाय और एक होती थी ‘मिल्क टी’. निखालिस खड़े दूध की चाय. अब एक चाय से मेरा क्या काम बनता...सो एक कप और पी गई.
हैदराबाद की कराची बेकरी भी कम नहीं
मैं यहां से घर के लिए कुछ लिए बिना ही निकल आया. मगर ये अफ़सोस शाम तक दूर हो गया. एयरपोर्ट के लिए निकलते वक़्त कराची बेकरी मिल गई. अब कराची बेकरी की तारीफ़ में क्या शब्दों को जाया करना. एक से एक बेहतरीन बिस्कुट और कुकीज यहां मौजूद हैं. मुझे यहां का फ्रूट बिस्कुट बेहद पसंद है. आपको कहीं दिख जाए तो चूकिएगा मत. और दिल्ली से हों तो एक डिब्बा मेरे लिए भी लेते आइएगा.![]() |
ग़ज़ब हैदराबादी लहज़े में नीमराह बेकरी के अहमद भाई |
बदल रही हैै चार मीनार इलाके की शक्ल-ओ-सूरत
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चार मीनार का तसव्वुर और ईरानी चाय |
पुरातत्व विभाग ने खूब हो हल्ला किया मगर शायद इसे अनसुना कर दिया गया है. ईश्वर विभागों को सद्बुद्धि दे. साथ ही चार मीनार के आस-पास के पूरे इलाके को टाइलों से पाटने वालों को यहां कुछ पेड़ लगाने के बारे में भी सोचना चाहिए था. अब तक नहीं सोचा तो अब सोच लें. किसी भी ऐसी परियोजना में ग्रीन बेल्ट अनिवार्य हिस्सा होनी चाहिए. पर होता यही है कि पहले बिना ज्यादा सोचे-विचारे निर्माण कार्य किया जाता है फिर किसी रोज नींद खुलने पर उस निर्माण को उधेड़ कर फिर कुछ नया किया जाता है. पहले कुआ खोदो फिर कुआ भरो. यही नियती है देश की.
मक्का मस्जिद |
चर्चा में है मक्का मस्जिद
इसके बाद हमने कुछ कदम दूर मौजूद मक्का मस्जिद का रुख़ किया. ये हैदराबाद की सबसे पुरानी और देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है. ये इत्तेफ़ाक़ ही था कि कोई हफ़्ता भर पहले ये मस्जिद एक बार फिर सुर्खियों में थी. दरअसल यहां 18 मई, 2007 को हुए एक बम धमाके में दर्जन भर लोग मारे गए और लगभग 60 लोग जख़्मी हुए थे. अब हैदराबाद में ही एनआईए की अदालत ने इस मामले के पांचों आरोपियों को रिहा कर दिया है जिनमें स्वामी असीमानंद भी शामिल हैं.इसी मामले के बाद से बरसों तक देश में हिंदुत्व आतंकवाद की थ्योरी पर बहसें होती रही हैं. मगर एनआईए अदालत ने सबको चौंकाते हुए सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को रिहा कर दिया है. पूरे देश में खलबली है और इसीलिए इन दिनों मक्का मस्जिद के आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
क्यों कहते हैं इसे मक्का मस्जिद
दरअसल इस मस्जिद का निर्माण
कुतुब शाही सल्तनत के पांचवे शासक मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने मक्का की
मिट्टी से ईंटें बनवा कर किया. इसीलिए इसका नाम मक्का मस्जि़द रखा गया.
इसका सामने का तीन मेहराबों वाला हिस्सा ग्रेनाइट के अकेले बड़े पत्थर से बनाया गया है. कहते हैं इसे बनाने में 500-600 कारीगरों को पांच साल का वक़्त लगा. यहां आसफ़ जाही शासकों की क़ब्रों सहित निज़ाम और उनके परिवार के लोगों के मक़बरे भी मौजूद हैं. मुख्य मस्जिद परिसर 75 फुट ऊंचा है और इसकी तरफ पांच-पांच मेहराबों वाली दीवारें हैं और चौथी दीवार मिहराब यानि कि किबला (मक्का में काबा की दिशा) की दिशा बताती है. इस मस्जिद में एक बार में 10,000 से ज्यादा लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं. रमजान के दिनों में चार-मीनार के भीतर और बाहर का नज़ारा देखने लायक होता है. हजारों लोग अंदर और बाहर सड़क पर एक साथ नमाज़ अदा करते हैं. और हां, यहां के बाजारों में इफ्तार की दावत की रौनक भी देखने लायक है.
उस रोज मेरे पास ज्यादा वक़्त नहीं था सो अंदर तक जाकर नहीं देख पाया. लकिन मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद वहां दाना चुग रहे कबूतरों के पास कुछ वक़्त ज़रूर बिताया. यहां छोटे बच्चों को दाना खिलाते देखना बड़ा सुकून भरा अनुभव था. डॉक्टर लोग कहते हैं कि कबूतरों को दाना खिलाना एक तरह से थैरेपी का काम करता है. एक तरह की मेडीटेशन भी है. आप करके देखिए...मज़ा आएगा. कभी-कभी कबूतरों के झुंड में से आप एक कबूतर की आरे ध्यान करके दाना डालते हैं. मगर बाकी कबूतर दानों पर झपट्टा मारते हैं और वो शरीफ़ज़ादा पीछे हट जाता है. आप फिर कोशिश करते हैं कि पगले खा ले. इस खेल में आप कब कबूतरों में गुम हो जाते हैं पता ही नहीं चलता.
इसका सामने का तीन मेहराबों वाला हिस्सा ग्रेनाइट के अकेले बड़े पत्थर से बनाया गया है. कहते हैं इसे बनाने में 500-600 कारीगरों को पांच साल का वक़्त लगा. यहां आसफ़ जाही शासकों की क़ब्रों सहित निज़ाम और उनके परिवार के लोगों के मक़बरे भी मौजूद हैं. मुख्य मस्जिद परिसर 75 फुट ऊंचा है और इसकी तरफ पांच-पांच मेहराबों वाली दीवारें हैं और चौथी दीवार मिहराब यानि कि किबला (मक्का में काबा की दिशा) की दिशा बताती है. इस मस्जिद में एक बार में 10,000 से ज्यादा लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं. रमजान के दिनों में चार-मीनार के भीतर और बाहर का नज़ारा देखने लायक होता है. हजारों लोग अंदर और बाहर सड़क पर एक साथ नमाज़ अदा करते हैं. और हां, यहां के बाजारों में इफ्तार की दावत की रौनक भी देखने लायक है.
उस रोज मेरे पास ज्यादा वक़्त नहीं था सो अंदर तक जाकर नहीं देख पाया. लकिन मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद वहां दाना चुग रहे कबूतरों के पास कुछ वक़्त ज़रूर बिताया. यहां छोटे बच्चों को दाना खिलाते देखना बड़ा सुकून भरा अनुभव था. डॉक्टर लोग कहते हैं कि कबूतरों को दाना खिलाना एक तरह से थैरेपी का काम करता है. एक तरह की मेडीटेशन भी है. आप करके देखिए...मज़ा आएगा. कभी-कभी कबूतरों के झुंड में से आप एक कबूतर की आरे ध्यान करके दाना डालते हैं. मगर बाकी कबूतर दानों पर झपट्टा मारते हैं और वो शरीफ़ज़ादा पीछे हट जाता है. आप फिर कोशिश करते हैं कि पगले खा ले. इस खेल में आप कब कबूतरों में गुम हो जाते हैं पता ही नहीं चलता.
चूड़ियों और ज़ारदोज़ी के काम के लिए मशहूर है लाड़ बाज़ार
मक्का मस्जिद से निकल कर एक बार फिर हम चार मीनार की तरफ लौट पड़े. लाड़ बाजार अभी भी सोया हुआ था सो हम इस बाज़ार से जुड़ी संकरी गलियों में ज़ारदोज़ी के कारीगरों का हुनर देखने के लिए जा पहुंचे. ज़ारदोज़ी जानते हें न? ये कला खासतौर पर ईरान, तुर्की, सेंट्रल एशिया के देशों में प्रचलित है जिसमें ज़ार का मतलब है सोना और दोज़ी का मतलब है काम. ये थोड़ा मंहगा काम है इसलिए हिंदुस्तान में इसके पहले कद्रदान शाही परिवार, राजे-रज़वाड़े बने. इसमें सोने या चांदी के तारों के साथ नगों का काम होता है मगर अब आम लोगों के बीच इस कला की मांग बढ़ने के साथ ही कारगीर तांबे के तारों पर सोने या चांदी की पॉलिश के साथ ये काम करने लगे हैं.प्रिंस मार्केट की ऐसी ही एक दुकान में हमने एक कारीगर से बातचीत की तो उसने बताया कि यहां हैदराबाद में ज़री के काम की बहुत मांग है और उसके ग्राहक वाट्सएप के जरिए ही काम भेज रहे हैं. हिंदुस्तान में पारसी और खासकर मुस्लिम परिवारों में जारदोज़ी के काम की बहुत मांग है. नोटबंदी की मार यहां के धंधे पर खूब पड़ी मगर अब काम पटरी पर आने लगा है. इस दुकान से निकल कर गली में आए तो देखा कि गली मक्का मस्जिद के एकदम पीछे जाकर खुलती है. वही किबला वाली दीवार के पीछे. यहां आसिफ़ा के लिए न्याय के बैनर हवा में झूल रहे हैं. आसिफ़ा के लिए तो पूरा देश ही न्याय चाहता है. अभी ज्यादा दुकानें नहीं खुली थीं सो यहां से लौटना पड़ा.
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कोई नृप होऊ....हमें तो ज़ारदोज़ी का काम भला |
गोविंद भाई के डोसा कॉर्नर को न भूल जाना
अब एक बार फिर मेरा सामना एक नए अनुभव से होने जा रहा था. ये था गाविंद भाई का डोसा कॉर्नर. गोविंद कहने को तो रेहडी पर अपना ठिया जमाए हुए हैं मगर उनके जायके के तलबगार दूर-दूर से यहां आते हैं. आएं भी क्यों ना? यहां डोसा और इडली बनाने का तरीका जो एकदम अलग है. मैंने इतना स्वाद भरा डोसा और इडली शायद ही कहीं और खाई हो. ये कहते हुए बता दूं कि दुनिया की सबसे बेहतरीन इडली श्रीमती जी घर पर बनाती हैं. सो गोविंद भाई की इडली दूसरे नंबर पर ही आएगी. हां, गोविंद भाई का डोसा जरूर नंबर 1 है. मगर उसमें जमकर प्रयोग किए गए मक्खन को पचाने के लिए शरीर को थोड़ी ज्यादा मशक्कत की जरूरत होगी. गोविंद अब धीरे-धीरे ब्रांड बनते जा रहे हैं इसीलिए खुद और उनके ठेले पर काम करने वाले लड़के ‘गोविंद डोसा’ लिखी नारंगी टी-शर्ट पहने हुए थे. यहीं आस-पास ऐसे ही एक ठिए पर डोसा बेचने वाले साहब तो इतना कमाते हैं कि मर्सीडीज़ रखे हुए हैं.तेल रोक के ...मक्खन ठोक के...गोविंद भाई का डोसा |
अब तक
चार-मीनार के आस-पास सैकड़ों छोटी-छोटी दुकानें ऐसे उग आईं थी जैसे वो अभी-अभी
जमीन से बाहर निकल आई हों. फल, पूजा-पाठ की सामग्री, सजावटी सामाज और खासकर चूडियां ही चूडियां चारों तरफ़. मित्रों के साथ मिलकर
एक बार फिर चूडियां खरीदी गईं. अब तक चार-मीनार की पहली मंजिल के लिए एंट्री खुल
चुकी थी. सो इसकी पहली मंजिल पर चढ़कर आस-पास के इलाके को देखने की तमन्ना भी
पूरी करनी थी...सो वही किया. यक़ीनन यहां से आस-पास का नज़ारा बेहद खूबसूरत दिखता
है. चूंकि ये इमारत अब पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है इसलिए ये सुबह 9 बजे से
शाम 5 बजे तक ही उपलब्ध है. रात के वक़्त रौशनियों में नहाए चार-मीनार का जलवा
अलग ही होता है. इसलिए कभी हैदाराबाद आएं तो एक बार रात में जरूर इस इलाके को
देखें. इस यात्रा में तो मुझे ये मौक़ा नसीब नहीं हुआ मगर अगली बार शाम-ए-चार
मीनार देखने जरूर आउंगा.
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इफ़्तार और चार मीनार Pic Courtesy : @denny_simon |
हैदराबाद पहली
मुलाक़ात में ही दिल में उतर गया है. शायद यहां की एतिहासिक विरासतों, यहां के मोतियों, यहां की स्ट्रीट आर्ट, शानदार आईटीसी काकातिया, हैदराबाद में मेरे साथ
रहे ड्राइवर इस्माइल भाई, की वजह से था...और सबसे बड़ी वजह थीं ऊषा जी. जिन्होंने दिल से अपना शहर दिखाया.
शायद उन्हीं की वजह से यात्रा के आखि़री पड़ाव पर लगने लगा था कि कोई अपना इस शहर
में है सो ये शहर भी अपना सा ही है. तुमसे फिर जल्दी मिलूंगा मेरे दोस्त हैदराबाद.
आपको कैसी लगी चार मीनार की ये सुबह, मुझे जरूर बताइएगा.
कुछ और तस्वीरें सुबह-ए-चार मीनार से ...
आपको कैसी लगी चार मीनार की ये सुबह, मुझे जरूर बताइएगा.
कुछ और तस्वीरें सुबह-ए-चार मीनार से ...
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गोविंद भाई केे यम्मी डोसा |
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ज़ारदोज़ी |
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पिन कोड 500002.... बोले तो चार मीनार |
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मैं और ट्रेवल कर्मा ...ऊषा जी |
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वाह जी आप भी मेरी तरह चाय के शौकीन निकले.... नीमराह बेकरी और यह वाक्य सुबह की चाय को यादगार बनाने वाली बात कितने एहसास अपने मे समेटे है...बहुत अच्छा लगता है ऐसे लेख पढ़कर
जवाब देंहटाएंचाय के तो हम पूरे कद्रदान हैं और फिर हैदराबाद की ईरानी चाय का लुत्फ़त अलग ही है. इसके बिना सुबह-ए-चार मीनार अधूरी ही है. आते रहें ब्लॉलग पर. शुक्रिया
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