A Brief in English:
जिंदगी के कुछ अनुभव अचानक से झोली में आ टपकते हैं...जैसे उस रोज दार्जिलिंग टॉय ट्रेन की यात्रा करते हुए ‘घूम’ स्टेशन पर पहुंचने तक मुझे इस बात का कतई इल्म नहीं था कि सड़क के बीचों-बीच बना ये छोटा सा स्टेशन किसी वजह से बहुत खास होगा. मैं देश के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन पर खड़ा था. 2,258 मीटर (7,407 फुट) की ऊंचाई पर बना ये स्टेशन दार्जिलिंग से केवल 8 किलोमीटर दूर है. दार्जिलिंग से न्यू जलपाईगुडी की डगर घूम से होते हुए ही गुजरती है.
India’s Highest Railway Station Ghoom falls on New Jalpaiguri-
Darjeeling Railway line. situated at an altitude of 2,258 metres
(7,407 ft), this small town is the home of the Ghum Monastery and the Batasia Loop, a beautiful bend of the Darjeeling Himalayan
Railway. Declared as World Heritage Site by UNESCO, this
station also houses a small Railway Museum which proudly displays various
souvenirs from the by-gone era. A must visit place in Ghoom.
जिंदगी के कुछ अनुभव अचानक से झोली में आ टपकते हैं...जैसे उस रोज दार्जिलिंग टॉय ट्रेन की यात्रा करते हुए ‘घूम’ स्टेशन पर पहुंचने तक मुझे इस बात का कतई इल्म नहीं था कि सड़क के बीचों-बीच बना ये छोटा सा स्टेशन किसी वजह से बहुत खास होगा. मैं देश के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन पर खड़ा था. 2,258 मीटर (7,407 फुट) की ऊंचाई पर बना ये स्टेशन दार्जिलिंग से केवल 8 किलोमीटर दूर है. दार्जिलिंग से न्यू जलपाईगुडी की डगर घूम से होते हुए ही गुजरती है.
यू ट्यूब पर मौजूद इस वीडियाेे में 'घूम' रेलवे स्टेशन का जायजा लिया जा सकता हैै:
यूं तो #Darjeelingtoytrain न्यू जलपाईगुडी से घूम होते हुए सीधे दार्जिलिंग तक की सैर कराती है मगर
न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक की यात्रा बहुत लंबी और थकाऊ हो जाती है. इसलिए
मैंने पहले से तय कर रखा था कि टॉय ट्रेन का लुत्फ केवल दार्जिलिंग से घूम के बीच
ही लूंगा. अलबत्ता ये बात और थी कि पिछले साल जिस वक़्त मैं दार्जिलिंग की यात्रा
पर था, दार्जिलिंग टॉय ट्रेन, रेलवे ट्रैक का कुछ हिस्सा खराब
होने के कारण केवल दार्जिलिंग और घूम के बीच तकरीबन 8 किलोमीटर के ट्रैक पर ही चल रही
थी. ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है. पहाडियों पर बने ट्रैन का लैंड स्लाइड में नष्ट
हो जाना कौन सा असंभव काम है.
खैर, एक बात तो है हम भारतीयों को अपनी अच्छी चीजों की सलीके से मार्केटिंग करनी
नहीं आती. घूम स्टेशन की हालत देखकर नहीं लगता था कि ये स्टेशन इतनी गौरवशाली उपलब्धि
लिए यहां खड़ा है. स्टेशन ही नहीं पूरा दार्जिलिंग हिमालय रेलवे ही अपने आप में अजूबा
है. पहाड़ों पर इतनी ऊंचाई तक रेलवे लाइन को पहुंचा देना ब्रिटिशर्स की ही देन है.
दार्जिलिंग हिमालय रेलवे का काम 1879 में शुरू हुआ था और रेलवे लाइन 4 अप्रैल, 1881 को घूम पहुंची. इस लाइन के शुरू होने से पहले कोलकाता से दार्जिलिंग
पहुंचने में 5 से 6 दिन लग जाते थे. पहले लोग साहेबगंज में गंगा पार करके बैलगाडियों
और पालकियों से ही दार्जिलिंग तक पहुंचते थे.
घूम स्टेशन के संग्रहालय में लगी स्टेशन की ये पुरानी तस्वीर बरबस ही सबका ध्यान खींंच लेती है.
घूम स्टेशन 1944 में |
अब ब्रिटिशर्स को तो दार्जिलिंग मन भा
गया था मगर खाने-पीने के लिए राशन पानी भी तो चाहिए था. बैलगाडियों से भला कब तक ढ़ोते?
सो पहाड़ को चीर कर रेलवे लाइन पहुंचा ही दी. इंसानी जुनून से रचा गया
ये नायाब नमूना आज भी पूरे इलाके की शान बढ़ा रहा है. आज सेमी बुलेट ट्रेन के दौर में
रेल की पटरियों पर भाप के इंजन चलते देखना ऐसा है मानो हम खुद ब खुद उसी दौर में पहुंच
गए हों.
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घूम स्टेशन की तस्वीर चित्र: साभार विकीपीडिया |
इस रेलवे लाइन
को यूनेस्को द्वारा ‘विश्व विरासत स्थल’ घोषित किया गया है. अब जहां देश दुनिया के हजारों सैलानी रोज आते हों कम से
कम वहां तो हमें ख्याल रखना ही चाहिए. शायद भविष्य में रेलवे ही कभी सुध ले ले. कमोबेश
यही हाल घूम स्टेशन के ऊपर बने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (डीएचआर) के म्यूजियम का
भी है. म्यूजियम के बारे में विस्तार से फिर कभी. यदि आप दार्जिलिंग में हैं तो इस
म्यूजि़यम को देखना मिस मत कीजिएगा. दार्जिलिंग से न्यू जलपाईगुडी जाने वाली ट्रेन
इस स्टेशन पर 30 मिनट ठहरती है इसलिए इसी दौरान म्यूजियम भी देखा जा सकता है.