कुछ समय पहले आई फिल्म बाहुबली
के वो झरनों के दिल को चुरा लेने वाले दृश्य तो हम सभी को याद होंगे. ऐसे ऊंचे और
भव्य जल प्रपात देखकर एक बारगी लगा था कि या तो ये दृश्य किसी विदेशी लोकेशन पर
फिल्माया गया है या फिर कंप्यूटर की कलाकारी है. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा
कि ये बेहद खूबसूरत वाटर फॉल भारत में ही है. दरअसल फिल्म में दिखाए गए दृश्य
केरल में त्रिचुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित चालाकुडी नदी पर मौजूद अथिरापिल्ली
और वाझाचल वाटर फॉल के हैं जो केरल के सबसे बड़े वाटर फॉल में शुमार
हैं. अपनी खूबसूरती और ऊंचाई के कारण ही अथिरापिल्ली को केरल का
नियागरा भी कहा जाता है. ये जानना दिलचस्प था कि यहां केवल
बाहुबली ही नहीं बल्कि ‘दिल से’ और ‘गुरू’ जैसी लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मों की भी
शूटिंग हो चुकी है. फिल्म दिल से का ‘जिया जले...जान जले’
वाला मधुर गीत भी यहीं फिल्माया गया है. विख्यात तमिल फिल्म
निर्देशक मणिरत्नम का तो इस जगह से खास लगाव रहा है इसलिए उनकी तमाम तमिल फिल्मों
की शूटिंग यहां हुई है. उनकी फिल्म Raavanan की तो
पूरी शूटिंग ही इसी जगह पर हुई है. ये जगह है ही नैसर्गिक सौंदर्य से भरी हुई.
कुछ दिनों पहले कोच्ची-त्रिचूर-मुन्नार
की यात्रा के दौरान किसी काम के सिलसिल में त्रिचूर जाना हुआ तो वहां स्थानीय
लोगों ने सुझाव दिया कि यहां तक आए हैं तो अथिरापिल्ली वाटर फॉल ज़रूर देखिए. उस
वक़्त शाम के 3.15 हो चुके थे. पिछले दो दिनों से एक स्थानीय ड्राइवर सिंडो हम
लोगों के साथ था. सो सिंडो से बात की तो
उसने कहा कि कि अब देर हो चुकी है और फॉल तक पहुंचना मुश्किल है क्योंकि ये फॉल
एक वन क्षेत्र का हिस्सा है जिसकी एंट्री शाम 4.45 पर बंद हो जाती है. लेकिन फिर
अचानक न जाने उसे क्या सूझी और बोला कि जल्दी से गाड़ी में बैठिए मैं पहुंचा
सकता हूं आपको. बस फिर क्या था अगले डेढ़ घंटा हम सड़क के साथ रेस लगाते रहे. एक
नज़र घड़ी पर थी तो दूसरी गूगल मैप पर. हमने हाइवे पर 100 की रफ़्तार से आगे बढ़ना
शुरू किया और जल्द ही गूगल मैप के अंदाजे से आगे चल रहे थे. लगने लगा था कि समय
से 20 मिनट पहले ही पहुंच जाएंगे. तभी सिंडो ने बताया कि गाड़ी में तेल खत्म होने
वाला है इसलिए पहले तेल डलवाना होगा. हमने उस दोपहर लंच नहीं किया था. लेकिन फॉल
तक पहुंचने के उत्साह में भूख के साथ समझौता कर लिया. लेकिन गाड़ी कहां ये समझौता
करने वाली थी. रिज़र्व की लाइट लाल हो चुकी थी. थोड़ी देर में एक पेट्रोल पंप पर
तेल डलवाया. उम्मीद थी कि ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट में काम हो जाएगा. लेकिन
यहां लगे कम से कम 12 मिनट. एक बार फिर रोड़ पर उतरे तो मैप और हमारे टारगेट में
केवल 6 मिनट का अंतर चल था और मंजिल 35 किलोमीटर दूर थी. मतलब ये था कि ज़रा भी
कहीं चूक हुई तो हमें उतनी दूर जाकर भी खाली हाथ लौटना पड़ेगा. एक बार लगा कि समय
पर नहीं पहुंच पाएंगे तो काफी वक़्त बबार्द होगा. ड्राइवर से एक बार और अपने मन
की शंका साझा की. मगर सिंडो निश्चिंत था. बोला कि सीट बेल्ट बांध लीजिए. यहां से
सिंगल रोड़ शुरू हो गई थी और ट्रैफिक आमने-सामने और इधर गाड़ी 100 से ऊपर बात कर
रही थी. सिंडो ज़रा सा चूका तो अपन विंडो से बाहर हो सकते थे. लेकिन बरसों की यात्राओं
के अनुभव से महसूस हो रहा था कि सिंडो की स्टेयरिंग पर पकड़ जबरदस्त थी. बस सिंडो
से इतना ही कहा कि रिस्क लेने की ज़रूरत नहीं है...फॉल छूटता है तो छूटे. सिंडो को
हिंदी और अंग्रेजी दोनों कम समझ आती हैं और मुझे मलयालन नहीं आती. मगर काम चल रहा था.
सिंडो ने बात को समझ कर मुस्कुराते हुए सिर्फ ओके और नो टेंशन कहा और मैं सांस
थामें बगल में बैठा रहा. खैर, ठीक 4.43 मिनट पर हम फॉरेस्ट रिज़र्व के टिकट काउंटर पर थे.
अब हम 6 बजे तक वाटर फॉल का आनंद उठा
सकते थे. प्रवेश द्वार से जो रास्ता फॉल की ओर जाता हैं वहां से सबसे पहले
चालाकुडी नदी ही नज़र आती है. 145 किलोमीटर लंबी ये नदी पश्चिमी घाट में अनामुदी की
पहाडियों से शुरू होती है और अरब सागर में जा कर मिलती है. थोड़ा और नीचे उतरने पर
दाईं ओर इस 80 फुट उँचे वाटर फॉल का पहला दृश्य देखते ही दिल में उतर जाता है. एक
रास्ता दाईं ओर से नीचे की ओर उतरता है जहां से इस झरने के ठीक नीचे तक जाया जा
सकता है. लेकिन हम लोगों ने पहले बाईं ओर नदी की तरफ बढ़ना पसंद किया. थोड़ी देर
नदी की धारा का आनंद ले लें फिर झरने की खूबसूरती देखी जाएगी. दरअसल नदी की ये धारा पहाड़ी के उस किनारे जहां से नदी 80 फुट की गहराई में छलांग लगाती है, वहां से झरने की 3 धाराओं में बंट जाती है. कुल 330 फुट चौड़ाई वाला ये झरना बरसात के दिन में झूम कर गिरता है और यहां से 1 किलोमीटर दूर तक नदी का वेग जैसे सब कुछ बहा ले जाने की क्षमता रखता हो.
यही नहीं अथिरापिल्ली और वाझाचल
इलाके में बहुत सी खास वनस्पतियां और जीव-जंतु भी पाए जाते हैं. पश्चिमी घाट में
ये अकेला ऐसा स्थान है जहां 4 लुप्तप्राय हॉर्नबिल प्रजातियां पाई जाती हैं.
अपनी ऐसी ही खूबियों के कारण पश्चिमी घाट दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण
बायोडायवर्सिटी हॉट-स्पॉट में से एक हैं.
यहां पाई जाने वाली पक्षियों की विभिन्न
प्रजातियों के कारण ‘इंटरनेशनल बर्ड एसोसिएशन’ ने इस इलाके को ‘महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र’ घोषित किया है. उधर वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने माना है कि
इस क्षेत्र में हाथियों के संरक्षण के लिए सबसे बेहतर प्रयास किए गए हैं. इस इलाके
में त्रिचूर जिला पर्यटन संवर्द्धन परिषद के द्वारा चालाकुडी से मालाक्कपाड़ा तक हर
रोज जंगल सफारी भी कराई जाती है. ये जंगह हमेशा हरे भरे रहते हैं इसलिए यहां की सफारी
का अपना ही आनंद होगा.
कैसे पहुंचे: अथिराप्पिल्ली वाटर फॉल त्रिचूर से 60 किलोमीटर और कोच्चि से 76 किलोमीटर दूर है. दोनों जगहों से यहां तक के लिए अच्छी बस सर्विस मौजूद है. कोच्चि में यहां से सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा मौजूद है.
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स्त्रोत: होलिडिफाई डॉट कॉम |
कैसे पहुंचे: अथिराप्पिल्ली वाटर फॉल त्रिचूर से 60 किलोमीटर और कोच्चि से 76 किलोमीटर दूर है. दोनों जगहों से यहां तक के लिए अच्छी बस सर्विस मौजूद है. कोच्चि में यहां से सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा मौजूद है.
कुछ तस्वीरें और...
सौरभ आर्य
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सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
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