चेरापूंजी: एक सफ़र बादलों के घर तक
A Road Trip to Cherapunjee
दूर तक अकेले चले गए
खूबसूरत मनमौजी से रास्तों के दूसरे सिरों पर मौजूद मंजिलें भी कम दिलकश नहीं होती
हैं. मगर मुझ पर इन हसीन रास्तों का जादू हमेशा से मंजिलों के तिलिस्म से ज्यादा
सर चढ़ कर बोला है. ऐसे हसीन रास्तों पर एक लंबी रोड़ ट्रिप के आनंद को शब्दों
में बयां नहीं किया जा सकता.
देश के उत्तर-पूर्व में मेघालय एक ऐसा ही राज्य है
जहां अमूमन हर बड़ी मंजिल ऐसे ही रेशमी रास्तों से बुनी हुई है. मेघालय की
राजधानी शिलांग से किसी भी दिशा में चले जाइए हर ओर प्रकृति के नायाब नज़ारे या
आश्चर्य हमारा इंतज़ार करते हैं. यूं तो पूरा मेघालय ही बादलों का घर है. मगर इस
बादलों के घर में चेरापूंजी एक ऐसी जगह है जिस पर बादल खासकर मेहरबान रहे हैं और
वहां तक पहुंचने के मखमली और सुपाड़ी से महकते हुए रास्ते बस दिल ही चुरा लेते
हैं.
अब शिलांग तक आएं और चेरापूंजी देखे बिना लौट जाएं ये संभव नहीं था. सो
मेघालय की यात्रा में चेरापूंजी खुद-ब-खुद शामिल हो गया और जुलाई की एक सुबह हम
शिलांग से चेरापूंजी की डगर निकल पड़े थे. मगर पिछली पोस्ट Mawlennong: Cleanest Village of Aisa में मैंने आपको बताया था कि चेरापूंजी के रास्ते पर बादलों
की धमाचौकड़ी के बीच हम रास्ता भटक गए और बांग्लादेश की सीमा से सटे मायलेन्नोंग
जा पहुंचे.
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चेरापूंजी के हसीन रास्ते |
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रास्ते जो सीधे बादलों के घर जाते हैं |
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वो मोड़ जहां से हम रास्ता भटके |
अच्छा ही हुआ जो हम रास्ता
भटक गए. इसके दो लाभ हुए. एक तो एशिया के सबसे सुंदर गांव को देखने का अवसर
मिल गया और दूसरा दिन के समय चेरापूंजी में भयंकर बारिश में फंसने से बच गए.
दरअसल
जिस वक़्त हम गलती से मायलेन्नोंग के रास्ते पर बढ़ रहे थे उस वक़्त चेरापूंजी
में भयकंर बारिश हो रही थी और बारिश में चेरापूंजी में आप कुछ नहीं देख सकते. ऐसा
लगता है जैसे समंदर मे तूफान उठा हो और किसी तिलिस्मी जादू से हर चीज ढ़क दी गई
हो. तमाम खूबसूरत वॉटर फॉल्स पल भर में धुंध और बादलों में गायब हो जाते हैं.
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बादलों में गुम
चेरापूंजी के खजाने |
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अब यहां से चेरापूंजी कुल 30 किलोमीटर दूर था. ये
30 किलोमीटर का सफ़र अब तक की सड़क यात्राओं में सबसे खूबसूरत सफ़र था. हल्की
बारिश के पानी में नहा कर सड़क का रंग एकदम गहरा काला हो गया था. उधर सड़क के
दोनों ओर दूर तक दिखाई देते घास के मैदान और खेत जैसे भीगी सी हरी चादर ओढ़ कर
आराम फरमा रहे हों. पूरा रास्ता हसीन नज़ारों से भरा.
मैंने ऐसे दिलफ़रेब रास्ते
कभी नहीं देखे. हम शिलांग जैसे शहर की चहल-पहल से बहुत दूर निकल आए थे और पूरे
रास्ते में कहीं-कहीं ही कुछ घर या छोटे-छोटे गांव नज़र आ रहे थे. अब तक बारिश ने
हवा में मीठी ठंड घोल दी थी जो हड्डियों तक पहुंच कर भूख को जगाने लगी. मायलेन्नोंग
से ये सोच कर जल्दी निकल थे कि चेरापूंजी के रास्ते में कहीं रुक कर चाय सुड़की
जाएगी. मगर यहां तो दूर-दूर तक चाय का नामो-निशां ही नहीं था. कहीं कोई होटल नहीं, कोई ढ़ाबा नहीं.
कई किलोमीटर चले आने के बाद सड़क पर दूर एक गांव का छोटा सा
बाजार दिखने लगा तो चाय की आस से आंखों में चमक आ गई. मगर जैसे-जैसे गाड़ी उन
दुकानों के नज़दीक आई तो उन दुकानों की हकीकत साफ़ होती गई. वहां कोई चाय की
दुकानें नहीं थीं. यहां दुकानों के बाहर सुअर उल्टे लटके थे. यहां स्थानीय खासी
समुदाय के लोग सब कुछ खाते हैं. एक-दो नहीं कोई दस दुकानें रही होंगी. पोर्क की
गंध को शिलांग में भी बर्दाश्त नहीं हुई थी. घनघोर वेजिटेरियन आदमी के साथ ये
सबसे बड़ी दिक्क्त है. बस यहां तो गाड़ी को ब्रेक लगाना भी मुनासिब नहीं था सो
और तेज रफ्तार से आगे की ओर भाग चले.
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ओरेंज रूट्स |
साथ में चल रहे एक परिचित ने
बताया कि वो कुछ साल पहले भी इस तरफ आए थे तो कहीं कुछ खाने को नहीं मिला था.
वेजिटेरियन खाने की किल्लत तो शिलांग में भी कम नहीं थी. इसलिए इस दूर-दराज के
इलाके में तो कल्पना की ही जा सकती है. कुछ लोगों ने पहले ही आगाह किया था कि
चेरापूंजी में कुछ नहीं मिलेगा. मगर ये नहीं बताया था कि रास्ते में चाय भी नसीब
नहीं होगी.
मगर शायद हमारी किस्मत हम पर मेहरबान थी. किस्मत बुलंद हो तो जंगल में भी छप्पन भोग मिल सकते हैं. सो
हमें भी मिल गए. सोहरा से तकरीबन 3 से 4 किलोमीटर पहले 'ऑरेन्ज रूट्स' नाम से एक वेजिटेरिअन रेस्तरां
है. ये मेघालय पर्यटन विभाग और चेरापूंजी हॉलीडे रिजॉर्ट की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप
में चल रहा है.
यहां टोकन काउंटर से लेकर किचिन, वेट्रेस और प्रबंधन में एकाध पुरुष को छोड़कर पूरा स्टाफ महिलाओं का है. जिस
आदर और प्रेमभाव से यहां महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान जिंकरसिया पहले हुए भोजन
परोसती हैं और थोड़ा और खाने का आग्रह करती हैं...ऐसा कहीं नहीं देखा. तो आप नोट
कर लीजिए, इस तरफ आएं तो ‘ऑरेंज रूट्स’ से बेहतर कोई विकल्प नहीं.
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अभी और भी बहुत कुछ मिलेगा थाली में |
तकरीबन डेढ़ घंटे की यात्रा
के बाद जब शाम 4 बजे हम चेरापूंजी पहुंचे तो बारिश एकदम चरम पर थी. बारिश का ये
रौद्र रूप देख कर बड़ी निराशा हुई. हमारे साथ चल रहे लोगों ने बताया कि यहां ऐसा
ही होता है और कई बार लोगों को बिना कुछ देखे ही खाली हाथ लौटना पड़ता है. शायद
इसीलिए अब बहुत से टूरिस्ट यहां एक रात रुकने का प्रोग्राम बना कर ही आते हैं.
ताकि 24 घंटे में कम से कम एक बार मौसम के साफ़ होते ही चेरापूंजी की खूबसूरती का
आनंद ले सकें. मगर हमें शाम तक वापिस लौटना था. ले दे कर यही कोई तीन-चार घंटे हाथ
में थे.
इधर जोरों की भूख लगी थी और किस्मत से एक वेज रेस्तरां मिल गया तकरीबन
एक घंटे बाद बारिश धीमी होने पर हमने आगे बढ़ने का फैसला किया. यहां से लगभग 7
किलोमीटर दूर ‘स्प्रेड ईगल फॉल’ तक पहुंचते-पहुंचते धुंध छंट चुकी थी और हल्की धूप कुछ इस
तरह चमकी जैसे किसी ने ऊपर से आउट ऑफ द वे जाकर ये नज़ारा दिखाने का प्रबंध किया
हो. सभी ने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और सभी धड़ाधड़ उस खूबसूरत नज़ारे को
कैमरे में कैद करने लगे.
तभी ड्राइवर ने चेतावनी दी कि मौसम की ये मेहरबानी ज्यादा
देर के लिए नहीं है. इसलिए जो करना है ज्यादा से ज्यादा एक घंटा है. हमने
ड्राइवर से कहा कि ‘सिंह साहब, अब चेरापूंजी आपके भरोसे है. बस फिर क्या था. उन
ऊबड़-खाबड़ और सांप जैसे घुमावदार रास्तों पर दौड़ते हुए हमने रास्ते में पड़ने
वाली हर साइट पर छापा सा डालते हुए आगे बढ़ना जारी रखा. और एक-डेढ़ घंटे में तमाम
वाटर-फॉल्स और मौसमई गुफाओं को भी देखा डाला. तब जाकर बेचैन दिल को करार
आया.
यहां मौसमई गुफाओं से
तकरीबन 1 किलोमीटर आगे बेहद खूबसूरत सेवन सिस्टर्स फॉल है जिसे स्थानीय
लोग Nohsngithiang Falls के नाम से जानते हैं. सेवन सिस्टर्स फॉल का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि ये इसकी धाराएं सात हिस्सों
में बटी हैं. ये झरना 315 मीटर (1033 फुट) की ऊंचाई से गिरता है और इसकी औसत
चौड़ाई 70 मीटर है. इसी वजह से ये देश के सबसे लंबे वॉटरफॉल्स (One of the tallest Waterfalls in India) में से एक है. इसी तरह
सोहरा में Nohkalikai Falls ऐसा ही एक खूबरसतर वॉटरफॉल है. इसे Tallest Plunge Water Fall in India के रूप में भी जाना जाता
है.
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सेवन सिस्टर्स फॉल |
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नोहकालिकाई फॉल
स्त्रोत: शटरस्टॉक |
नोहकालिकाई फॉल
के बारे में एक लोककथा बहुत दिलचस्प है. खासी में नोहकालिकाई का मतलब है ‘का
लिकाई का कूदना’. इस कथा के अनुसार झरने से ऊपर रांगजाइरतेह
(Rangjyrteh) गांव में
लिकाई नाम की एक महिला को अपने पति की मृत्यु के बाद दूसरी शादी करनी
पड़ी. अपनी नवजात बच्ची के साथ का लिकाई (खासी समुदाय में स्त्रियों के
नाम के आगे ‘का’ लगाया जाता है) बड़ी
मुश्किल से अपनी जिंदगी काट रही थी. आखिरकार उसे सामान ढ़ाेेेने का काम करना पड़ा.
अपने काम की वजह से उसे सारा दिन घर से बाहर रहना पड़ता और घर लौटने पर उसका ज्यादातर
वक़्त अपनी बच्ची के साथ गुज़रता.
इस सबके बीच का लिकाई अपने दूसरे पति को ज्यादा
वक़्त नहीं दे पाती थी. बस इसी बात की जलन में एक दिन पति ने मासूम बच्ची को मार
डाला और उसके मांस को पका कर हड्डियों को इधर-उधर फेंक दिया. का लिकाई काम से घर लौटी
तो बच्ची को घर पर न पाकर उसे खूब ढूंढ़ा. दिन भर की थकान से निढ़ाल का लिकाई ने खाना
खाकर फिर से बच्ची को ढूंढ़ने का फैसला किया. खाना खानेे के बाद का लिकाई सुपाड़ी खाती
थी. उस दिन भी जब का लिकाई सुपाड़ी काटने बैठी तो वहां पड़ी एक छोटी सी उंगली को देख
कर सारा माज़रा समझ गई कि उसकी गैर-मौजूदगी में उसके पति ने क्या किया था. का लिकाई
के गुस्से और दुख की कोई इंतहा नहीं थी और हाथ में कुल्हाड़ी लेकर इधर-उधर दौड़ने
लगी. दौड़ते-दौड़ते पठार पर पहुंच गई और इसी दुख में झरने से नीचे छलांग लगा दी. जहां
से का लिकाई ने छलांग लगाई थी उसी जगह को आज नोहकालिकाई के नाम से जाना जाता है. आज
भी वो झरना जैसे का लिकाई के दुख को बयां कर रहा है।
अच्छा, एक दिलचस्प बात चेरापूंजी के बारे में ये है कि बचपन से किताबों में सबसे ज्यादा
वर्षा वाले स्थान के रूप में पढ़ते-पढ़ते हमारे दिलो-दिमाग में चेरापूंजी की छवि
ऐसी बन गई है मानो यहां हर समय बरसात ही होती रहती हो और बारह मासों ये इलाका पानी
से लबालब रहता हो. मगर हैरतंगेज तथ्य ये है कि यहां सर्दियों में सूखा पड़ता है
और पानी की भारी किल्लत हो जाती है. यहां तक कि लोगों को बहुत दूर-दूर से पानी
लेकर आना पड़ता है. दरअसल सबसे ज्यादा बारिश का फलसफा ये है कि यहां बारिश लगातार
न होकर भारी मात्रा में होती है. इसलिए कम समय में भी औसत वर्षा के रिकॉर्ड टूट
जाते हैं. ऐसा असल में चेरापूंजी के खासी पहाडियों के दक्षिणी पठार पर होने की वजह
से होता है. इसकी स्थिति कुछ इस तरह है कि बादल यहां पहाड़ों के बीच आकर फंस जाते
हैं और जमकर बरसते हैं. इतनी तेज बारिश का एक नुकसान ये भी है कि यहां की मिट्टी
पानी के तेज बहाव में बांग्लादेश के मैदानों की ओर बह जाती है और खेती संभव नहीं
हो पाती है. अब इसे चेरापूंजी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस बारिश के लिए
पूरी दुनिया में लोग तरसते हैं वही बारिश यहां हालातों को नाजुक बना देती है.
बारिश के मामले में
चेरापूंजी के कुछ अद्भुत रिकॉर्ड हैं। 450 इंच (11,430 मिलीमीटर) के विश्व के उच्चतम औसत वार्षिक वर्षा स्तर के अतिरिक्त
विश्व में किसी भी स्थान पर किसी एक वर्ष में सबसे ज्यादा वर्षा का रिकॉर्ड भी
चेरापूंजी के ही नाम है. यहां अगस्त 1860 से जुलाई, 1861 के दौरान 1,042 इंच (26,467 मिलीमीटर) की वर्षा दर्ज की गई थी। यहीं नहीं, जुलाई 1861 में किसी एक महीने में सबसे ज्यादा वर्षा का रिकॉर्ड (366 इंच –
9296 मिलीमीटर) भी चेरापूंजी ने ही बनाया.
हालांकि अब पिछले कुछ वर्षों से सबसे ज्यादा
वर्षा चेरापूंजी की बजाय यहां से 80 किलोमीटर दूर मॉसिनराम में होने लगी है. लेकिन
अभी भी चेरापूंजी ही हमारी स्मृतियों में धरती पर सबसे ज्यादा वर्षा वाले स्थान
के रूप में बस चुका है. यहां केवल सबसे ज्यादा बारिश ही नहीं बल्कि यहां के अद्भुत
झरने बरसों से देश-दुनिया के पर्यटकों का मन मोहते रहे हैं.
यहां दर्जनों वॉटर फाल हैं
जिन्हें जुलाई के बाद देखने का अपना आनंद है. एक रोड़ ट्रिप का असली मजा यही है
कि गाड़ी से कुछ-कुछ किलोमीटर पर मौजूद स्थानों का भी तसल्ली से आनंद लिया जा
सकता है. यदि ज्यादा वक़्त न हो तो चेरापूंजी के लिए आधा दिन भी बहुत है. हम आधे
दिन में जितना देख सके उतना पहली यात्रा के लिए काफी था. चेरापूंजी की पहली यात्रा
की स्मृतियां मेघालय की स्मृतियों के कोलाज में चटख रंगों के साथ हमेशा जीवंत
रखेंगी.
चेरापूंजी कैसे पहुंचें:
चेरापूंजी पहुंचने के लिए शिलांग पहुंचना होगा और शिलांग पहुंचने के लिए गुवाहाटी. गुवाहाटी सड़क, रेल और हवाई मार्ग तीनों से जुड़ा है. यूं तो शिलांग तक भी हवाई सेवा है मगर उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसलिए बेहतर होगा गुवाहाटी तक की फ्लाइट जी जाए. अब गुवाहाटी से शिलांग तीन-साढ़े तीन घंटे का सड़क का सफ़र है (रास्ता एकदम शानदार है). शिलांग से चेरापूंजी कुल 54 किलोमीटर दूर है.
कब आएं चेरापूंजी:
चेरापूंजी आने का सबसे बेेेेहतर समय सितंबर से अप्रैल तक का है.
कुछ और तस्वीरें
इस यादगार सफ़र से ...
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good post
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