स्वदेशी आंदोलन की स्मृतियों को समर्पित है राष्ट्रीय हथकरघा दिवस
National Handlooms Day and Swadeshi Movement
आज हम छठा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना रहे हैं. इस
बार #Vocal4Handmade हैशटैग
के साथ देश में हाथ से बने कपड़ों यानी कि हथकरघा उत्पादों के प्रयोग का आह्वान
किया जा रहा है. ये एक तरह से #Vocalforlocal का ही विस्तार है. हैंडलूम्स पर बने उत्पादों और इससे जुड़े उद्योग की ओर विशेष
रूप से ध्यान देने के लिए भारत सरकार 2015 से हर वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय
हथकरघा दिवस का आयोजन करती आ रही है. कितना विचित्र है कि हथकरघा की समृद्ध विरासत
वाले देश को आज हथकरघा को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. राष्ट्रीय हथकरघा जनगणना के अनुसार आज देश में लगभग 27.83 परिवार हथकरघा और इससे जुड़े
काम-काज से जुड़े हुए हैं और दुनिया का लगभग 85 प्रतिशत हथकरघा वस्तुओं का उत्पादन
भारत में ही होता है. दुनिया का सबसे बेहतर हुनर और कच्चा माल देश में उपलब्ध है
मगर हम फिर भी हथकरघा को उसका उचित सम्मान नहीं दे सके.
साड़ियाँ बनाने वाले कारीगरों की
उंगलियां जब हथकरघे पर थिरकती हैं तो उसका पसीना और हुनर मिलकर ताने-बाने से जो
जादू तैयार करते हैं वो सर चढ़ कर बोलता है. हैंडलूम की साड़ियों के प्रति लोगों की
दीवानगी का आलम ये है कि इसके क़द्रदान आज भी कारीगरों को ढ़ूंढ़ते हुए तमाम शहरों
की तंग गलियों में घूमते हुए मिल जाएंगे. फिर भी हथकरघा अपने अस्तित्व के लिए
संघर्ष करता नज़र आता है. क्या वजह है कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक बनारसी,
कांजीवरम,
पैठणी,
चंदेरी, तसर
सिल्क,
जामदानी,
मंगलागिरी,
माहेश्वरी, पटोला साड़ियों और कश्मीरी शॉल के कद्रदानों के देश में इनके कारीगरों को रोजी-रोटी
जुटाना मुश्किल हो रहा है?
कहां
चूक गए हम अपनी इतनी समृद्ध विरासत को सहेजने में? क्या राष्ट्रीय हथकरघा दिवस जैसे आयोजनों से निकलेगी
कोई राह? और
क्या संबंध है राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का हमारे स्वतंत्रता आंदोलन से? आइये
इन्हीं कुछ सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करें इस खास अवसर पर.
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कांजीवरम की हैंडलूम की साड़ियाँ |
7 अगस्त को ही क्यों मनाते हैं राष्ट्रीय हथकरघा दिवस?
राष्ट्रीय
हथकरघा दिवस के लिए 7 अगस्त का दिन चुने जाने के पीछे एक एतिहासिक महत्व है.
दरअसल ये बात सन 1903 की है जब दिसंबर महीने में पूरे देश में ये बात फैल गई कि
अंग्रेज सरकार बंगाल का विभाजन करने जा रही है. देश भर में बैठकें होने लगीं और
विरोध के स्वर उठने लगे. सुरेंद्रनाथ बनर्जी
और कृष्ण कुमार मिश्र उस समय के अख़बार ‘हितवादी’ और ‘संजीवनी’ में ने कई लेख लिखे.
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विदेशी कपड़ों का बहिष्कार |
फिर भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वो महत्वपूर्ण पड़ाव भी आया
जब 7 अगस्त, 1905 को कोलकाता के ‘टाउन हाल’ में ‘स्वदेशी आंदोलन’ शुरू
किए जाने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का एलान कर दिया गया. इसके बाद राष्ट्रवादी
नेताओं ने बंगाल के विभिन्न इलाकों का दौरा किया और लोगों से मैनचेस्टर में बने
कपड़ों का बहिष्कार करने का आह्वान किया. और धीरे-धीरे ये आंदोलन पूरे देश में
फैल गया. जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी. इस समय महात्मा गांधी ने
स्वदेशी वस्त्र तैयार करने का मंत्र देकर इस आंदोलन को बहुआयामी दिशा प्रदान कर
दी थी. घर-घर चरखे चलने लगे और लोग खादी के कपड़े पहनने लगे.
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जेल में चरखा चलाते महात्मा गांधी
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बेशक स्वदेशी आंदोलन
बंगाल का विभाजन नहीं रोक पाया मगर इसके दूरगामी परिणाम रहे. लोग कपड़ों के मामले
में आत्मनिर्भर होने लगे, लोगों को रोजगार मिलने लगा और
विदेशी माल के आयात में कमी होने लगी. अंग्रेज सरकार बौखलाने लगी और इस आंदोलन का
दमन करना शुरू कर दिया. इससे लोगों में राष्ट्रीयता की भावना पनपने लगी जिसने स्वतंत्रता
आंदोलन में आम जनमानस को उठती राष्ट्रीयता की लहर से जुड़ने और सीधे तौर पर
भागीदार बनने का एक बहाना दे दिया. जुलाई 1903 में सरस्वती पत्रिका मेंं महावीर प्रसाद द्विवेेदी की एक कविता प्रकाशित हुुुुई थी :
विदेशी वस्त्र हम क्यों ले रहे हैं?
वृथा धन देश का क्यों दे रहे हैं?
न सूझै है अरे भारत भिखारी!
गई है हाय तेरी बुद्धि मारी!
हजारों लोग भूखों मर रहे हैं;
पड़े वे आज या कल कर रहे हैं।
इधर तू मंजु मलमल ढ़ूढता है!
न इससे और बढ़कर मूढ़ता है।
महा अन्याय हाहा हो रहा है;
कहैं क्या नहीं जाता कुछ कहा है।
मरैं असग़ार बिसेसर और काली;
भरैं घर ग्राण्ट ग्राहम और राली।
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स्वदेशी वस्त्र की हमको बड़ाई,
विदेशी लाट ने भी है सुनाई।
न तिस पर भी हमे जो लाज आवै,
किया क्या हाय रे जगदीश! जावै।
न काशी और चन्देरी हमारी;
न ढाका,
नागपुर नगरी बिचारी।
गयी है नष्ट हो; जो देश भाई!
दया उनकी तुम्हें कुछ भी न आई।
अकेला एक लुधियाना हमारा;
चला सकता अभी है काम सारा।
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फिरैं,
तिस पर,
भला,
जो और के द्वार;
हमें,
फिर,
क्यों नहीं सौ बार धिक्कार?
स्वदेशी वस्त्र का स्वीकार कीजै,
विनय इतना हमारा मान लीजै।
शपथ करके विदेशी वस्त्रा त्यागो;
न जावो पास,
उससे दूर भागो।
अरे भाई! अरे प्यारे! सुनो बात,
स्वदेशी वस्त्र से शोभित करो गात।
वृथा क्यों फूंकते हो देश का दाम,
करो मत और अपना नाम बदनाम!
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क्यों बदहाल हो गई हथकरघा की दुनिया ?
1947 में देश आजाद हुआ. 80 के
दशक तक तो सब ठीक-ठाक रहा. एक तरह से हथकरघा ने सुनहरा दौर देखा. लेकिन सन 1985 के
बाद सूत व कपास की कीमतों में खूब तेजी आने लगी और हैंडलूम के कारोबार सिमटने पर
मजबूर हो गए. उधर धीरे-धीरे देश विदेशी बाज़ारों के लिए खुलने लगा तो नए विदेशी
उत्पादों के सामने एक बार फिर हथकरघा उद्योग चरमराने लगा. ये सब अचानक नहीं
हुआ....सब बहुत आहिस्ता, आहिस्ता. सबने जैसे हाथ छोड़ दिया
हथकरघा का. हथकरघा के बुनकर हुनरमंद होने के बावजूद अपने वाजिब मेहनताने के लिए भी
तरसने लगे.
पूरे परिवार केे दिन भर खटने के बाद भी यदि कारीगरों को उनकी मेहनत से घर का चूल्हा-चौका
ठीक से चलाने लायक आमदनी न हो तो कोई इस पेशे में कब तक बना रहेगा. सो, धीरे-धीरे लोग इस काम को छोड़ते गए और ज्यादा
बदहाली आज से पिछले दसेक सालों के दौरान देखने में आई. अब देश में लोगों को और
तमाम तरह के काम मिलने लगे जहां दिन की मजदूरी इस काम से ज्यादा थी.
हाल के सालों
में भी नोटबंदी कहर बन कर टूटी इन कारीगरों पर. हाथ से मुंह तक सीमित रहने वाले हज़ारों
कारीगर एक बार फिर मजबूर हो गए. यहां तक की बुनकरी से जुड़े लोगों ने ये पुश्तैनी
काम छोड़़ रिक्शा चलाना तक मुनासिब समझा. अब एक बार फिर कोरोना महामारी कारीगरों की कमर तोड़ रही है.
मैं देश के तमाम इलाकों में बुनकरों से मिला हूँ उनमें से अधिकांश का कहना है कि उनके बच्चे अब ये काम नहीं करना चाहते क्योंकि यहाॅँ अब इज़्ज़त की रोटी कमाना मुश्किल हो चला है.
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हैंडलूम के लिए धागे |
लोगों का मोहभंग क्यों हुआ हथकरघा उत्पादों से ?
हथकरघा उद्योग की माली हालत के बीच अव्वल तो अच्छे उत्पाद मिलने
मुश्किल हो गए. दूसरे इन उत्पादों की ऊँची कीमतें इन्हें आम आदमी की पहुंच से
बाहर करने लगीं. और तीसरा सबसे बड़ा कारण गुणवत्ता के लिए हॉलमार्क जैसी किसी व्यवस्था
के अभाव में असली और नकली उत्पादों में फ़र्क करना बड़ा मुश्किल होता गया. बाज़ार
में हैंडलूम प्रोडक्ट्स के नाम पर बिकने वाले कपड़ों की हालत ये है कि आप अलसी और
नकली को आसानी से पहचान ही नहीं सकते. अब ऐसे में कौन मंहगे कपड़े खरीद कर ठगा
जाना पसंद करेगा. और कहीं असल उत्पाद मिल भी रहे थे तो उसका लाभांश कारीगरों तक
ही नहीं पहुंच पाता था. सब मिडिल मैन की जेब के हवाले.
एक और बड़ी समस्या पावरलूम
से हैंडलूम को मिलने वाली चुनौती थी. कारीगर मेहनत से जो डिजाइन हथकरघा उत्पादों
के लिए तैयार करते, पावरलूम वाले उसकी
नकल कर धडल्ले से हूबहू वैसे ही उत्पाद बहुत कम समय में तैयार कर देते. अच्छे
प्रोडक्ट न मिलने के चलते धीरे-धीरे लोगों का भी हथकरघा से मोभंग होता गया. कुछ
निजी उद्यमियों और कंपनियों ने ज़रूर अपने स्तर पर हथकरघा को बढ़ावा देने की
कोशिश की लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस दिशा में एक आंदोलन जैसा कुछ नहीं था.
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस ने बदलनी शुरू की कहानी
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हैंडलूम मार्क...गुणवत्ता का आश्वासन
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2015 में जब सरकार ने पहले
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत की तो कहानी बदलनी शुरू हो गई. इस पहले ही आयोजन
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘भारतीय हथकरघा’ या कहिए कि इंडिया हैंडलूम ब्रांड की शुरुआत की. उधर असली हैंडलूम उत्पादों की पहचान में ग्राहकों की सहूलियत के लिए हैंडलूम मार्क भी अब प्रचलन में है. ये मार्क
अब ग्राहकों को इस बात की तसल्ली देता है कि उत्पाद 100 प्रतिशत
असली है.
प्रधानमंत्री जी का कहना था
कि ‘हथकरघा
गरीबी से लड़ने में एक अस्त्र साबित हो सकता है, उसी तरह जैसे स्वतंत्रता के संघर्ष
में स्वदेशी आंदोलन था’.
प्रधानमंत्री जी का कहना था कि खादी और हथकरघा उत्पाद भी वही उत्साह प्रदान करते
हैं, जैसा कि मां के प्रेम से प्राप्त होता है.
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इंडिया हैंडलूम ब्रांड की शुरुआत करते प्रधानमंत्री
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प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2015 में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत करते हुए कहा था कि सभी परिवार घर में कम से कम एक खादी और
एक हथकरघा का उत्पाद जरूर रखें. प्रधानमंत्री ने पांच एफ: फार्म टू फाइबर, फाइबर टू फैब्रिक, फैब्रिक टू फैशन और फैशन टू फॉरेन का मंत्र दिया जो हथकरघा के पुनर्रुद्धार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. तमाम अवसरों पर प्रधानमंत्री और वस्त्र मंत्री स्वयं
हथकरघा पर बने कपड़ों में नज़र आने लगे और इस सबका आम लोगों पर काफी असर हुआ. राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत के साथ ही हर वर्ष इस
आयोजन के साथ हथकरघा उद्योग में नए प्राण फूंकने का प्रयास होता रहा है.
आपको याद
होगा कि ऐसे ही एक राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर वस्त्र मंत्री श्रीमती स्मृति ज़ूबिन इरानी ने #Iwearhandlooms शीर्षक से
एक हैशटैग चलाया जिसे जनता ने हाथों-हाथ लिया. बड़े-बड़े सेलेब्रिटी इस आह्वान पर
उनके साथ जुड़े और सोशल मीडिया हैंडलूम प्रोडक्ट्स के चित्रों से भर गया. हथकरघा
साडि़यां एक बार फिर से चर्चा में थीं. कारीगरों को भी सरकारी स्तर पर तमाम तरह
की इमदाद और बुनकर सेवा केंद्रों के जरिए सहूलियतें दी जानी शुरू हुईं जिनमें हर
साल इजाफ़ा ही हो रहा है.
आम आदमी की पहुंच होगी तभी फलेगी-फूलेगी ताने-बाने की दुनिया
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हथकरघा उत्पाद अपनी क्वालिटी
और उनमें लगी मेहनत की वजह से पावरलूम या सिंथेटिक उत्पादों की तुलना में मंहगे
होते हैं. इसी वजह से ये आम आदमी की ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बन पाते हैं. जब तक
हैंडलूम उत्पाद आम आदमी की पहुंच में नहीं होंगे तब तक हम कारीगरों की आय में
वृद्धि या इस उद्योग के विकास की परिकल्पना नहीं कर सकते.
मैं पिछले साल कांचीपुरम के एक शो रूम में मां के लिए कुछ
हैंडलूम साड़ियाँ देख रहा था. साड़ियों की कीमतें यकीनन बजट पर भारी पड़ती नज़र आ
रही थीं. मगर साड़ियों की ख़ूबसूरती को देख हिम्मत कर एक दो साड़ियाँ ले लीं. यही
हर मध्यवर्गीय घर की कहानी है. कीमती साड़ियाँ कभी-कभी ही ली जाती हैं. इनकी लागत
थोड़ी और कम हो सके तो ये आम आदमी के बीच और भी अधिक लोकप्रिय हो सकेंगी.
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कांचीपुरम में कांजीवरम साड़ियाँ |
इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है. इसके लिए
हैंडलूम कलस्टरों के पास कच्चे माल खासकर धागों की सहज और सस्ती उपलब्धता, सस्ती
दरों पर कर्ज की उपलब्धता और हथकरघा उत्पादों की मार्केटिंग सुविधाएं बहुत
ज़रूरी हैं. यही नहीं, बनुकरों
का स्किल अपग्रेडेशन और प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण पक्ष हैं.
कुछ संजीदा सरकारी प्रयासों से उम्मीद
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस,2020 के अवसर पर सरकार ने #Vocal4Handmade के तहत कई नई पहलों की घोषणा की है जिससे आने
वाले वक़्त में यकीनन हमारे बुनकरों और हथकरघा उद्योग से जुड़े उद्यमियों को कुछ
ठोस मदद मिल पाने की उम्मीद की जा सकती है:
- राष्ट्रीय
हथकरघा दिवस के अवसर पर वस्त्र मंत्रालय आज “क्राफ्ट
हैंडलूम विलेज” नामक एक पहल शुरू कर रहा है, इसके तहत महत्वपूर्ण पर्यटन सर्किट पर देश के
चुनिंदा हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट पॉकेट्स में क्राफ्ट विलेज विकसित किया जाएगा.
- हैंडलूम क्षेत्र में डिजाइन उन्मुख उत्कृष्टता
बनाने के लिए निफ्ट ने 28
डिजाइन और संसाधन केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई है, वर्तमान में 9 डीआरसी वाराणसी, अहमदाबाद, श्रीनगर, दिल्ली, मुंबई, गुवाहाटी, भुवनेश्वर, कांचीपुरम और जयपुर में काम कर रहे हैं.
- बुनकरों
की आय को बढ़ाने के उद्देश्य से, सरकारी ई-मार्केट
प्लेस (GeM) पोर्टल पर 35 लाख हथकरघा श्रमिकों
द्वारा प्रदर्शनियों और विपणन कार्यक्रमों के बदले में विपणन के वैकल्पिक साधनों की
दिशा में बुनकरों को प्रोत्साहित किया जा रहा है.
- GeM पर सक्रिय रूप से काम करने वाले श्रमिक अपने माल
को विभिन्न सरकारी विभागों को अब सीधे बेच सकते हैं. वर्तमान में 4196 बुनकर जुलाई 2020 तक GeM पोर्टल पर आ चुके हैं.
- प्रधानमंत्री
जी के “आत्मनिर्भर भारत” आह्वान
की दिशा में, हैंडलूम एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने देश के
विभिन्न कोनों से हैंडलूम बुनकरों और निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार से
जोड़ने का प्रयास किया है.
- हथकरघा
उत्पादों को एक सामूहिक पहचान प्रदान करने के उद्देश्य से, पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए हैंडलूम
मार्क योजना को डिजिटल किया जा रहा है.
- हैंडलूम
मार्क योजना को प्रभावी ढंग से
लागू करने के लिए आज वीवर ऐप, उपभोक्ता ऐप व एडमिन
ऐप लॉन्च किए गए, साथ ही कार्यान्वयन प्रक्रिया को पूरी तरह से
डिजिटाइज़ करने और सेक्टर से संबंधित उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए एक बैकेंड
वेब पोर्टल भी स्थापित किया गया है.
- हमारे
बुनकरों और कारीगरों को सीधे मार्केटिंग लिंकेज देने के उद्देश्य से @TexMinIndia, NeGD के साथ मिलकर एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म स्थापित
करने की दिशा में काम कर रहा है.
- वाराणसी
में दीन दयाल हस्तकला संकुल को वाराणसी के हथकरघा की समृद्ध परंपरा
को आगे बढ़ाने, हथकरघा उत्पादों को विकसित करने और बढ़ावा देने
के लिए 22 सितंबर 2017 को माननीय प्रधानमंत्री
जी द्वारा उद्घाटन किया गया.
आज राष्ट्रीय हथकरघा
दिवस के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश के लोगों का आह्वान करते हुए कहा
है कि ‘हमें
देश को सशक्त बनाने के लिए देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करना ही होगा और अपने
देश में बने सामानों का प्रचार-प्रसार भी करना होगा’. इसमें
कोई दो राय नहीं.
अधिकांश लोग हथकरघा उत्पादों के बारे में जानते ही नहीं हैं.
इन्हें लेकर उनके मन में तमाम तरह के संशय भी हैं. हम सभी का दायित्व है कि हम
सब मिलकर हथकरघा उत्पादों को न केवल स्वयं बढ़ावा दें बल्कि औरों को भी इन्हें
खरीदने और पहनने के लिए प्रेरित करें. सब मिलकर इस दिशा में कार्य करेंगे तभी हम
अपनी इस अनूठी विरासत को बचाने में कामयाब हो सकेंगे. तभी इस तरह के दिवस भी सार्थक
हो सकेंगे अन्यथा ये महज औपचारिका बनकर रह जाएंगे और हमारी आंखों के सामने से हमारी
बेशकीमती विरासत मिट जाएगी.
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वस्त्र मंत्रालय का विज्ञापन
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सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
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बहुत सुंदर लेख, हथकरघा से संबंधित संपूर्ण जानकारी अत्यंत सटीक सधी हुई लेखनी के साथ आनंद आ गया पढ़कर सर🙏👌
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अतुल जी. जल्द ही भारत की कुछ लोकप्रिय हैंडलूम साड़ियों पर केंद्रित लेख प्रकाशित किए जाएंगे. जुड़े रहें 🙏
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