आज़ादी से पहले के राजाओं, रजवाड़ों और रियासतों वाले
हिंदुस्तान में शाही परिवारों की शान-ओ-शौक़त के कि़स्सों को हम बरसों से सुनते-सुनाते आए हैं। उत्तर में
अगर अवध के नवाबों की रईसी रश्क़ करने लायक थी तो दक्कन में हैदराबाद के निज़ाम
भी पीछे नहीं थे। इस इलाके में 200 वर्षों से अधिक तक राज करने वाले निज़ामों ने
अपने शासन काल में धीरे-धीरे तमाम हीरे-जवाहरातों और एक से एक नायाब आभूषणों को
अपने निजी खजाने में शामिल किया। आज इस खजाने का बड़ा हिस्सा देश की विरासत की
अमूल्य धरोहर के रूप में भारत सरकार के पास सुरक्षित रखा है। इन आभूषणों के जरिए
हम दक्कन के 200 वर्षों के इतिहास और उस समय के निज़ाम शासन की संपन्नता को बेहद
करीब से देख और समझ सकते हैं। गोलकुंडा और कोलार की खान से निकले बेशकीमती हीरों सहित
दुनिया के सबसे बड़े हीरों में गिना जाने वाला जैकब हीरा, बसरा मोतियों का सतलड़ा हार, कोलंबियाई पन्ने, बर्मा के माणिक्य व रूबी,
हीरे जडि़त हार समेत कुल 173 आभूषणों का यह संग्रह उस दौर की याद
दिलाता है जब भारत को सोने की चिडि़या कहा जाता था। सरकार अगर समय पर इन आभूषणों
को न खरीदती तो यह अनमोल धरोहर देश के बाहर चली जाती। कभी निज़ामों के परिवार की
निजी संपत्ति रहे इन आभूषणों की रिज़र्व बैंक के तहखानों तक पहुंचने की कहानी भी बड़ी
दिलचस्प है।
हम
जानते हैं कि 18वीं शताब्दी में मुगल
सत्ता के कमज़ोर पड़ने पर अनेक छोटी-छोटी ताकतें देश के तमाम हिस्सों में उभर कर
सामने आने लगीं। दक्षिण में निज़ाम सबसे शक्तिशाली शासकों के रूप में उभरे जिन्होंने
200 से अधिक वर्षों तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया। इस वंश के संस्थापक
कमरुद्दीन चिंक्लीज खां ने दक्कन के वाइसराय के रूप में कार्यभार संभाला और
धीरे-धीरे दक्कन में आसफ़ जाह वंश की नींव रखी। दरअसल, सन
1713 में मुग़ल शासक फ़र्रुखसियर ने उसे ‘निज़ाम-उल-मुल्क
फ़तेहजंग’ की उपाधी दी और 1725 में मुग़ल शासक मुहम्मद
शाह ने ‘आसफ़ जाह’ की उपाधी से
नवाज़ा। बस इसके बाद सभी आसफ़ जाही शासकों ने अपने नाम के साथ ‘निज़ाम’ की उपाधी लगानी शुरू कर दी। निज़ामों का यह
सफ़र सातवें आसफ़ जाह मीर उस्मान अली खां (1911-1948) तक बदस्तूर चलता
रहा। दक्कन में राज करने वाले निज़ाम शासक मुग़ल जीवन शैली से भी प्रभावित थे।
संपत्ति के महत्व और खजाने के मूल्य को आंकना उन्हें बहुत कम उम्र में ही आ गया
था। निज़ामों के इस दौर में जहां हैदराबाद शहर ने खूब तरक्की की वहीं हर निज़ाम
शासक ने अपनी निजी संपत्ति और शाही खजाने को समृद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन
आभूषणों में गोलकुंडा की खान और देश की अन्य तमाम खानों से निकले कीमती हीरों,
रत्न आदि के साथ-साथ तमाम छोटी रियासतों, जागीरदारों,
राजाओं आदि से नज़राने के रूप में प्राप्त कीमती गहने भी शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: सुबह-ए-चार मीनार
आम जनता के लिए दुर्लभ ही रहे हैं शाही आभूषण:
भारतीय
राजा-महाराजाओं के आभूषण आम जनता की नज़रों से आम-तौर पर दूर ही रहे हैं। इन
आभूषणों को केवल राजपरिवार के लोग या दरबारी ही देख पाते थे। इसीलिए भारतीय
राजपरिवारों के आभूषण उनके महलों के खजानों में ही बंद रहे। इन आभूषणों को खास
राजकीय समारोहों के अवसर पर ही पहना जाता था और खास लोग ही इन्हें देख पाते थे। अधिकांश
निज़ाम आभूषणों का प्राप्ति स्रोत अज्ञात ही है क्योंकि निज़ामों का निजी जीवन और
उनकी गतिविधियां आमतौर पर गोपनीय ही रहती थीं। 18वीं से 20वीं सदी के बीच के ये
आभूषण अपने उत्कृष्ट शिल्प-सौंदर्य, पुरातनता व दुर्लभ रत्नों के कारण विश्वविख्यात हैं।
ट्रस्ट बनाकर की गई खजाने को बचाने की कोशिश:
हैदराबाद
के अंतिम निज़ाम मीर उस्मान अली का एक विशाल परिवार था और 1000 से ज्यादा
नौकर-चाकर। उधर आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल होने लगी थी। सो अपने परिवार के आर्थिक
भविष्य को सुरक्षित करने के लिए निज़ाम ने अपनी संपत्ति को कई न्यासों (ट्रस्टों)
में बांट दिया। स्वतंत्रता के बाद सन 1951 में निज़ाम ने ‘एच.ई.एच. द निज़ाम ज्वैलरी ट्रस्ट’
और 1952 में एक अन्य न्यास ‘एच.ई.एच. निज़ाम सप्लिमेंटल ज्वैलरी ट्रस्ट’
की स्थापना की। लेकिन इन न्यासों के लिए
शर्त थी कि इस संपत्ति का विक्रय केवल उस्मान अली और उसके बड़े बेटे आज़म जाह की
मृत्यु के उपरांत ही किया जा सकता है। सरकारी सूची के अनुसार इन दोनों ही न्यासों
में आभूषणों की कुल संख्या 173 है। आभूषणों के इस नायाब संग्रह में पगड़ी के
सजाने वाले सरपेच, कलगी,
हार, बाजूबंद, झुमके,
कंगन, कमर-पेटी, बटन,
कफलिंक, पायजेब, घड़ी की
चेन, अंगूठियां और बहुमूल्य हीरों और पत्थरों से जड़ी बैल्ट
आदि खास तौर पर शामिल हैं। एक खास बात ये है कि इन आभूषणों में बाजूबंदों की प्रमुखता है क्योंकि ये शाही लिबास और आभूषणों का अनिवार्य अंग था।
![]() |
हीरों से जड़ा कमरबंद या बैल्ट |
1970
में निज़ाम द्वारा इन न्यासों को विघटित कर इन आभूषणों को बेचने से प्राप्त
धनराशि को विभिन्न उत्तराधिकारियों में बांटने का निर्णय लिया गया। निज़ाम के
उत्तराधिकारियों द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को एक
विज्ञप्ति पत्र भेजा गया। इस पत्र में निवेदन किया गया था कि हैदराबाद के निज़ाम
के आभूषणों को भारत सरकार द्वारा खरीदने का विचार किया जाये ताकि यह धरोहर भारत
में ही रहे। निज़ामों के वंशज इस खजाने को 350 मिलियन डॉलर में बेचना चाहते थे।
काफी दिनों तक जद्दोजहद चलती रही। अंतत: 1991 में न्यायाधीश ए. एन. सेन की अध्यक्षता
में बनी समिति के निर्णय के आधार पर भारत सरकार ने निज़ाम परिवार से कुल 173 उत्कृष्ट
आभूषणों को 2,17,81,89,128 रुपए (दो सौ सत्रह करोड़ इक्यासी लाख नवासी हज़ार
एक सौ अठ्ठाईस रुपए) में खरीद लिया। इस ऐतिहासिक, बहुमूल्य
और अनुपम धरोहर का अधिग्रहण भारत के लिए गर्व का विषय था। तभी से यह खजाना रिज़र्व
बैंक के पास सुरक्षित रखा है और सरकार समय-समय पर जनता के लिए इसकी प्रदर्शनी
लगाती है जिसे देखने में देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों की दिलचस्पी रहती
है।
मुग़ल, दक्कनी और यूरोपीय शैली का सम्मिश्रण हैं निज़ाम-आभूषण:
![]() |
हीरोंं मेंं छेद कर हार बनाने का नायाब नमूना |
![]() |
इन आभूषणों की कहानी बताते हुए अनीता जी |
सबसे दिलचस्प है दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा हीरा जैकब
डायमंड:
![]() |
जैकब डायमंड |
निज़ामों
के इन आभूषणों में सबसे खास है 19वीं शताब्दी के अंत में दक्षिण अफ्रीका की
किंबर्ली खान से निकला जैकब डायमंड। इंपीरियल, ग्रेट वाइट और विक्टोरिया नाम से प्रसिद्ध हुए इस हीरे की दास्तान
बेहद दिलचस्प है। तराशने से पहले इसका वजन 457.5 कैरट था और उस समय इसे विश्व के
सबसे बड़े हीरों में से एक माना जाता था। बाद में हीरा चोरी हो गया और हॉलैंड की
एक कंपनी को बेच दिया गया। फिर हॉलैंड की महारानी के सामने इस हीरे को तराशा गया
और इसका वजन घटकर 184.5 कैरट रह गया। 1890 में एलेग्जेंडर मैल्कम जैकब
नाम के हीरों के व्यापारी ने इस हीरे को हैदराबाद के छठे निज़ाम महबूब अली खां
पाशा को 1,20,00,000 रुपए में बेचने की पेशकश की। निज़ाम केवल 46,00,000
रुपए देने को तैयार हुआ। इसके लिए 23,00,000 रुपए का एडवांस तय हुआ। लेकिन निज़ाम ने इसके लिए कोई लिखित करार नहीं किया। इसका मतलब था कि निज़ाम को हीरा पसंद न होने पर वह मना भी कर सकता था। हुआ भी कुछ ऐसा ही।लंदन से चले हीरे
के भारत पहुंचने के बाद निज़ाम का मन बदल गया और अपनी 23,00,000
रुपए की अग्रिम राशि वापिस मांग ली। दरअसल, अंग्रेजी
सरकार इस सौदे से नाखुश थी क्योंकि इसकी खरीद के लिए अदा की जाने वाली रकम राजकोष
पर उधार चढ़ जाती। उधर जैकब ने अग्रिम राशि निज़ाम को लौटाने से मना कर दिया और
निज़ाम ने जैकब के खिलाफ कलकत्ता न्यायालय में मुक़द्मा दायर कर दिया। काफी
दिनों तक मामला चलता रहा। आखि़रकार तंग आकर निज़ाम ने अदालत के बाहर समझौता कर जैकब
से वह हीरा प्राप्त कर लिया। इसी जैकब के नाम पर इस हीरे का नाम जैकब डायमंड पड़ा
था। लेकिन इतनी फ़ज़ीहत के बाद हासिल हुए हीरे में अब निज़ाम की दिलचस्पी ख़त्म
हो चुकी थी। महबूब अली की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अर्थात् सातवें निज़ाम मीर
उस्मान अली खां को यह हीरा चौमहल्ला पैलेस में अपने पिता के जूतों के
अंदर जुराब में पड़ा मिला। इस कीमती हीरे को सातवें निज़ाम ने भी इज़्ज़त नहीं
बख़्शी और वह भी जीवन भर इसका इस्तेमाल एक पेपरवेट के रूप में करते रहे। इस हीरे
का आज दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा हीरा माना जाता है। कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय
बाजार में इस हीरे की कीमत 400 करोड़ रुपए के आस-पास है और इन दिनों यह हीरा
निज़ामों के तमाम अन्य आभूषणों के साथ रिज़र्व बैंक के तहखानों में महफूज़ है।
![]() |
पायजेब |
चाक-चौबंद सुरक्षा में रखे हैं ये अनमोल आभूषण:
निज़ामों
के ये आभूषण इन दिनों दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय की एक खास प्रदर्शनी में रखे
गए हैं। निज़ामों के इन आभूषणों की प्रदर्शनी वर्ष 2001 और 2007 में नई दिल्ली के राष्ट्रीय
संग्रहालय और हैदराबाद के सालारजंग संग्रहालय में लगाई गई थी। ये तीसरा
मौका है जब दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में भारतीय आभूषण: निज़ाम आभूषण
संकलन नाम से यह प्रदर्शनी एक बार फिर लगाई गयी है। इन आभूषणों के महत्व को देखते
हुए इन्हें जेड कैटेगरी की सुरक्षा में रखा गया है। जिसमें दर्जनों हथियारबंद जवान
दिन रात प्रदर्शनी हॉल की सुरक्षा कर रहे हैं। प्रदर्शनी कक्ष को बैंक के स्ट्रॉंग
रूम की तरह सुरक्षित बनाया गया है जिसमें 65 कैमरे लगातार इन आभूषणों पर नज़र रखे हुए
हैं। यहां लगाए गए जैमर के कारण प्रदर्शनी में प्रवेश करते ही फोन का सिग्नल बंद हो
जाता है। ये इंतज़ाम देखने के बाद मुझे 80 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों में ज्वैलरी
की प्रदर्शनियों से हीरों को चुराने वाले दृश्य याद हो आते हैं। लेकिन, यहां की मुकम्मल व्यवस्था के आगे म्युजियम से इन हीरों को चुरा पाना मुश्किल
ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। अभी ये प्रदर्शनी पांच दिन और जारी रहेगी इसलिए वक़्त
हो तो इसे देख आइये क्योंकि फिर न जाने कितने बरसों बाद इन नायाब आभूषणों को देखने
का अवसर मिले।
अपडेट: राष्ट्रीय संग्रहालय में यह प्रदर्शनी 31 मई, 2019 तक चलेगी और सुबह 10 से सांय 6 बजे तक आयोजित की गई थी।
टिकट: संग्रहालय की टिकट 20 रुपए
प्रदर्शनी टिकट: 50 रुपए
इस लेख का संपादित संस्करण प्रतिष्ठित पोर्टल द बेटर इंडिया पर प्रकाशित हुआ है।
सौरभ आर्य
|
सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
© इस लेख को अथवा इसके किसी भी अंश का बिना अनुमति के पुन: प्रकाशन कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।
यहां भी आपका स्वागत है:
Twitter: www.twitter.com/yayavaree
Instagram: www.instagram.com/yayavaree/
facebook: www.facebook.com/arya.translator
#nizamjewellary #jewellary #hyderabad #nizamsofhyderabad #nationalmuseum #jacobdiamond
#nizamjewellary #jewellary #hyderabad #nizamsofhyderabad #nationalmuseum #jacobdiamond