कर्क रेखा : जहां साया भी साथ छोड़ दे
Tropic of Cancer in India.
हम और आप देश के आठ राज्यों से होकर गुज़रने वाली कर्क रेखा
(Tropic of Cancer) के ऊपर से कई बार गुज़रे होंगे मग़र हमें शायद की कभी इसका अहसास हुआ हो.
क्योंकि यह एक काल्पनिक रेखा है इसलिए हम कब इस रेखा के ऊपर से गुज़र गए, इसका पता चलना मुश्किल है. मग़र मध्यप्रदेश के रायसेन में दीवानगंज गांव के
पास सड़क पर मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने लकीर खींच दी है और सड़क के दोनों ओर
छोटे-छोटे स्मारक बना दिए हैं. सो इस जगह ठहरे बिना रहा ही
नहीं जा सकता. मध्यप्रदेश के अलावा कच्छ के रण और पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में
सड़कों के किनारे छोटे-छोटे साइन बोर्ड इस रेखा के वहां से गुज़रने की गवाही दे रहे
हैं. मग़र मुझे लगता है कि हमें ज्योग्राफ़ी के ऐसे दिलचस्प तथ्यों को सेलिब्रेट
करना चाहिए ताकि बच्चे सिर्फ किताबों में कल्पनाओं के सहारे दिमाग में ये रेखाएं न
खींचे बल्कि असल में ऐसे तथ्यों से रूबरू हो सकें.
भोपाल के नज़दीक है ट्रोपिक ऑफ कैंसर का स्मारक
कुछ दिनों पहले भोपाल की यात्रा के दौरान मेरा सांची जाना हुआ. मुझे इस रेखा के बारे में पहले से पता था तो भोपाल से निकलते ही ड्राइवर को आगाह कर दिया था कि इस कर्क रेखा वाले स्मारक पर ज़रूर रुकना है. ये बात ड्राइवर से ही पता चली कि ये जगह असल में भोपाल-विदिशा हाईवे पर भोपाल से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर है. सड़क के दांई ओर दीवानगंज को जाने वाली सड़क निकल जाए तो सावधान हो जाएं. छोला नाम की छोटी सी जगह के निकलते ही ट्रोपिक ऑफ कैंसर का ये स्मारक नज़र आने लगता है. लेकिन यदि गाड़ी की रफ्तार तेज हुई तो इस जगह के चूकने में भी देर नहीं लगेगी. इसलिए जब भी इधर से गुज़रें तो दीवानगंज के निकलते ही सावधान हो जाएं.![]() |
भोपाल विदिशा राजमार्ग से गुज़रती कर्क रेखा |
चलिए अब ज़रा इस रेखा के महत्व
और इससे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों को जानने की कोशिश करते हैं.
कैैैैसे बनते हैं सबसे बड़ेे और सबसे छोटे दिन
दरअसल भूमध्य रेखा के उत्तर में 23.5° पर स्थित कर्क रेखा खगोलीय और वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यही वही रेखा है जिस पर 21 जून को सूरज की किरणें सीधी पड़ती हैं और यह वर्ष का सबसे बड़ा दिन (summer Solstice) हो जाता है. कुछ इसी तर्ज़ पर 21 दिसम्बर को कर्क रेखा पर सूरज की किरणें तिरछी पड़ती हैं सो यह वर्ष का सबसे छोटा दिन (Winter Solstice) बन जाता है.कहते हैं मुसीबत में अपना साया भी साथ छोड़ देता है. अब इस कहावत की शुरुआत कहाँ से हुई कहना मुश्किल है लेकिन मुझे लगता है कि हो न हो ये क़िस्सा 21 जून को कर्क रेखा के मंज़र से जुड़ा होगा. जहां दिन के 12 से 2 बजे के बीच हमारा साया हमारा साथ छोड़ देता है. बरसों पहले जब तक इस घटना के वैज्ञानिक कारण नहीं पता थे तो लोग इसे कोई बुरी घटना या दैवीय प्रकोप समझते थे मग़र इसकी असल वजह सूरज का ठीक हमारे सिर के ऊपर होना होता है.
इस रेखा से जुड़े बेहद दिलचस्प तथ्य
क्या आप जानते हैं भारत वह कौन सी नदी है जो इसे दो बार पार करने की हिमाक़त करती है? ये है मध्यप्रदेश की माही नदी. यूं तो कर्क रेखा जिन आठ राज्यों गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम से गुज़रती है उनकी राजधानियां इस रेखा के आस-पास ही स्थित हैं मग़र उन सब में रांची इस रेखा के सबसे क़रीब है. और यदि कोई ये पूछे कि देश का कौन सा शहर इस रेखा के सबसे निकट है तो जवाब होगा त्रिपुरा का उदयपुर शहर.![]() |
भारत के राज्यों से गुज़रती कर्क रेखा, Tropic of Cancer passing through India Source: Quora |
फ़्लाइट को राउंड द वर्ल्ड स्पीड के रिकॉर्ड के लिए कितनी दूरी तय करनी है ज़रूरी
ट्रोपिक ऑफ कैंसर से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि फेडरेशन एयरोनॉटिक इंटरनेशनल के नियमों के मुताबिक किसी फ़्लाइट को राउंड द वर्ल्ड स्पीड के रिकॉर्ड के लिए कम से कम ट्रॉपिक ऑफ कैंसर की लम्बाई के बराबर, मतलब कुल 36,788 किलोमीटर की यात्रा करनी ही होगी. हाँ, एक दिलचस्प तथ्य और है कि ये रेखा लगातार अपनी जगह बदलते हुए हर साल लगभग 15 मीटर दक्षिण की ओर खिसक रही है. अलबत्ता इस तथ्य के बारे में मुझे सटीक जानकारी नहीं मिल पाई है.ट्राेेपिक्स पर क्यों पाए जाते हैं सबसे बड़े रेगिस्तान
मोटे तौर पर अगर हम सोचें तो लगेगा कि भूमध्य रेखा के सूरज की किरणों की सीध में होने के कारण यहां तापमान सबसे ज्यादा रहता होगा और इस रेखा के पास मौजूद इलाके रेगिस्तान होते होंगे. मगर ऐसा नहीं है. दरअसल सूरज की तीखी किरणों से जो गरमी पैदा होती है उससे वाष्प बनता है और बादल बनकर बरसते हैं. मगर ऐसा दोनों ट्रोपिक्स यानि कि ट्रोपिक ऑफ कैंसर (कर्क रेखा) और ट्रोपिक ऑफ कैप्रिकोन (मकर रेखा) पर नहीं होता है. ये दुनिया के सबसे गरम इलाके हैं. इसीलिए दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान इन्हीं ट्रोपिक्स के आस-पास पाए जाते हैं। मसलन, ट्रोपिक ऑफ कैंसर (कर्क रेखा) के पास सहारा मरुस्थल, ईरानी मरुस्थल, थार मरुस्थल और उत्तरी अमेरिका का मरुस्थल और ट्रोपिक ऑफ कैप्रिकोन (मकर रेखा) के पास नामिब, कालाहारी, अटाकामा और ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थल.
अब आखिर में एक और दिलचस्प बात से अपनी बात को समाप्त करता
हूं कि इस कर्क रेखा के उत्तर में रहने वाले लोगों के सिर पर कभी भी सूरज सीध में
नहीं आएगा और दक्षिण में रहने वाले लोगों के सिर पर साल में दो बार. है न दिलचस्प
? इसका कारण आप खुद पता लगाइए और मुझे
बताइए. ज़रा ताज़ा
कीजिए अपने भूगोल के ज्ञान को. यक़ीन मानिए आपको मज़ा आएगा.
भोपाल के निकट से गुज़रती कर्क रेखा |
#tropicofcancer #madhyapradesh
आपका ये ब्लॉग मैं कई बार पढ़ चुका हूं और पिछले एक साल से ये लगातार मेरे ब्राउज़र में खुला हुआ है। जिस दिन इस जगह हो कर आ जाऊंगा उसी दिन बन्द करूँगा। बड़ी इच्छा है यहां जाने की पर जा ही नही पा रहा हूँ। आपने बहुत अच्छा लिखा है।
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