राष्ट्रीय समर स्मारक (National War Memorial)
देश पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों के बलिदान के प्रति कृतज्ञ
राष्ट्र को अंतत: एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक प्राप्त हुआ. 25 फरवरी, 2019 की शाम देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस ‘राष्ट्रीय समर स्मारक’ (National War Memorial) को राष्ट्र को समर्पित किया.
ये समय का अजब संयोग ही है कि यह स्मारक ऐसे समय में बनकर तैयार हुआ है जब कुछ ही दिनों पहले कश्मीर में सीआरपीएफ के 40 जवानों पर हुए हमले के बाद देश की
सीमाओं पर तनाव बढ़ा हुआ है और देश का जन-मानस एक ओर जहां प्रतिशोध की आग में जल
रहा है वहीं अपने बहादुर सपूतों के बलिदान के प्रति अश्रुपूरित श्रृद्धा सुमन
अर्पित कर रहा है.
दिल्ली में इंडिया गेट के ठीक पीछे की ओर तकरीबन 40 एकड़ क्षेत्र में फैला ये
युद्ध स्मारक स्वयं में अद्भुत है. इस स्मारक में 1947-48 (आजादी के तुरंत बाद
कश्मीर में कबाइली हमला), 1961 (गोवा),
1962 (चीन), 1965, 1971, 1987 (पाकिस्तान), 1987-88 (श्री लंका), 1999 (कारगिल) सहित ऑपरेशन रक्षक जैसे तमाम अन्य अभियानों में देश की सीमाओं की रक्षा करते
हुए वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धाओं के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किए गए हैं.
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National War Memorial |
क्यों बनाए गए हैं चार चक्र:
चक्रव्यूह की संरचना से प्रेरित इस स्मारक की डिजाइन में कुल चार चक्र हैं
जो सशस्त्र सेनाओं के अलग-अलग मूल्यों को रेखांकित करते हैं:
अमर चक्र (circle of immortality): अमर चक्र में एक 15 मीटर ऊंचा स्मारक स्तंभ और अमर जवान ज्योति है.
वीरता चक्र (circle of bravery): वीरता चक्र में थल सेना, वायु सेना और
नौ सेना द्वारा लड़े गए छह प्रमुख युद्धों के दृश्य कांसे की धातु से दीवारों पर उकेरे गए हैं.
इन्हें सुप्रसिद्ध मूर्तिकार श्री राम सुथार द्वारा तैयार किया गया है.
त्याग चक्र (circle of sacrifice): त्याग चक्र में लगभग 25,942 शहीदों के
नाम 1.5 मीटर ऊंचाई की 16 दीवारों पर सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं.
रक्षा चक्र (circle of protection): सबसे बाहरी इस ‘सुरक्षा चक्र’
को 695 पेड़ों से तैयार किया गया है. ये वृक्ष रक्षा करने के लिए
खड़े सैनिकों को प्रदर्शित करते हैं.
क्यों नहीं बन सका अब तक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक:
ऐसा नहीं है
कि देश में इससे पहले कोई युद्ध स्मारक नहीं था. मगर राष्ट्रीय स्तर के एक
युद्ध स्मारक की मांग देश की आजादी के बाद से लगातार उठती रही है. ये जानकर
हैरानी ही होती है कि राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की मांग पहली बार 1960 में सशस्त्र
सेनाओं की ओर से ही उठाई गई थी और इस स्मारक को बनकर तैयार होने में 60 बरस लग गए.
दरअसल वर्ष 2006 में यूपीए सरकार ने इंडिया गेट के पास एक राष्ट्रीय स्मारक
बनाने का निर्णय लिया. और 20 अक्तूबर, 2012 को तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री ए.
के. एंटनी ने एक समारोह में इस स्मारक को बनाए जाने की घोषणाा की. लेकिन दुर्भाग्यवश
ये मामला अफसरशाही के बीच बरसों इधर से उधर होता रहा. फिर 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार
में इस विषय पर एक बार फिर काम शुरू हुआ और अब बहुत तेजी से इसका निर्माण किया गया.
किसने डिजाइन किया राष्ट्रीय समर स्मारक:
ये जानना भी
दिलचस्प है कि इस स्मारक के प्रमुख वास्तुकार श्री योगेश चंद्रहसन हैं.
दरअसल स्मारक के डिजाइन के लिए सरकार ने एक ग्लोबल डिजाइन कंपीटीशन के माध्यम
से लागों से प्रविष्टियां आमंत्रित की थीं. इस प्रतियोगिता में चेन्नई की WeBe Design Lab को विजेता
घोषित किया गया. इस डिजाइन के बारे में श्री चंद्रहसन कहते हैं-
‘पूरी संकल्पना इस विचार पर आधारित है कि युद्ध स्मारक एक ऐसा स्थान
होना चाहिए जहां हम मृत्यु पर शोक न मनाएं बल्कि सैनिकों के जीवन और उनके बलिदान का
सम्मान करें’.
टच स्क्रन का क्या काम है ?
त्याग चक्र के बाहर एक स्थान पर एक टच स्क्रीन
लगी हुई है. इस स्क्रीन
के पास खड़े जवान से मैंने इसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि इस स्क्रीन पर
किसी भी शहीद का नाम या उसकी रेजीमेंट या उसका सर्विस नंबर डालकर त्याग चक्र में
उसके नाम की जगह का पता लगाया जा सकता है.
ज़रा सोचिए कि देश के सैकड़ों-हज़ारों
गांवों, कस्बों
और शहरों से जब इन हज़ारों शहीदों के परिजन और भावी पीढि़यां यहां आकर अपने भाई,
पुत्र पिता, दादा, परदादा का नाम यहां सुनहरे अक्षरों में लिखा देखेंगे तो गर्व से उनका
सीना कितना चौड़ा हो जाएगा. इसकी एक झलक मुझे आज भी देखने को मिली. एक सरदार जी एक
जगह पर एक शहीद के नाम पर उंगलियां फेर रहे थे और फिर अपने कैमरे से उस पट्टी के
साथ एक सेल्फी भी ली. ज़रूर कोई संबंध रहा होगा. अभी इस स्मारक का उद्घाटन हुए
सिर्फ दो दिन हुए हैं इसलिए उद्घाटन समारोह के दौरान फूलों से की गई सजावट यथावत
है. लेकिन ये स्मारक
अपने आप में इतना खूबसूरत है कि आने वाले समय में भी यहां आने वाले लोगों को शहादत
का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता रहेगा. मुझे
वो पंक्तियां याद हो आईं जो स्मारक के बीच में लगे शिला स्मारक के नीचे लिखी गई
हैं:
‘शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा'
क्या बंद हो जाएगी इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति:
परम योद्धा स्थल:
इस स्मारक के मुख्य परिसर को देखकर जैसे
ही हम बाहर निकलते हैं, रास्ता हमें सीधे ‘परम योद्धा स्थल’ की ओर ले जाता है. दरअसल, परम योद्धा
स्थल में कुल 21 ‘परम वीर चक्र’ विजेताओं की कांसे की अर्द्ध-प्रतिमाएं लगाई गई हैं. हर प्रतिमा के साथ
उनके शौर्य की कहानी पास में लगे पत्थर बयां कर रहे हैं. हरे-भरे लॉन और पेड़ों
के खूबसूरत लैंडस्केप के बीच तीन दायरों में इन वीर जवानों की कहानियां आंखों के
आगे से गुज़रती हैं तो हमारा सिर गर्व से खुद-ब-खुद उठ जाता है और फिर इन महान
सपूतों के बलिदानों के लिए उनके शौर्य के सामने नतमस्तक हो जाता है.
स्कूल सिलेबस का अनिवार्य हिस्सा होनी चाहिएं ये कहानियां:
ऐसी और भी कई कहानियां हैं जो इस परम योद्धा स्थल पर आकर जेहन में ताज़ा हो जाती
हैं. हमें अपने बच्चों को ये कहानियां जरूर सुनानी चाहिएं. उन्हें बताना चाहिए कि
देश के असली नायक हमारे वीर जवान हैं. मैं कई बार महसूस करता हूं कि शहीदों की कहानियों
को तो स्कूल के सिलेबस का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए. हर क्लास में कुछ न कुछ पढ़ाया
जाए. और बच्चों को ऐसे स्मारक अवश्य दिखाने चाहिएं.
इस स्थान पर लगे कुल 21 बुतों से जुड़ी एक
खास बात ये भी है कि इनमें से सूबेदार मेजर (ओनरेरी कैप्टन) बाना सिंह (सेवानिृत्त), सूबेदार
मेजर योगेंद्र सिंह यादव और सूबेदार संजय कुमार आज भी जीवित हैं. सूबेदार मेजर बाना
सिंह को तो मैं 26 जनवरी की परेड़ में कई बार सीना तान कर खड़े होते हुए देख चुका हूं.
ये लोग देश की धरोहर और अभिमान हैं. येे स्मारक किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं. मुझे पूरा यकीन है कि ये ‘राष्ट्रीय समर स्मारक’ और ‘परम
योद्धा स्थल’ आने वाली पीढियों को हमेशा इन परम योद्धाओं के
बलिदान का महत्व समझाते रहेंगे.
एंट्री फीस: नि:शुल्क
समय : प्रात: 9 से
सांय 6.30 (नवंबर से मार्च)
: प्रात: 9 से सांय 7.30 (अप्रैल से अक्तूबर)
कुछ और तस्वीरें इस स्मारक से-
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Pic: MOD |
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बहुत अच्छे...... काफी विस्तार से आपने इस नये और अनोखे स्थल राष्ट्रिय समर स्मारक जानकारी दी.. और चित्रों के माध्यम से लगा ही हम भी वही हो आये ... जय हिन्द
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रितेश भाई. जय हिंद
जवाब देंहटाएंक्या कहु सौरभ भाई इस जगह के इतने डिटेल विबरण के लिए धन्यवाद...शहीदों को बहुत बहुत नमन...इस पोस्ट पर ज्यादा कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नही है....
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रतीक भाई. जय हिंद !
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