अमृतसर के नज़दीक अटारी-वाघा बॉर्डर की रिट्रीट
सेरेमनी को देखना हिंदुस्तान के कुछ चुनिंदा और अनूठे अनुभवों में से एक है. दुनिया
में शायद ही किन्हीं और दो देशों की सरहद
पर इस तरह के जोश और जुनून से लबरेज़ रिट्रीट कार्यक्रम होता होगा जहां न केवल
सीमा पर तैनात फौजी अपने-अपने अंदाज़ में सीमा पार खड़े दूसरे देश के फौजियों को
अपनी भाव-भंगिमाओं से चेतावनी देते नज़र आते हैं बल्कि दोनों तरफ़ दो देशों के लोग
अपने नारों की बुलंद आवाजों से ही एक दूसरे को हराने की कोशिश करते हों. जब
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते आम-तौर पर तनाव से ही गुज़रते रहते हों, ऐसे में अटारी जैसी सरहद की फि़ज़ा में बिगड़ते
रिश्तों की तपिश आसानी से महसूस की जा सकती है. यूं तो भारत की कुल 3323 किलोमीटर
की सीमा पाकिस्तान से लगती है मगर लोग इस बार्डर को सड़क मार्ग से सिर्फ
अटारी-वाघा बार्डर से ही पार कर सकते हैं. कुछ ही दिनों पहले इसी बार्डर से विंग
कमांडर अभिनंदन की वतन वापसी के वक़्त की तस्वीरें हम सबके जेहन में ताज़ा
होंगी. पिछले सप्ताह की अपनी अमृतसर यात्रा के दौरान मैंने इस सेरेमनी का एक बार
फिर आनंद लिया. मैं तीन साल पहले जून, 2016 में पहली बार यहां
आया था. लेकिन जितनी बार देखो, हर बार नया ही अनुभव होगा और
मेरा मानना है कि हर हिंदुस्तानी को अपने जीवन में एक बार यहां ज़रूर आना चाहिए. वो
समां कुछ और ही होता है जब रगों में दौड़ता खून उबाल मारने लगता है और पाकिस्तान की आंख में आंख डालकर ‘भारत माता की जय’ और ‘हिंदुस्तान
जिंदाबाद’ के नारे दिल की गहराइयों से निकलते हैं. सीमा पर
रिट्रीट सेरेमनी का ये सिलसिला भारत की बॉर्डर स्क्यिोरिटी फोर्स (बीएसएफ) और
पाकिस्तान की ‘पाकिस्तान रेंजर्स’ के
द्वारा 1959 से हर दिन यूं ही चला आ रहा है. ये दो मुल्कों की आपसी रंजिश के
साथ-साथ भाईचारे और आपसी सहयोग का भी प्रतीक है. कुछ इसी तरह की परेड़ का आयोजन
फ़ाजिल्का के नज़दीक सादिकी बॉर्डर और फिरोजपुर में हुसैनीवाला बार्डर
पर भी होता है.
ये
तो मुल्क के बंटवारे ने लोगों को बांट दिया वरना हमारे लिए तो लाहौर भी वैसा ही
प्यारा शहर था जैसे अमृतसर. आज़ादी तक तो इन दोनों शहरों का नाम भी एक साथ लिया
जाता था जैसे अपने चंडीगढ़-मोहाली हैं वैसे ही लाहौर-अमृतसर के ट्विन सिटी हुआ
करते थे. सब वक़्त की बात है, जमीन पर
एक लकीर क्या खिंची, सब अलग हो गया. साझा इतिहास और विरासत
वाले लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. बंटवारे के दर्द की दास्तां जितनी
कही जाए कम है.
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Pic Courtesy: Scoopwhoop |
खैर, सीमा के इस तरफ पूरा कार्यक्रम तयशुदा
तरीके से चलता है जिसमें भीड़ में गर्मजोशी पैदा करने वाले देशभक्ति के गीत,
सड़क पर तिरंगा लेकर दौड़ती हिंदुस्तानी युवतियां, बीएसएफ के आमंत्रण पर सड़क पर आकर देशभक्ति के गीतों पर नाचने और झूमने
उतरी महिलाओं का सैलाब, बीएसएफ के फौजियों की परेड़, बीएसएफ के फौजियों का अपनी मूंछों को ताव देना, पाकिस्तानी
रेंजरों की आंखों में घूरना, सिर की उँचाई तक किक मारना और
हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे...सब कुछ जैसे धीरे-धीरे खून की गरमी बढ़ाता है.
बड़े तैश में दोनों और के फौजी बार्डर के उसे गेट को खोलते हैं, बूटों की धमक जैसे बताती है कि कौन कितने जोश में है, पहले आंखों में आंखे डाली जाती हैं, फिर हाथ मिलते
हैं और फिर ढ़लते सूरज के साये में दोनों ओर की सेनाएं अपने-अपने ध्वज का सम्मान
करने के लिए ध्वज को उतारती हैं. बीएसएफ के उस जवान की भी दाद देनी पड़ेगी जो एक
तरह से हज़ारों की इस भीड़ की भावनाओं को कोरियोग्राफ करता है. आप ताली बजाने या
नारा लगाने में ज़रा सा ढ़ीला पड़े नहीं कि उसकी नज़र आपको पकड़ लेगी. ये जवान लगातार जोश बढ़ाने की कोशिश में नज़र आता है और धीरे-धीरे दर्शकों का जोश बढ़ता जाता है, मुठ्ठियां भिंचने लगती हैं, सांसें गरम होने लगती हैं और वतन के लिए जज़्बात चरम पर होते हैं...एक साथ हज़ारों लोग जब जय हिंद का नारा लगाते हैं तो हवा तक कांपती है.
इस बार सीमा पर इस आयोजन की सूरत बदली-बदली नज़र आ रही थी. मैं जब पिछली बार यहां आया था तो दर्शक दीर्घा में काफी बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहा था. इस बार तो यहां 50,000 की क्षमता वाला एक छोटा सा स्टेडियम जैसा पैवेलियन तैयार हो चुका है. दरअसल पिछले कुछ वर्षों में इस सेरेमनी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही है सो पहले के इंतज़ाम नाकाफी साबित हो रहे थे. दिलचस्प बात ये है कि सीमा-रेखा के उस पार पाकिस्तान की दर्शक-दीर्घा बहुत छोटी है और वो भी पूरी भरी नहीं होती. पता नहीं ये बात कितनी सही है कि पाकिस्तान में रेंजर्स ने आस-पास के गांव वालों को इस आयोजन में नियम से हाजि़र होने का हुक्म सुनाया हुआ है. खैर, जो भी हो, बॉर्डर के इस आयोजन में दोनों मुल्कों के समाज के खुलेपन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर की हल्की सी झलक देखने को मिलती है. सीमा के इस तरफ जहां महिलाएं सड़क पर आकर देशभक्ति के गीतों पर जी भर कर झूमती और गाती नज़र आती हैं वहीं पाकिस्तान की ओर की दर्शक दीर्घा में पसरी सुस्ती साफ़ नज़र आती है. ले दे कर दो चार ढ़ोल वाले ढ़ोल पीटते नज़र आते हैं. उस तरफ़ के उत्सव में महिलाएं जैसे शामिल ही नहीं हैं. उधर का हाल देखकर इधर की महिलाएं अपने आजाद ख़्याल मुल्क पर इतराती नज़र आती हैं.
हालात
तो इस बार पूरे बॉर्डर के ही बदले-बदले नज़र आते हैं. अटारी का रेलवे स्टेशन
सुनसान पड़ा है और इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट भी वीरान नज़र आती है. हमारी गाड़ी का
ड्राइवर अटारी गांव का ही रहने वाला है. वो कहता है कि ‘साहब, जब से सरकार ने
पाकिस्तान के साथ कारोबार पर पाबंदियां या सख्तियां की हैं इधर का माल इधर और उधर
का माल उधर है. और सबसे ज्यादा बुरी हालत पाकिस्तान के कारोबारियों की है. वहां
बॉर्डर के उस तरह हजारों ट्रक सामान ट्रकों में लदा पड़ा है. मार इधर भी पड़ी है
मगर देश के लिए इतना तो जरूरी ही था’.
बॉर्डर
के इस अद्भुत आयोजन में कोई भी आम आदमी बिना किसी टिकट के शामिल हो सकता है. ये
कार्यक्रम गर्मियों में 5.30 बजे शुरू होता है और पैवेलियन का गेट 3 बजे खोल दिया
जाता है. इसलिए लोग आगे की पंक्तियों में बैठने के लिए 3 बजे से जाकर अपनी जगह ले
लेते हैं. हां, बीएसएफ या भारतीय सीमा
शुल्क के विशेष अतिथियों के लिए यहां विशेष व्यवस्था है जिसमें यदि आपका नाम
पहले से बीएसएफ अधिकारियों के पास दर्ज है तो आपके वाहन को वीआईपी पार्किंग तक आने
दिया जाएगा अन्यथा आयोजन स्थल से तकरीबन एक किलोमीटर दूर ही वाहर छोड़ने होंगे.
वीआईपी अतिथियों के लिए बॉर्डर के बिल्कुल नज़दीक कुर्सियों की व्यवस्था है
जहां से पूरी सेरेमनी बहुत नज़दीक से और इत्मीनान से देख पाते हैं. कैमरा,
मोबाइल, पानी की बोतल के अलावा आयोजन स्थल पर
कुछ न लेकर जाएं. वहां अंदर भी पानी, कोल्ड ड्रिंक्स और
चिप्स आपकी सीट पर आप प्रिंट रेट पर खरीद सकते हैं.
समय: 5.30 से
6.30 बजे (गरमियों में) 5.00 से 6.00 बजे (सर्दियों में)
प्रवेश शुल्क:
नि:शुल्क
कैसे पहुंचें:
अटारी बॉर्डर अमृतसर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर है. यदि परिवार साथ हो तो अमृससर
से टैक्सी लेना ही बेहतर है. अन्यथा गोल्डन टेंपल, जलियांवाला बाग़ और घोड़े वाले चौक के पास से
ऑटो भी यहां तक आते हैं जो प्रति सवारी 50 से 60 रुपया लेते हैं.
सौरभ आर्य
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सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
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इस जगह और इस सेरेमनी की बात ही अलग है सर...
जवाब देंहटाएंजी प्रतीक जी. शुक्रिया :)
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