यायावरी yayavaree: शहर की सूरत और सीरत बदल रही है देश की पहली आर्ट डिस्ट्रिक: लोधी कॉलोनी | India's First Art District: Lodhi Colony

शनिवार, 30 मार्च 2019

शहर की सूरत और सीरत बदल रही है देश की पहली आर्ट डिस्ट्रिक: लोधी कॉलोनी | India's First Art District: Lodhi Colony


शहर की गलियों और उन गलियों में घरों की दीवारों को भी कला के लिए कैनवास की तरह इस्‍तेमाल किया जा सकता है, इस एक खूबसूरत ख्‍याल ने पिछले कुछ सालों में देश के तमाम शहरों की शक्‍लो-सूरत को बदल कर रख दिया है. फिर दिल्‍ली कैसे पीछे रह सकती थी. दिल्‍ली की जिस लोधी कॉलोनी की पहचान अब तक सरकारी अफ़सरों और कर्मचारियों के घरों से होती थी वो कॉलोनी अब देश की पहली आर्ट डिस्ट्रिक बन कर देश और दुनिया के नक्‍शे पर अपनी अलग जगह बना रही है. चटख रंगों में रंगी इसकी सैकड़ों दीवारें आज हज़ारों कहानियां कह रही हैं. अगर आपको कला में ज़रा भी दिलचस्‍पी है और आपने लोधी आर्ट डिस्ट्रिक नहीं देखी तो फिर आपने बहुत कुछ नहीं देखा. स्‍ट्रीट आर्ट के माध्‍यम से कला को एकदम से आम लोगों के बीच लाकर रख देना और लोगों को कला से जुड़ने का अवसर देना अपने आप में एक क्रांतिकारी पहल है. एक नॉन प्रोफिट संगठन St+art India Foundation का स्‍ट्रीट आर्ट के साथ इस तरह प्रयोग करने का ये सिलसिला दरअसल चंद दीवारों के साथ दिल्‍ली से 2015 में शुरू हुआ था और अब तक मुंबई, हैदराबाद, बेंगलूरू, गोवा, कोयंबटूर, चेन्‍नई, चंडीगढ़ और कोच्‍ची जैसे देश के तमाम शहरों में आकर्षक रंगों और चित्रों से लबरेज़ सैकड़ों दीवारें आम शहरी की जिंदगी का हिस्‍सा बन चुकी हैं. स्‍ट्रीट आर्ट फाउंडेशन, एशियन पेंट्स जैसे प्रायोजकों और तमाम सरकारी एजेंसियों के सहयोग से देश भर में एक अनूठी कलात्‍मक क्रांति की पटकथा लिख रहा है. अभी हाल ही में 1 मार्च को St+art India Foundation ने सीपीडब्‍ल्‍यूडी और एशियन पेंट्स के साथ मिलकर देश के पहले पब्लिक आर्ट डिस्ट्रिक- लोधी आर्ट डिस्ट्रिक को जनता को समर्पित किया है.   

मैं पिछले कई वर्षों से देश के तमाम शहरों में स्‍ट्रीट आर्ट को करीब से देखने और समझने की कोशिश करता रहा हूं. शहर वाकई बदल रहे हैं और कला को लेकर उनका नज़रिया भी. एक ओर ये कला के अद्भुत नमूने जहां स्‍थानीय लोगों की जिंदगी में सकारात्‍मक परिवर्तन ला रहे हैं वहीं दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों के लिए शहर को और भी खूबसूरत अंदाज में प्रस्‍तुत कर रहे हैं. कला अब बंद गैलरियों की मिल्कियत नहीं रह गई है बल्कि कला का लोकतंत्रीकरण हो रहा है. जो लोग आर्ट गैलरियों में नहीं जा सकते या जिनके पास इतनी फुर्सत नहीं है, उनके लिए कला ने खुद चल कर उनके गली-मुहल्‍ले यहां तक कि उनके अपने घर की दीवारों, खिड़कियों और छज्‍जों पर अपना आशियाना बना लिया है. अब हर रोज़ आस-पास के बाशिंदों को एक आर्ट गैलरी से गुज़रने का अहसास होता है. यूं कहिए कि कला अब उनकी जिंदगी का अभिन्‍न हिस्‍सा बन गई है. दिल्‍ली का लोधी कॉलोनी भी कुछ ऐसा ही इलाका है जहां मेहरचंद मार्केट से लेकर खन्‍ना मार्केट तक का हिस्‍सा एक मुकम्‍मल पब्लिक आर्ट गैलरी बन चुका है. सरकारी कर्मचारियों के घरों के बीच की दीवारों पर देशी और विदेशी कलाकारों ने पिछले कुछ बरसों में रंगों से भरी एक अद्भुत दुनिया रच दी है. हर दीवार जैसे कुछ कहती है. हर दीवार जैसे आपको अपने पास रोक लेना चाहती हो. 
2015 में शुरू हुए इस सफर में लोधी कॉलोनी में पिछले साल (2018) में तकरीबन 30 नई दीवारों पर काम हुआ था इस साल मार्च के अंत तक स्‍ट्रीट आर्ट फैस्टिवल, 2019 के खत्‍म होने तक 50 नई रंग-बिरंगी दीवारें कुछ और घरों का हिस्‍सा बन चुकी होंगी. शहर में रंगों के ऐसे अद्भुत उत्‍सव ने मुझे खुद-ब-खुद अपनी ओर खींच लिया. ये पूरा इलाका इतना बड़ा है और दीवारें इतनी अधिक हैं कि एक दिन में सभी को देखा भी नहीं जा सकता. मैं अगले दिन एक बार फिर इन गलियों में था. यकीन मानिए दो दिन की मेहनत के बाद भी कुछ दीवारें मुझसे छूट गईं.

मुझे सबसे ज्‍यादा प्रभावित किया सिंगापुर के आर्टिस्‍ट यिप येव चौंग की कलाकृति ने. फाइनेंस की बैकग्राउंड से आने वाले 50 वर्षीय चौंग ने इस दीवार पर शहर की रोजमर्रा की जिंदगी से उठाए चरित्रों को रचा है जिसमें छज्‍जे पर अखबार पढ़ते सरदार जी, मिठाई की दुकान, गाय, बांसुरी बेचने वाला, दीवारों से लटकाए हुए कालीन, नाई की दुकान जैसे आम दृश्‍य शामिल हैं. और क्‍या खूब कलाकारी की गई है. इस दीवार का हर हिस्‍सा एकदम वास्‍तविक प्रतीत होता है. चौंग की कलाकृतियों की खासियत यह है कि वे देखने वाले को क‍लाकृति का ही हिस्‍सा बन जाने के लिए आमंत्रित करती हैं. अब देखिए न, इस कलाकृति में सी‍ढ़ी और नाई की दुकान इतनी रियल है कि मैं खुद इसका हिस्‍सा बनकर तस्‍वीरों में गुम हो गया. यहां हर रोज तस्‍वीरें खिंचवाने वालों का मजमा लगा रहता है. आर्टिस्‍ट को उनके इन्‍स्‍टाग्राम हैंडल @yipyewchong पर फॉलो किया जा सकता है.
Artist: Yip Yew Chong 
Artist: Yip Yew Chong 
स्‍ट्रीट आर्ट के इन विषयों में पर्यावरण, ट्रांसजेंडर, सांप्रदायिक सौहार्द, महिला सशक्तिकरण, पक्षी, संस्‍कृति, ग्रामीण परिवेश जैसे विषय शामिल हैं. ब्‍लॉक 19 की सुनहरी मछली वाली एक मुराल पिछले वर्षों में हमारे शहरों और नदियों में प्राकृतिक आवासों की भयानक हानि को रेखांकित करती है. इसका कारण प्‍लास्टिक, मानव निर्मित सामग्रियों का जल में प्रवाह और यहां तक कि गोल्‍ड फिशजैसी एलियन प्रजातियों के दखल से नदियों की बायो डायवर्सिटी पर बुरा प्रभाव पड़ना है. ये दीवार खास तौर पर दिल्‍ली की यमुना नदी की समस्‍या को उजागर करती नज़र आती है. इस आर्टिस्‍ट का उनके ट्विटर हैंडर @H11235 पर फॉलो किया जा सकता है.
Artist: H11235
इस बार के स्‍ट्रीट आर्ट फेस्‍टीवल में तैयार की गई कलाकृतियों में से ही एक और वॉल ने मुझे अपनी ओर खूब आकर्षित किया. ये है ब्‍लॉक 12 में जर्मन आर्टिस्‍ट बांड द्वारा दीवार पर किया गया 3डी प्रयोग. ये एक तरह का augmented reality का खेल है. जिसमें देखने पर लगेगा कि दीवार में से ही कुछ आकृतियां बाहर तक उभरी हुई हैं. लेकिन ऐसा है नहीं. वहां तो केवल एक सपाट दीवार ही है. बस नज़र का धोखा है. और इस धोखे में दीवार में मौजूद खिडकियां और दरवाजे सब गुम हुए नज़र आते हैं. बांड स्‍ट्रीट आर्ट की सीमाओं को तोड़ते नज़र आते हैं. उनकी इस अद्भुत रचना के जादू को #VuforiaViewApp  के जरिए देखा जा सकता है. इस एप से इस स्‍ट्रीट आर्ट को देखने पर इसकी आकृतियां दीवार पर मचलती नज़र आएंगी. मानो वो वास्‍तव में दीवार से बाहर निकल रही हैं.   

Artist: @bondtruluv 

Artist: @bondtruluv 
कुछ इसी तरह ब्‍लॉक 9 की एक और दीवार अपने चटख रंगों और आकृतियों के कारण दूर से ही देखने वाले को अपनी ओर आकर्षित करती है. आर्टिस्‍ट @saner_edgar की ये कलाकृति में मैक्सिकन और भारतीय संस्‍कृति के समान पहलुओं को प्रदर्शित करती है. बकौल सेनर, इस चित्र की प्रेरणा उन्‍हें भारतीय दर्शन की उन अवधारणाओं से मिली है जो मैक्सिको तक पहुंची हैं. आध्‍यात्मिक पथ पर चलते हुए आत्‍म-ज्ञान से ज्ञान प्राप्‍त करने और पुनर्जन्‍म की चाह और आत्‍म-सुधार जैसे विषय इस कृति का हिस्‍सा बन गए हैं. बीच की खाली जगह के एक तरफ स्‍त्री और दूसरी तरफ एक पुरुष का चित्र सृष्टि के संतुलन को प्रदर्शित करते हैं. उनके कपडे मैक्सिकन और हिंदू परंपराओं की पहचान कराते हैं और इन दोनों संस्‍कृतियों के बीच एक सेतु की तरह काम कर रहे हैं. सेनर अपनी कलाकृतियों में अकसर मास्‍क का प्रयोग करते हैं जो मैक्सिकन सभ्‍यता का अभिन्‍न अंग है जिसका इस्‍तेमाल पशुओं की आकृति के माध्‍यम से मानव की वास्‍तविक प्रकृति को दर्शाने के लिए किया जाता है.
Artist: @Saner_edgar

Artist: @Saner_edgar

तमाम विदेशी कलाकारों के अलावा यहां कुछ भारतीय कलाकारों ने भी अपनी कलाकृतियों के माध्‍यम से अभिन्‍न छाप छोड़ी है. मुंबई के आर्टिस्‍ट समीर कुलावूर की ब्‍लॉक 17 की एक कलाकृति डिजीटल युग को प्रदर्शित करती है. उन्‍होंने इस चित्र में सोशल मीडिया और लोगों पर इसके प्रभाव को मैक्रो और माइक्रो लेवल पर दर्शाया है.
Artist: Sam_Kulavoor
अरावनी आर्ट प्रोजेक्‍ट ने दिल्‍ली की ट्रांसजेंडर कम्‍युनिटी के साथ समन्‍वय में अपनी पहली मुराल यहां ब्‍लॉक 5 में एन पी सीनियर सेकेंडरी स्‍कूल के सामने तैयार की है. एकता की थीम पर तैयार इस मुराल में उन ट्रांसजेंडर महिलाओं को प्रदर्शित करने की कोशिश की गई है जिनके साथ इस संगठन ने काम किया है. एक दिलचस्‍प बात है कि इस वॉल को तैयार करने में 15 ट्रांसजेंडर महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है.
Artist: Sajid Wazid

Artist: Nikunj 
कला के इन अद्भुत नमूनों को देखते हुए लोधी कॉलोनी की इन गलियों में मेरी मुलाकात अहमदाबाद के आर्टिस्‍ट निकुंज से हुई. निकुंज अभी ब्‍लॉक 5 में एक दीवार पर काम करने  की तैयारी कर रहे हैं. मुझे ये जानने में बहुत दिलचस्‍पी थी कि ऐसे किसी स्‍ट्रीट आर्ट वर्क को तैयार करने में पर्दे के पीछे कौन लोग काम करते हैं और कितना पेंट इस्‍तेमाल होता है और क्‍या-क्‍या साधन जुटाने पड़ते हैं. मेरे इन सवालों का जवाब भी मुझे जल्‍द ही मिल गया. निकुंज के लिए इस दीवार को तैयार करने की जिम्‍मेदारी निभा रहे स्‍ट्रीट आर्ट संगठन के प्रोजेक्‍ट मैनेजर नयनतारा और आरिफ भी उनके साथ साइट पर मौजूद हैं. मेरे पूछने पर नयनतारा ने बताया कि एक दीवार को आर्टिस्‍ट के लिए तैयार करने में 40 लीटर पेंट सिर्फ बेस कलर के लिए इस्‍तेमाल होता है. और इसके बाद आर्टिस्‍ट की थीम और चित्र के हिसाब से बाकी पेंट का इंतजाम किया जाता है. ये सारा पेंट एशियन पेंट्स के द्वारा उपलब्‍ध कराया जा रहा है. ऊंची दीवारों तक पहुंच के लिए क्रेन जैसी मशीन भी आर्टिस्‍ट को मुहैया कराई जाती है. मुझे बताया गया कि इस स्‍ट्रीट आर्ट फैस्टिवल में एक समय में ऐसी चार मशीनें अलग-अलग दीवारों पर काम में जुटी हैं. एक आर्टिस्‍ट के साथ कुछ वॉलंटियर भी उनकी मदद के लिए मौजूद रहते हैं. तो कुछ इस तरह तैयार होती हैं ये स्‍ट्रीट आर्ट.
पर्दे के पीछे के कलाकार : नयनतारा और आरिफ 
एक शहर के बीच रंगों के प्रति दीवानगी को रेखांकित करती वी लव दिल्‍ली’ की दीवार तो जैसे इस आर्ट डिस्ट्रिक का विजिटिंग कार्ड ही बन गई है. इस एक तस्‍वीर की भी लंबी कहानी है. वो कहानी फिर कभी. आप यहां आएं तो इसे देखने से न चूकें. 

इस आर्ट डिस्ट्रिक की कुछ और कृतियों ने मेरे दिल को छू लिया है. वे बार-बार मुझे अपनी ओर आकर्षित करती हैं. कुछ और दिलचस्‍प दीवारें यहां देखें...






पोलिश आर्टिस्‍ट NeSpoon के एम्‍ब्रॉयडरी पैटर्न हमेशा देखने वाले होते हैं लेकिन इस बार यहां बात कुछ अलग तरह से कही गई है. लोधी कॉलोनी के सेमल के लाल फूलों से प्रेरणा लेकर ब्‍लैक एंड व्‍हाइट स्‍कैच को इन चटकीले लाल पीले रंगों से इस तरह भरा है जैसे किसी ने दीवार पर कढ़ाई कर दी हो. इसमें यूरोपियन यूनियन के साथ-साथ ईशा-ए-नूर फाउंडेशन (आगा खां फाउंडेशन की एक पहल) का भी सहयोग नीस्‍पून को मिला है. इस दीवार को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर लोकार्पित किया गया था.

ब्‍लॉक 14 में आर्टिस्‍ट आरोन @aaronglasson की कृति तो लाजवाब है. दूर से देखने पर सब कुछ एब्‍सट्रेक्‍ट नज़र आता है. मगर एक-एक हिस्‍से को अलग-अलग करके देखने पर कुछ बातें उभर कर सामने दिखने लगती हैं. इस कृति में केले के डंठल को गौर से देखिए. जहां डंठल नहीं बल्कि दो हाथ एक दूसरे को थामे हुए हैं.
Artist: @aaronglasson
St+Art Foundation के सह-संस्‍थापक और कंटेंट डायरेक्‍टर, अक्षत नौरियाल कहते हैं कि, इस साल हमारे कम्‍युनिटी आउटरीच प्रयासों को लोगों से अच्‍छी प्रतिक्रिया मिली है. हमने लगभग 7500 घरों से अखबारों में पेम्‍फलेट आदि के जरिए उनकी प्रतिक्रिया, उनकी रुचियों और लोधी कॉलोनी की कहानियों को जानने के लिए संपर्क किया था. बाद में तमाम वर्कशॉप, परफॉर्मेंस और क्‍यूरेटेड टुर भी आयोजित किए. इस सबके जरिए हम यहां के लोगों के सहयोग के लिए उनका शुक्रिया अदा करना चाहते थे. अक्षत की बात सही थी. इसकी तस्‍दीक यहां की एक कम्‍युनिटी वॉल साथ-साथभी करती है जिसे यहां के स्‍थानीय लोगों ने मिलकर रंगा है. जाहिर है कि ये एक दीवार यहां के लोगों के दिलों में लोधी आर्ट डिस्ट्रिक के प्रति गर्व और स्‍वामित्‍व की भावनाएं जगाने में सफल रही है. उस रोज आर्टिस्‍ट अखलाख अहमद इस दीवार को फाइनल टल देने में मशगूल थे. अखलाख ने बताया कि वे सिर्फ इस दीवार पर लिखे शब्‍दों को सजा रहे हैं, बाकी का पेंट यहां के बच्‍चों और लोगों ने मिलकर किया है. मैंने कई स्‍थानीय लोगों से बात की, लोग इस बात पर एकमत नज़र आए कि इस स्‍ट्रीट आर्ट ने उनकी कॉलानी को एक खूबसूरत शक्‍़ल दी है. उन्‍हें यहां रहना अब पहले से ज्‍यादा अच्‍छा लगता है. नीरस दीवारें अब बोलने लगी हैं और लोग उनके घरों को देखने आने लगे हैं. स्‍ट्रीट आर्ट के जरिए देश के शहर की सूरत बदलने के लिए St+Art का शुक्रिया का हकदार है. 
कम्‍युनिटी वॉल को अंतिम रूप देते अखलाख 
यहां हर एक दीवार की अपनी अलग कहानी है जिसे कोई समझाने वाला चाहिए. वरना यूं ही इन दीवारों के चित्रों को देखकर आधा-अधूरा ही समझ आएगा. सो स्‍ट्रीट आर्ट ऑर्गेनाइजेशन खुद समय-समय पर यहां वॉक आयोजित करता है. इसके अलावा KLoDB (Knowing & Loving Delhi Better) से सुष्मिता सरकार (myunfinishedlife.com) भी यहां वॉक आयोजित करती हैं. सुष्मिता लंबे समय से लोधी कॉलोनी में रह रही हैं. सो वे इस इलाके को बेहतर पहचानती हैं. KLODB दिल्‍ली में नि:शुल्‍क वॉक आयोजित करता है. ये अच्‍छी पहल है. ऐसे ही प्रयास कला तक पहुंचने के लिएअमीर-गरीब की खाई को पाटने में अहम भूमिका निभाते हैं. मैं खुद समय-समय पर वॉक के जरिए यहां की स्‍ट्रीट आर्ट को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा. तो अब वक्‍़त निकालिए और अपने परिवार के साथ इस नायाब दुनिया को देखने के लिए निकल पडि़ए. 

इस लेख का संपादित संस्‍करण प्रतिष्ठित पोर्टल द बेटर इंडिया पर प्रकाशित हुआ है। 

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सौरभ आर्य
सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्‍योंकि यात्राएं ईश्‍वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्‍य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्‍ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्‍य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्‍सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्‍लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं. 

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5 टिप्‍पणियां:

  1. सौरभ जी, आपकी ये पोस्ट बहुत अच्छी लगी । इस तरह की पहल के लिए St+art और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है ।

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    1. बहुत शुक्रिया मुकेश जी. आपने इतने धैर्य से पढ़ा. आभारी हूं.

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