रौशनियों और ख़्वाहिशों का उत्सव है तानाबाता (Tanabata Festival)
भारत और जापान के रिश्ते हमेशा से गहरी मित्रता वाले
रहे हैं और भारत और जापान के लोगों के बीच सदियों से सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता
आया है. इसकी एक खास वज़ह बौद्ध धर्म भी है जो चीन और कोरिया के रास्ते जापान तक पहुंचा.
बौद्ध धर्म की इस अनूठी विरासत के साथ-साथ इन दोनों देशों के बीच साझी सांस्कृतिक
परंपराएं हैं और ये दोनों देश लोकतंत्र, सहिष्णुता, बहुलवाद और स्वतंत्र समाज के आदर्शों में अटूट आस्था
रखते हैं.
एशिया के ये दो सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्रात्मक देश आज सबसे
बड़े आर्थिक और रणनीतिक भागीदार बनकर उभर रहे हैं और वैश्विक और क्षेत्रीय
चुनौतियों का मिलकर सामना कर रहे हैं. बेशक हिंदू धर्म की मौजूदगी जापान में ज्यादा
नहीं है लेकिन जापानी संस्कृति के विकास में इसकी अहम भूमिका है. इसका कारण बौद्ध
धर्म के विश्वास और परंपराएं हैं जिनका मूल स्त्रोत हिंदू धर्म में ही है.
शायद
यही वजह है कि हमारे बहुत से हिंदू देवी-देवताओं के जापानी अवतार हमें जापान में
देखने को मिलते हैं, दोनों देशों के लोक-साहित्य
में बहुत सी समानताएं बेवजह नहीं हैं. भारत और जापान के बीच सांस्कृतिक
आदान-प्रदान तो छठी शताब्दी में भारतीय बौद्ध सन्यासी बोधिसत्व के जापान
पहुंचने से ही शुरू हो चुका था. वे 736 ई. में जापान पहुंचे और 760 र्ई. तक जापान
में रहे. बोधिसत्व का जापानी संस्कृति पर जो गहरा प्रभाव पड़ा उसे आज भी महसूस
किया जा सकता है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आज़ाद हिंद फौज़ के
गठन से लेकर आज भारत की आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी हमारा यह मित्र देश हमेशा
हमारे साथ खड़ा रहता है. कुल मिलाकर भारत और जापान के बीच संबंधों और संपर्कों के
सैकड़ों कारण हैंं.
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विकास की राह पर आज का जापान |
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जापान के प्रधानमंत्री श्री शिंजो आबे और भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी (तस्वीर: विकीमीडिया कॉमन्स) |
ब्लॉगिंग की
दुनिया में भी अंग्रेजी भाषा में फिर भी थोड़ा-बहुत लिखा-पढ़ा जा रहा है मगर हिंदी
भाषा में जापान से परिचय कराने वाली सामग्री बहुत कम नज़र आती है. हिंदी के प्रबुद्ध
पाठकों के लिए इसी अभाव को थोड़ा कम करने की एक नई कोशिश ‘जापान की चिठ्ठी’ के ज़रिए की जा रही है. ब्लॉगर
मित्र रुचिरा शुक्ला जी जापान से पिछले 10 से अधिक वर्षों से जुड़ी हुई
हैं और इस लंबे अरसे में उन्होंने जापान को बखूबी देखा और समझा है. वे पिछले काफी
वक़्त से जापान में रह रही हैं और नियमित रूप से जापान पर लिख रही हैं. उन्होंने
जापान के किस्से-कहानियों को हमसे साझा करने की सहर्ष सहमति दी है.
वे समय-समय पर
जापान से चिठ्ठियां भेजती रहेंगी जिसे मैं हिंदी में अनुवाद कर आप सभी के साथ साझा
करता रहूंगा. इन चिठ्ठियों में जापान की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं, वहां के उत्सवों, खान-पान,
सामाजिक हलचलों, जापान के इतिहास की झलक देखने को मिलती
रहेगी. अनुवाद के माध्यम से ये प्रयास न केवल हिंदीभाषी पाठकों को जापान के थोड़ा
और क़रीब लेकर आएगा बल्कि हम सभी को जापान की संस्कृति को जानने और समझने में मदद
भी करेगा, ऐसा हम दोनों का विश्वास है.
आज उनकी पहली चिठ्ठी
जापान की एक लोककथा और इसी लोककथा से जुड़े एक अनूठे उत्सव तानाबाता पर
केंद्रित है. आइये शुरू करते हैं जापान की यात्रा...
तानाबाता और ओरिहिमे की लोककथा
यहां आसमान के राजा की बेटी ओरिहिमेे (The Weaver Star) की एक अद्भुत लोक कथा प्रचलित है. ओरिहिमेे आमा-नो-गावा
(स्वर्ग की नदी) के किनारे बैठकर गाती थी और एक खूबसूरत कपड़ा बुनती थी. इस नदी
को हम लोग आकाशगंगा के नाम से जानते हैं. ओरिहिमेे के गीत उदासी से भरे थे क्योंकि
इन्हें साझा करने के लिए उसकी जिंदगी में कोई नहीं था.
एक दिन उसे हिकोबोशी
(Cow herder Star) नाम का एक जवान ग्वाला नज़र आया और धीरे-धीरे उन्हें
एक दूसरे से गहरा प्यार हो गया. वे अपना सारा वक़्त आकाश गंगा में घूमते हुए
बिताते और धीरे-धीरे ओरिहिमेे ने अपनी बुनाई के काम को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर
दिया और हिकोबोशी ने भी अपनी गायों को खूब दूर तक चरने जाने दिया. अपने काम में
लापरवाही बरतने से नाराज़ राजा ने उन दोनों को नदी के दोनों सिरों पर रहने की सज़ा
सुनाई.
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आकाश गंगा में एक दूसरे से मिलते ओरिहिमेे और हिकोबाशी PC: nippon.com |
अब वे साल में केवल एक ही दिन मिल सकते थे. सातवें महीने के सातवें दिन.
इसलिए जापान में हर साल 7 जुलाई को तानाबाता उत्सव (Star Festival) मनाया जाता है. असल में यह उत्सव चीन से जापान में आया
है और यह चीनी लूनर कैलेंडर पर आधारित है. यूं तो पूरे जापान में ये उत्सव मनाया जाता है मगर मियागी प्रीफेक्चर का सेन्दाई शहर ऐसे आयोजनों के लिए
लोकप्रिय हो चुका है.
इस दिन जापान में बड़े पैमाने पर रंगीन झंडियों और कागजों
की लालटेनों से रौशनियां की जाती हैं. लोग रंगीन कागज की पट्टियों (Tanzaku) पर अपनी इच्छाओं को लिखते हैं और उन्हें पत्तेदार
बांस की शाखाओं (Bamboo
Stalks) पर टांग देते हैं. टोकियो में ज़ोजोजी मंदिर के पूरे परिसर में हर तरफ मौमबत्तियां नज़र आती हैं जो एक तरह से आकाश
गंगा का आभास देती हैं. इस दृश्य की पृष्ठभूमि में मंदिर और टोकियो टावर चमकता
हुआ नज़र आता है और हज़ारों मौमबत्तियां एक साथ टिमटिमाती नज़र आती हैं. ये एक
मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य होता है.
कोविड के कारण, इस साल सभी उत्सव रद्द कर दिए गए थे. फिर भी, मंदिर की ओर से बांस की कुछ शाखाएं रखी गई थीं ताकि
लोग उन पर अपनी इच्छाएं टांक सकें. मैं वहां तक गई और मैंने भी ठीक ऐसा ही किया.
ये एक उदास माहौल में डूबा हुआ तानाबाता था जिसमें कोई जगमगाहट नहीं, कोई सजावट नहीं और उस वक़्त मैंने दिल से यही चाहा कि
हम सभी के लिए खुशियों से भरा वक़्त बस जल्दी से लौट आए.
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तानाबाता की ख़्वाहिशें (तस्वीर: रुचिरा शुक्ला) |
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ज़ोजोजी मंदिर में अपनी इच्छाओं को टांगते श्रद्धालु (तस्वीर: रुचिरा शुक्ला) |
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कोविड से पहले कुछ ऐसे धूमधाम से मनाया जाता था तानाबाता (PC : nippon.co) |
आपको कैसी लगी ये पहली चिट्ठी, हमें ज़रूर बताइएगा. यदि आप जापान के बारे में कुछ और जानना चाहते
हैं तो कमेंट बॉक्स में लिख दीजिए...
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रुचिरा शुक्ला |
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