जब नाथु-ला पास (Nathu-La Pass) बना जी का जंजाल और सेना ने किया रेस्क्यू
अक्सर पहाड़ों पर यात्रियों के बर्फबारी में फंसने
और रेस्क्यू ऑपरेशन द्वारा निकाले जाने की ख़बरें अखबारों और टीवी में पढ़ता-सुनता आया हूँ. लेकिन ये सपने में भी नहीं सोचा
था कि कभी हम भी ऐसे ही फंस जाएंगे. दार्जिलिंग-गंगटोक यात्रा के तीसरे दिन यानि 27 दिसम्बर, 2019 की शाम
भारत-चीन सीमा यानि नाथू ला दर्रे की यात्रा से लौटते वक़्त हमारे साथ कुछ
ऐसा ही हुआ. ये दर्रा 1967 में हुए भारत-चीन युद्ध के कारण बहुत महत्वपूर्ण है. ये जानना और भी दिलचस्प है कि चीन के हाथों में जाने से कैसे बचा था नाथु-ला पास? ये 1967 की एक भुुुुला दी गई कहानी है.
खैैैर, उस रोज़ दिन की शुरुआत अच्छी खासी खिली हुई धूप के साथ हुई तो खराब मौसम की एक
प्रतिशत भी संभावना नज़र नहीं आ रही थी. हम लोग दिन में 12 बजे के आस-पास 14140 फीट की ऊंचाई पर नाथू ला दर्रे तक पहुंच गए.
बेशक अब तापमान माइनस 10 डिग्री था, दर्रे के रास्ते में
छांगू या कहिए सोगमो झील पूरी तरह जम चुकी थी, बॉर्डर पर ऑक्सीजन
की कमी से सांस लेने में ज़ोर लग रहा था, लेकिन चमकती धूप
बराबर हौसला बनाए हुए थी. हम जैसे-तैसे नाथू ला दर्र के शिखर तक पहुंचे, भारत और चीन के बॉर्डर पर कुछ वक़्त बिताया और फिर
धीरे-धीरे नीचे लौट आए. परिवार के लिए तो यही माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई हो गई थी.
सूरज अभी भी उन बर्फीली हवाओं से संघर्ष करते हुए हमारा हौसला बनाए हुए था. लेकिन
पहाड़ तो पहाड़ ठहरे, पल भर में मिजाज़ बदल जाता है इनका.
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Nathu la Pass at China Border |
लेकिन जैसे ही गाड़ी में सवार हुए हल्की-हल्की
बर्फ गिरनी शुरू हो गई. ड्राइवर ने शोर मचाना शुरू कर दिया. नाथू ला से वापसी में
इस गिरती बर्फ के बीच कुछ वक़्त छांगू लेक (Tsogmo Lake) पर
बिताया. अब उस जमी हुई झील को निहारने के सुख को कैसे छोड़ते भला. हज़ारों लोगों की
तरह हमें भी लगा कि ये बर्फबारी थोड़ी देर में रुक जाएगी. लेकिन ये लगातार बढ़ती
रही. अब ड्राइवर ने हमें डराने वाली ख़बर दी कि छांगू से कुछ किलोमीटर नीचे और
ज्यादा बर्फ गिर रही है. हम फुर्ती से गाड़ी में सवार हो गए और अब गैंगटोक की तरफ़
गाड़ी की रफ़्तार बढ़ गई. हम जल्द से जल्द उस इलाके को पार कर लेना चाहते थे. सड़क पर
गिरती बर्फ ऐसी लगी जैसे ऊपर से रुई की गोलियां बरस रही हों. इधर ड्राइवर ने बताया
कि पिछले साल 28 दिसम्बर को भी इसी तरह भारी बर्फ गिरी थी और
हज़ारों लोग यहां 2 दिन तक फंस गए थे. बात करते-करते बर्फ गिरने की
रफ्तार और बढ़ी. मैंने इतना खूबसूरत मंज़र पहले कभी नहीं देखा था. चंद मिनटों में हर
चीज सफेद हुई जा रही थी. मन इस दृश्य को देख बेहद खुश भी था मग़र दिल की धड़कनें
लगातार बढ़ रही थीं.
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नाथु-ला के रास्ते में बिगड़ना शुरू हुआ मौसम का मिजाज |
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नाथु-ला की ओर जाने वाले जंगली रास्ते |
इसी स्नो-फॉल के बीच हम धीमी रफ़्तार से आगे
बढ़ते रहे. लेकिन जल्द ही वो क्षण भी आ गया जब गाड़ी का चलना मुश्किल हो गया और
ड्राइवर को मजबूरन गाड़ी रोकनी पड़ी. हमारी दाईं तरफ एक छोटा सा ढ़ाबा नज़र आ रहा
था जहां पहले से ही 50-60 लोग खड़े थे. मैंने गाड़ी के अंदर से अंदाजा लिया तो तकरीबन 15 से 20 गाडि़यां
आस-पास खड़ी थीं. आगे न बढ़ने का सबसे बड़ा कारण कोई 200 मीटर बाद एक तीखी ढ़लान
पर सड़क के मोड़ का होना था. ऐसे में गाड़ी आगे लेकर जाने का मतलब मौत से पंजा
लड़ाना था. हमारे पास इंतज़ार के अलावा कोई विकल्प नहीं था. अब तक भूख भी लग चुकी
थी. ढ़ाबा सामने था और दूर से मैगी बनती दिख रही थी. गाड़ी के बाहर भीषण ठंड भी
हिम्मत तोड़ रही थी और डर था कि अगर गाड़ी से उतर कर मैगी खाने गए और इधर गाडियां
चल पड़ीं तो हमारी गाड़ी के पास आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. सो
बैठे रहे. पूरी उम्मीद थी कि अभी बर्फ गिरना बंद होगी और हम आगे बढ़ जाएंगे. लेकिन
अगले दस-पंद्रह मिनट तक गाड़ी एक इंच भी नहीं सरकी. सो मैगी का आदेश दे दिया.
ढ़ाबे को कुछ महिलाएं चला रही थीं. अचानक इतने सैलानियों को अपने ढ़ाबे में देख
उनके चेहरे पर अजीब सी चमक और हाथों
में ग़ज़ब की फुर्ती आ गई थी.
5-7 मिनट बाद गरमागरम
मैगी का बाउल हाथों में आया ही था कि बाहर गाडियों में हलचल शुरू हो गई. किसी ने
कहा कि रास्ता खुल गया है. बस फिर क्या था...भागते भागते वो गरम-गरम मैगी जल्दी–जल्दी
खाई. जिंदगी में इतनी बेरहमी से मैगी कभी नहीं खाई. 2 मिनट में सभी आकर गाड़ी में
बैठ गए. गाड़ी कोई 10 कदम चली होगी कि फिर रुक गई. अब तक बर्फ गिरनी बंद हो चुकी
थी. इसलिए ये यकीन और पुख़्ता हो गया था कि अब तो रास्ता खुल ही जाएगा. लेकिन
गाडियां थीं कि अब भी आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं. लोग बता रहे थे कि
फौज रास्ता खोलने की कोशिश कर रही है. हम इधर उधर टहलते हुए बस इंतजार ही करते
रहे. इस इंतज़ार में आधा घंटा और निकल गया.
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भूखे मुसाफिरों के लिए राहत की सांस बना ये ढ़ाबा |
इधर धीरे-धीरे शाम गहराने लगी और कुछ ही देर में
ड्राइवर ने वो कहा
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13 माइल पर फंसे वाहन |
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जब तक मुसीबत का अहसास नहीं हुआ तब तक खूब हुई मस्ती (Snow-fall at Nathu-La) |
मैंने गंगटोक में ट्रैवल एजेंसी को फोन लगाने की कोशिश
की. मगर वोडाफोन और जियो दोनों के नेटवर्क गायब थे. ड्राइवर के पास बीएसएनएल का फोन था, बड़ी मुश्किल से ट्रैवल एजेंसी में फोन लगा मगर
उधर बैठे आदमी ने भी कोई गाड़ी भेजने में असमर्थता जताई और सारी गाड़ियों के यहीं फंसे होने या ट्रिप के बीच में
होने की बात कही. इधर ड्राइवर ने गाड़ी साइड लगा उसे तिरपाल से ढक दिया और कहा कि
वह पैदल नीचे जा रहा है. उधर बहुत से लोग अभी भी गाड़ियों में थे. अब तक बर्फ गिरनी
बन्द हो चुकी थी, कुछ ही देर में हमें कुछ फौजी नज़र आए जो रास्ते
पर जमी बर्फ को काट रहे थे और गाड़ियों को निकालने में मदद कर रहे थे. लेकिन
ड्राइवर अभी भी गाड़ी लेकर आगे बढ़ने के पक्ष में नहीं था.
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स्नो फॉल के दौरान नज़़ारा |
उस
वक़्त जेहन में किस-किस तरह के ख्याल आ रहे थे...मैं बता नहीं सकता. हमारे साथ
जो अच्छी बात थी, वही सबसे खराब बात थी. अच्छी बात
थी कि हम अकेले नहीं थे. तीन परिवार साथ होने के कारण 6 बड़े और एक बच्चा यानि
कुल 7 लोग एक साथ थे और खराब बात भी यही थी इन 7 लोगों में तीन महिलाएं और एक बच्चा
भी था. हमारा एक गलत फ़ैसला हम सबकी जि़ंदगी पर भारी हो सकता था. आप सोच रहे होंगे
कि इस वक़्त वहां फंसे बाकी लोग क्या कर रहे थे. तो साहब बाकी में से अधिकांश
लोग भाग्यशाली थे कि उनके ड्राइवर धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ रहे थे. उन्होंने
अपने यात्रियों को हमारी तरह बीच रास्ते में नहीं छोड़ा था. लेकिन कुछ और लोग
हमारी तरह बदकिस्मत थे. वे अब तक पैदल निकल चुके थे. हालांकि बात तो ड्राइवर की भी सही थी. उस फिसलन भरे रास्ते पर कुछ भी हो सकता था. ब्रेक न लगने पर गाड़ी फिसलते हुए सीधे खाई में जा सकती थी. कुछ देर पहले एक गाड़ी ढलान से कुछ नीचे सरक भी चुकी थी. इसका मतलब था कि जो गाड़ियां चल रही थीं वो लोग रिस्क ही ले रहे थे. वो मोड़ वाकई ख़तरनाक था. लेकिन ड्राइवर चाहता तो हमें वहां से उतार कर खाली गाड़ी को निकाल सकता था. लेकिन अब वो भी जिद पर आ चुका था कि गाड़ी नहीं चलानी तो नहीं चलानी.
उस
वक़्त हम सभी ने सामूहिक रूप से यही विचार किया कि ड्राइवर को साथ लेकर पैदल ही
आगे बढ़ते हैं. कम से कम वो उस रास्ते से अच्छी तरह वाकिफ़ तो था. यही करने की कोशिश भी की. लेकिन हम लोग बमुश्किल 100 मीटर आगे बढ़े
होंगे कि सेना के एक जवान
ने पैदल चलते देख हमें टोक लिया. पूछताछ करने पर हमने सारा वाकया बता दिया. उस
फौजी ने बताया कि फौज के जवान आगे पूरे रास्ते पर मुस्तैदी से काम कर रहे हैं और
रास्ता एसयूवी के चलने लायक हो चुका है. फौजी ने हमारे ड्राइवर को भी हडकाया और
उसे गाड़ी लेकर आने के लिए कहा. ड्राइवर फौजी से ही उलझ गया कि अगर कोई रिस्क हुआ
तो क्या आप लिख कर देंगे कि जिम्मेदारी आपकी है. अब लिखित जिम्मेदारी कौन लेता
है?
हम लोगों ने एक बार फिर आगे बढ़ना शुरू किया. थोड़ा आगे बढ़ने पर फिर कुछ
जवान मिले जिन्होंने ड्राइवर को थोड़ा हौसला दिया तो थोड़ी घुड़की. उन्होंने उसे
समझाया कि रास्ता खोला जा रहा है सो वो वापिस जाकर गाड़ी लेकर आए. ड्राइवर गाड़ी
लेने के लिए वापिस लौट गया और हमने आगे बढ़ना जारी रखा. सड़क की फिसलन लगातार बढ़ती
जा रही थी. एकदम चिकनी हो चुकी बर्फ पर आखिर चलें तो कैसे चलें? इस बार भी फौजी भाईयों ने हमारी मदद की. सड़के
के साइड में गिरी बर्फ अभी भी कुछ नर्म थी और पूरी तरह जमी नहीं थी. इसलिए किनारों
पर चलना शुरू किया. गिरते-पड़ते हम लोगों के हाथ थाम कर उन्होंने जैसे-तैसे हमें
कोई 200 मीटर आगे कैंप तक पहुंचाया. रास्ते में उन्होंने हमें तसल्ली
दी कि
‘आप लोग बिल्कुल निश्चिंत रहें, ये ड्राइवर लोग जान-बूझकर लोगों को यहां छोड़ देते हैं क्योंकि ये जानते हैं कि आखिर में फौज मदद ज़रूर करेगी’. एक फौजी रास्ते भर बड़बड़ाता रहा कि ‘ये लोग नाथू ला की ट्रिप के लिए लोगों से 6000 से 8000 रु. तक लेते हैं और जब मुसीबत आती है तो सबसे पहले भाग खड़े होते हैं’.
कैंप के गेट पर आठ-दस फौजी और तैनात थे. हमारा मामला सुन उन्होंने हमें
वहीं इंतज़ार करने के लिए कहा. रात गहरा चुकी थी और बर्फ की ठंडक की चुभन छह-छह
गरम कपड़ों की तह में भी हड्डियों में महसूस हो रही थी ऊपर से इस संकट से निकल
पाने की अनिश्चितता. अब तक बेटे ने रोना शुरू कर दिया था, शायद हालात की नज़ाकत को वो भी भांप चुका था. हमारा कोई दिलासा, कोई गोदी, कोई बात उसे चुप नहीं कर पा रही थी. बच्चा तो बच्चा ही होता है आखिर. मैं सोच रहा था कि जो लोग और छोटे बच्चों के साथ हमसे कई किलोमीटर फंसे हैं उनका क्या हाल हो रहा होगा? बच्चे को रोता देख एक फौजी भाई न जाने कहाँ से एक स्टील के गिलास में गर्म पानी ले आए. बोले कि बच्चे को राहत मिलेगी. लेकिन एक घूँट से ज्यादा रचित ने पानी भी नहीं पिया. हम सुरक्षित खड़े थे लेकिन आगे क्या होगा...हमें कोई अंदाज़ा नहीं था. हर गुज़रता लम्हा बहुत धीरे-धीरे गुज़र रहा था.
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नाथुुुुु-ला पास पर राहत और बचाव अभियान |
तो क्या ये समझा जाए कि ड्राइवर गाड़ी को वहीं
छोड़ ऊपर नाथू ला की ओर निकल गया? उस
वक़्त कुछ भी नहीं कहा जा सकता था. ये मामला शायद फौज के बड़े अधिकारियों तक
पहुंचा होगा कि तभी अचानक एक जिप्सी हमारे पास आकर रुकी. मौके पर खड़े जवानों ने
जिप्सी की आगे वाली सीट पर बैठे अफसर को सेल्यूट किया. स्पष्ट था कि कोई फौज
का वरिष्ठ अधिकारी था. हम सभी को उस जिप्सी में बैठाया गया. हमें कहा गया कि
जिप्सी आपको नीचे शहर तक छोड़ेगी. जिप्सी में आगे की सीट पर बैठा फौजी अफसर लगातार
अपने मोबाइल से अपने किसी बड़े अधिकारी को लगातार रिपोर्ट दे रहा था कि
'रास्ते में बर्फ पर नमक का छिड़काव किया गया है, रास्ते में गांव के लोगों की भी मदद ली जा रही है, सभी गाडियों को धीमी रफ्तार में निकाला जा रहा है, लगभग 30 से 35 वाहन 3 माइल से पीछे हैं'.
बाद
में मुझे पता चला कि ये 60 इंजीनियर्स के कैप्टन विशाल थे जो 13 माइल से नीचे 3
माइल तक के एरिया के इंचार्ज थे और उन्हें इस स्ट्रैच में फंसे यात्रियों को
बाहर निकालने के ऑर्डर्स ऊपर से मिले थे. ऐसी स्थिति में सेना किस तरह से रेस्क्यू
ऑपरेशन करती है, हम बहुत करीब से देख रहे थे. इधर कैप्टन विशाल के
मोबाइल पर बीच-बीच में हमारे ड्राइवर को खोजे जाने के बारे में रिपोर्ट आ रही थीं.
जिप्सी में ब्लोअर चल रहा था जिसकी गरमी हमें तो राहत दे ही रही थी मगर सबसे ज्यादा
सुकून बेटे को मिला कि वो चैन से सो गया.
हम जिप्सी से बाहर देख रहे थे कि सड़क पर दर्जनों
गाडियां सड़क की साइड में खड़ी हैं. मैंने देखा कि हर दस-बीस कदम पर सेना के जवान
हाथ में कुदाल और फावड़ा लिए सड़क पर जमी बर्फ को काटने की कोशिश में जुटे हुए
हैं. कहीं-कहीं कुछ गांव वाले भी उनकी मदद करते नज़र आए. बाहर का नज़ारा डराने वाला
था. इस सड़क पर 5 किलोमीटर चल कर जाना न केवल बेवकूफाना फैसला होता बल्कि जान पूरी
तरह जोखिम में होती.
कोई 20 मिनट बाद हम थर्ड माइल के चैक पोस्ट पर थे. इधर कैप्टन
विशाल को ख़बर मिली कि हमारी गाड़ी और ड्राइवर को लोकेट कर लिया गया है. कैप्टन
ने जवानों को फोन पर निदेश दिया कि ड्राइवर का थर्ड माइल पहुंचना सुनिश्चित किया
जाए. कैप्टन विशाल को अब एक बार फिर 13 माइल तक के स्ट्रैच को चेक करके आना था
सो उन्होंने हमें वहीं उतारा और गेट पर खड़े जवानों को निदेश दिया कि बच्चे और
महिलाओं को चेकपोस्ट के अंदर बिठाया जाए. उस छोटी सी गुमटी नुमा चेक पोस्ट के
भीतर हीटर जल रहा था जिससे महिलाओं और बच्चे को फिर से सुकून का अहसास हुआ. मैंने
कैप्टन विशाल का शुक्रिया अदा किया तो वे मुस्कुराते हुए पलट कर बोले कि ‘कोई बात
नहीं. लेकिन ये एडवेंचर आपको याद रहेगा’.
फिर हम तीनों मित्र जवानों के साथ चेक-पोस्ट पर अपनी
गाड़ी का इंतज़ार करने लगे. हम जानते थे कि अब ड्राइवर के पास कोई विकल्प नहीं
बचा है और उसे इसी रास्ते से आना होगा. अगले 10 से 12 मिनट तक इस चेक पोस्ट से
गुजरने वाली हर गाड़ी को रोक कर चेक किया गया. इस इंतजार के दौरान वहां खड़े
जवानों से हल्की–फुल्की बातें होती रहीं.
जवानों ने हमें बताया कि पिछले साल यहां लगभग 3000 लोग
फंस गए थे और हमने उन्हें अपने कैंपों में ठहराया था. ये हमारे लिए हैरानी भरा था
कि क्या वाकई सेना के पास वहां इतने इंतजाम हैं कि वे अचानक आए 3000 लोगों को रात
में ठहरा सकें. एक जवान ने बताया कि
‘सर, यहां पूरा इंतजाम हैं. हम लोग चीन बॉर्डर पर हैं. जाने कब हालात बदल जाएं और अतिरिक्त फौज को यहां तैनात करना पड़ जाए. इसलिए पूरा इंतजाम रखते हैं’.
आखिर
में हमें हमारी गाड़ी नज़र आई. हम सभी को गाड़ी में बैठाया गया. गाड़ी पहले गियर में
धीमे-धीमे आगे बढ़ती रही. अभी भी आगे तकरीबन पांच किलोमीटर पर सड़क पर फिसलन थी. लेकिन
सभी गाडियां धीरे-धीरे आगे बढ़ती रहीं. गंगटोक की तरफ पहले चेकपोस्ट पर जहां बर्फ और
फिसलन ने हमारा पीछा छोड़ा...हमारी सांस में सांस आई. गंगटोक पहुंचते-पहुंचते हमें
रात के 9 बज गए. दिमाग सुन्न था... और दिन भर में जो कुछ गुज़रा हमें किसी फिल्म
या सपने जैसा ही लग रहा था.
अगली सुबह तक ये घटना दिल्ली के अखबारों तक भी पहुंच चुकी
थी. एक करीबी मित्र जानते थे कि हम लोग पिछले दिन नाथुला गए थे सो अखबार की ख़बर देख
उन्होंने अखबार की ख़बर का वाट्सएप्प भेजा. ख़बर के मुताबिक पिछली रात 300 गाडियां
और 1700 लोग वहां फंसे थे. बात सही थी. क्योंकि हमारे होटल के ही बहुत से गेस्ट पूरी
रात नहीं लौटे थे.
दरअसल 17 माइल से पीछे फंसे लोगों को रात में नहीं निकाला जा सका.
इन सभी 1700 लोगों को रात आर्मी कैंप में ही गुज़ारनी पड़ी और अगले दिन सुबह 10 बजे
तक ही निकाला जा सका. कुछ न्यूज़ पोर्टल पर आई ख़बरों में कैंपों की तस्वीरें नुमाया
थीं. चेहरे खुश नज़र आ रहे थे.
यकीनन फौज ने हर संभव मदद की होगी. फौज का जितना भी
शुक्रिया अदा किया जाए वो कम ही होगा. फौजी भाई उस वक़्त हम सबके लिए देवदूत बनकर
आए थे. ईश्वर उन सभी को उन कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए और शक्ति प्रदान
करें और उनके परिवारों को हर संभव खुशियां अता करें. जवान सीमा पर खड़ा है, इसलिए न केवल
हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं बल्कि सीमाओं के भीतर हम और हमारे परिवार भी सुरक्षित हैं.
जय जवान, जय हिंद !
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सौरभ आर्य
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सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
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#nathula #rescueoperation #indianarmy #sikkim
बहुत ही खतरनाक यात्रा वृतांत....में एकटक पढ़े जा रहा था बस कि कोई खुशी की खबर मिले और जैसे ही आर्मी के विशाल जी मील तो चैन मिला...salute है भारतीय सेना को और अक्सर नाथू ला पे यह स्थिति कभी भी होती है...जय हिंद बहुत ही रोमांचक यात्रा...
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रतीक जी. जी हां, नाथुला पर साल में एक या दो बार ऐसे गंभीर हालात बनते हैं. और हमारी सेना का जवाब नहीं. जय हिंद, जय हिंद की सेना.
हटाएंरोंगटे खड़े करने वाला अनुभव। कसा हुआ, प्रवाहित होता वृत्तांत।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जयश्री जी. ब्लॉग से जुड़ी रहें. आप जैसे लेखक मित्रों की टिप्पणियां निरंतर लिखने का हौसला देती हैं.
हटाएंसिक्किम से नाथू-ला या बाबा हरभजन सिंह की समाधि की तरफ जाने वाला रास्ता छांगू लेक के जमे होने से एडवेंचर और खतरे दोनों को चरम पर ले जाता है। 2012 में मैं इस रोमांच को महसूस कर चुका हूँ, पर आपका एडवेंचर उससे भी 10 कदम आगे का है। शानदार यात्रावृत्तांत। फौज को कोटिशः धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया. सही कहा आपने. उस रोज वहां हर चीज अपने चरम पर थी. ये एक अलग ही अनुभव था. एक ही दिन में कुदरत ने हमारी कई तरह की परीक्षाएं लीं.
हटाएंBahut hi romanchak yatra rhi apki👍👍 salute to our army
जवाब देंहटाएंजी. बहुत धन्यवाद. यायावरी से जुड़े रहें.
हटाएंरोचक वर्णन ,,पढते समय सांस थम गया ,,अब आगे kya होगा? निचित रूप से ये Adventure आपको हमेशा याद रहेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया बंंधु. जी. उस वक़्त तो हमें भी हर पल यही अहसास हो रहा था कि न जाने अगले पल क्या होगा. यकीनन ये एक यादगार यात्रा रही. इसी प्रकार यायावरी को अपना प्यार देते रहें.
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