सुभाष
चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज़ की यादों को जिंदा रख रहा है मोइरांग (मणिपुर) का आईएनए
म्युजियम
INA Museum of Moirang (Manipur)
भारत
की आजादी के संघर्ष में सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज़ एक ऐसा अध्याय है जो
सबसे ज्यादा रोमांचक कहानियों, रहस्यों
और अकल्पनीय साहस की कहानियों से भरा हुआ है. सुभाष का जीवन जितना रहस्यमयी रहा
उनकी मृत्यु उससे भी अधिक. हमें बताया गया है कि 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में बोस की मृत्यु हुई. लाख विवादों के बावजूद हम 18 अगस्त को ही उनकी पुण्य तिथि मानकर
अपने श्रृद्धा सुमन उन्हें अर्पित करते आए हैं. कुछ वक़्त पहले मणिपुर की यात्रा
की तो मोइरांग में आज़ाद हिंद फौज़ के मुख्यालय और अब आईएनए म्युजियम की यात्रा
के बाद लगा जैसे किसी तीर्थ स्थान की यात्रा कर ली हो.
मोइरांग, मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर एक
छोटा सा कस्बा है जो इसके पास मौजूद पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील
लोकतक के कारण टूरिस्ट मैप पर अपनी जगह बना रहा है. लेकिन आज़ाद हिंद फौज से
जुड़े इतिहास के कारण मोइरांग का एतिहासिक महत्व कहीं ज्यादा है.
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मोइंरांग का आईएनए संग्रहालय |
कैसे बनी
आज़ाद हिंद फौज
आज़ाद
हिंद फौज का गठन ब्रिटिश इंडियन आर्मी के युद्ध बंदियों द्वारा किया गया था जिन्हें
जापान ने मलेशिया आौर सिगापुर से पकड़ा था. बाद में सुभाष के आह्वान पर मलेशिया, सिगापुर और बर्मा में बसे भारतीयों ने भी आज़ाद हिंद फौज
का हिस्सा बनना शुरू कर दिया. लोग साथ आते गए कारवां बनता गया. यहां तक कि महिलाएं
भी जासूस से लेकर बंदूक चलाने तक की भूमिकाओं में भीं. हजारों लोग वॉलंटियर के रूप
में साथ थे. फिर जापानी फौज के साथ मिलकर आज़ाद हिंद फौज ने दूसरे विश्व युद्ध के
दौरान तमाम युद्ध लड़े.
मोइरांग में फहराया गया था पहली बार तिरंगा
दूसरे
विश्व युद्ध के दौरान मोइरांग आज़ाद हिंद फौज यानी कि Indian
National Army (INA) का मुख्यालय था. मोइरांग में कर्नल शौकत मलिक
ने श्री माइरेमबाम कोईरांग सिंह (बाद में वे मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री बने) की
मदद से 14 अप्रैल, 1944
को भारत की धरती पर पहली बार आईएनए के तिरंगे को फहराया था. जबकि इस तिरंगे को
पहली बार 30 दिसंबर, 1943
को खुद सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर में फहराया था. उस समय नेताजी आईएनए
के कमांडर और इंडियन नेशनल गवर्नमेंट के प्रेसिडेंट थे. मोइरांग में जिस जगह
तिरंगा फहराया गया था आज वहां आईएनए का एक संग्रहालय बन गया है. यहां एक दीवार पर
एक पत्थर लगा है जिस पर लिखा है:
आजाद हिंद फौज शहीद स्मारक और संग्रहालय
मोइरांग में जहां
तिरंगा फहराया गया था आज वहां एक संग्रहालय मौजूद है जो दूसरे विश्व युद्ध, सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज़ की स्मृतियों को जीवंत कर
रहा है. इसकी चार-दीवारी के भीतर कदम रखते ही उस दौर की कहानियां आंखों के आगे
तैरने लगती हैं. संग्रहालय में उस दौर में हुए युद्धों में आज़ाद हिंद फौज के
जवानों द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार, हैल्मेट और तमाम अन्य चीजें रखी हुई हैं. साथ ही तमाम किताबें, दस्तावेज, सुभाष के हाथों से लिखे खत, पांडुलिपियां और तस्वीरें जो उस दौर में घटित हुई घटनाओं की
तस्दीक करती हैं.
इसी म्युजियम में सुभाष के एक पनडुब्बी में तीन महीने की
यात्रा कर सिंगापुर से जर्मनी पहुंचने, आज़ाद हिंद फौज़ के आगे बढ़ने और पीछे हटने के रूट के नक्शे भी
मौजूद हैं. इस संग्रहालय का उद्घाटन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 23
सितंबर, 1969 को किया. म्युजियम का स्टाफ बताता है कि म्युजियम के
अधिकारियों ने पूरे मणिपुर और आस-पास के इलाकों से आज़ाद हिंद फौज और नेताजी से
जुड़ी चीजों को इकट्ठा किया है. ये मेहनत दिखती भी है. लेकिन देश के सबसे गौरवशाली
इतिहास को शायद इससे बेहतर तरीके से संजोया जाना चाहिए था. काश देश की राजधानी में
कोई राष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय होता. लेकिन ऐसा हो न सका. सुभाष को लेकर एक
अजीब सी खामोशी और चुप्पी शुरू से अब तक देखने में आती है जो समझ से परे है.
लेकिन सुभाष हमेशा लोगों के दिलों पर राज करते रहे. अब इस संग्रहालय की देख-देख
मणिपुर सरकार कर रही है.
संग्रहालय में मौजूद हैं 3 खास स्मारक -
1. सुभाष चंद्र बोस की कांसे की प्रतिमा:
इसी
मैमोरियल के परिसर में बाहर की ओर सुभाष चंद्र बोस की कांसे एक आमदकद प्रतिमा लगी
है जो सबके आकर्षण का केंद्र रहती है. इस प्रतिमा के पास आकर लगता है कि सुभाष बोस
कहीं आस-पास ही हैं. इसे 1971 में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दान किया गया था.
2. युद्ध स्मारक :
मोइरांग के
इस आईएनए म्युजियम में ही एक ओर एक युद्ध स्मारक दिखाई पड़ता है. ये
युद्ध स्मारक आज़ाद हिंद फौज के शहीदों को समर्पित है. असल में ये स्मारक आजाद
हिंद फौज के शहीदों की याद में सिंगापुर में नेताजी की देख-रेख में 1945 में बनाए
गए एक स्मारक की प्रतिकृति है जिसे अंग्रेजों ने सिगापुर पर कब्जे के बाद उसी साल
के आखिरी दिनों में नष्ट कर दिया था. फिर 1968 में मोइरांग के महत्व को देखते हुए
इस स्मारक को फिर से बनाने का निर्णय लिया गया और 1969 में मोइरांग के इस स्मारक
का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री, श्रीमति
इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था. आज़ाद हिंद फौज और जापानी इंपीरियल आर्मी
के हजारों जवानों ने मणिपुर में इंफाल युद्ध (Battle of Imphal) में अपनी
शहादत दी थी तब जाकर मणिपुर घाटी के 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ब्रिटिश हुकुमत
के चंगुल से आज़ाद कराया जा सका. ये स्मारक उन्हीं शहीदों की याद दिलाता है.
3. जहां पहली बार फहराया गया तिरंगा:
यहां तीसरा स्मारक मणिपुरी शैली में बना एक ढ़ांचा है जिस पर यहां
पहली बार झंडा फहराए जाने की कहानी दर्ज है. हांलाकि इस जगह पहले मोइरांग के राजाओं
की ताजपोशी हुआ करती थी लेकिन 1968 में इसे तिरंगा फहराए जाने की याद में एक स्मारक
का रूप दे दिया गया.
इस संग्रहालय और शहीद स्मारक द्वारा आज भी तमाम अन्य कार्यक्रमों
के साथ-साथ सुभाष चंद्र बोस जयंती (23 जनवरी), ध्वाजारोहण
दिवस (14 अप्रैल) और आज़ाद हिंद हुकूमत दिवस (21 अक्तूबर) मनाए जाते हैं. कुल मिलाकर
सुभाष को हमारी स्मृतियों में जि़ंदा रखने की ये स्मारक पूरी कोशिश कर रहा है.
क्या आज़ादी से पहले ही बन गई थी भारत की सरकार ?
आपको जानकर आश्चर्य
होगा मगर ये सच है कि 15 अगस्त, 1947 को भारत की आज़ादी से बहुत पहले ही भारत की पहली सरकार का गठन हो
चुका था. मणिपुर के बड़े क्षेत्र को आज़ाद कराने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने
पहली अंतरिम सरकार का गठन किया और इसी मोइरांग को मुख्यालय बनाया गया. ये स्वतंत्र
भारत की पहली अपनी सरकार थी.
आज ये सब पढ़ो तो लगता है कि क्या नेताजी को बड़ा
सपना देख रहे थे? तो साहब, ऐसा नहीं
है. ये शख़्स कोई साधारण आदमी नहीं था. नेताजी हर चीज के नाप-तोल कर आगे बढ़ रहे
थे. आज़ाद हिंद फौज में वतन पर जान कुर्बान करने का जज़्बा लिए
लड़ने वालों की कमी नहीं थी. और अंग्रेज सरकार इस उठती आंधी की ताकत को समझ चुकी
थी और सुभाष को अपना सबसे बड़ा शत्रु घोषित कर चुकी थी.
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आज़ाद हिंद फौज़ का मंत्रिमंडल |
दिलचस्प बात है कि इस सरकार को 18 देशों का समर्थन भी मिला. सुभाष
चंद्र बोस आईएनए के कमांडर और प्रोविजनल गवर्नमेंट के राष्ट्रपति बने. सरकार की
अपनी करेंसी, डाक टिकटें, फौज के अपने तमगे, रैंक और चिन्ह भी थे. मतलब सब कुछ व्यवस्थित.
आज़ाद हिंद फौज़ को पूरे देश से अपार धन, सोना-चांदी दान में मिल रहा था.
सब चाहते थे कि नेताजी ब्रिटिश हुकूमत से
देश को आजाद कराएं और सबको इस बात का पूरा भरोसा भी था. लेकिन विश्व युद्ध की परिस्थितियों
और बर्तानिया हुकूमत की ताकत के सामने ये जीत ज्यादा दिन बनी नहीं रह सकी. मित्र राष्ट्रों
की सेनाओं ने फिर से हारे हुए इलाके को जीत लिया और आज़ाद हिंद फौज़ को मलय प्रायद्वीप
तक धकेल दिया और अंतत: सिगापुर में इसे समर्पण करना पड़ा. उधर खुद सुभाष चंद्र बोस
की सोवियत यूनियन की ओर जाने की कोशिश में 18 अगस्त,1945 को
एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई.
हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगे सुभाष
सुभाष की मृत्यु
पर देश कभी यकीन नहीं कर पाया. बहुत लोगों का मानना है कि सुभाष की मृत्यु उस
दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि वे बाद में बहुत वर्षों तक जिंदा रहे. कभी गुमनामी
बाबा तो कभी किसी और रूप में अक्सर उनके यहां-वहां देखे जाने की ख़बरें भी आती
रहीं. मगर पुख़्ता तौर पर कभी उनकी पहचान सामने नहीं आ पाई. वे एक रहस्य बन कर
रह गए. लेकिन शायद कहीं किन्हीं फाइलों में उनकी सच्चाई दर्ज़ है जो अभी तक
सामने नहीं आ पाई है. हम उम्मीद ही कर सकते हैं कभी न कभी देश के इस सबसे प्यारे
बेटे के बारे में जो भी सच इस देश की फाइलों में है, वो ज्यों का त्यों जनता के सामने लाया जाएगा. सच चाहे जो
भी हो, सुभाष हमेशा हमारे दिलों में राज करते रहेंगे. वतन का
नाज़ है अपने इस सपूत पर. जय हिंद !
दोस्तो इतिहास से जैसे सुभाष गायब कर दिए गए, उनके बारे में बहुत कम बात होती है...न जाने वो किस मिट्टी के अहसान फरामोश लोग हैं जो चाहते हैं कि सुभाष स्मृतियों से गायब हो जाएं. यदि आपको उचित लगे तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों से भी साझा करना न भूलें. ताकि कुछ और लोग सुभाष की स्मृतियों से जुड़ सकें. शुक्रिया धैर्य से पढ़ने के लिए.
कुछ और तस्वीरें मोइरांग के आईएनए म्युजियम से...
सौरभ आर्य
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सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
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जबरदस्त जानकारियां.….मोइरंग कांगला जाना एक बहुत अच्छा अनुभव है...INA स्थापना musuem उसकी सब जानकारियां तिरंगा ग़ज़ब पोस्ट है भाई
जवाब देंहटाएंPratik Gandhi शुक्रिया प्रतीक भाई. जिन्हें सुभाष से मुहब्बत है वही ऐसी बात कह सकता है. अन्यथा लोगों की स्मृति से सुभाष पहले ही ओझल हो चुके हैं. अब छद्म नायकों का दौर है और कोई हैरानी नहीं कि जनता को भी ऐसे ही नायक सच्चे नायक नज़र आ रहे हैं. पुनः शुक्रिया 🙏
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