संक्रमण के तूफ़ान के बीच क्या यात्राओं और पर्यटन के लिए तैयार हैं हम ?
Is It Right Time for Travel & Trips ?
अनलॉक -1 के साथ ही देश अनलॉक होना शुरू हो गया है.
पिछले दो ढ़ाई महीनों से लगी तमाम तरह की बंदिशों में बेहिसाब रियायतों का ऐलान कर
दिया गया है. काम-धंधे पटरी पर लौटना शुरू हो रहे हैं और अर्थव्यवस्था का पहिया
एक बार फिर सरकना शुरू हो रहा है. यही नहीं किसी-किसी राज्य ने पर्यटन के लिए भी
अपने दरवाजे खोल दिए हैं. होटल, रेस्तरां, मंदिर, स्मारक, म्युजियम सब खुल जाएंगे जल्दी ही.
इस सबका
मतलब क्या है? क्या ये समझा जा सकता है कि सरकार ने इतनी छूट
दे दी हैं तो कोरोना नाम की वैश्विक महामारी का ख़तरा अब टल गया है? बंदिशें कम हो गई हैं तो क्या अब सैर-सपाटे के
लिए बाहर निकलने का मुनासिब वक़्त हो गया है?
 |
सही वक़्त के इंतज़ार में थम गए कदम |
मैं पिछले कुछ
दिनों से घुमक्कड़ों और ट्रैवल ब्लागर्स में बाहर निकलने की छटपटाहट और ट्रैवल
के लिए बाहर निकलने की वकालत के किस्से देख-सुन रहा हूँ. जबकि कुछ लोग अभी धैर्य
रखकर यात्राओं से तौबा करने की सलाह दे रहे हैं. यात्रा से जुड़े लोगों की ये
दुनिया इन दिनों दो सिरों पर खड़ी नज़र आ रही है. क्या कोई बीच का रास्ता भी है?
दरअसल लॉकडाउन खत्म हुआ है, कोरोना नहीं. ये
यक़ीनन एक नाजुक मोड़ है जहांं हमारा एक ग़लत
फैसला हमारे और हमारे परिवार के भविष्य की दिशा और दशा बदल कर रख सकता है.
कोरोना नाम का शत्रु ठीक हमारे दरवाजे के बाहर
खड़ा है. ऐसे में हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं ये हमें ठंडे दिमाग से तय
करना होगा. ऐसे निर्णय जोश या भावनात्मक आधार पर नहीं बल्कि जानकारियों और तथ्यों का
विश्लेषण करके ही लिए जा सकते हैं. आइए एक छोटी सी कोशिश करके ये जानने की कोशिश
करते हैं कि कोरोना के खिलाफ़ चल रहे विश्वव्यापी युद्ध के बीच इन दिनों यात्राएं करना सुरक्षित है या नहीं? अगर अभी नहीं तो कब तक सुरक्षित हो सकती स्थिति? जब दूर की यात्राएं संभव न हो तो क्या कर सकते
हैं यात्राओं के दीवाने?
ख़तरे का सटीक आकलन है सबसे ज़रूरी
किसी भी युद्ध का
पहला नियम है शत्रु की ताक़त का सही अंदाज़ा लगाना. तभी हम भविष्य की रणनीति
बना सकते हैं. तो ताज़ा स्थिति पर एक नज़र डालते हैं:
अब तक संक्रमण के कुल मामलों की संख्या सवा 2 लाख के पार हो चुकी है और
ये एक दिलचस्प और डरावना तथ्य है कि इनमें से पहले 1 लाख मामलों को 110 दिन लगे
जबकि 1 लाख से 2 लाख होने में मात्र 15 दिन लगे.
5 जून , 2020 की स्थिति के अनुसार
भारत में अब तक संक्रमित लोगों की कुल संख्या 2,26,639 है
जिसमें 9,304 मामले केवल पिछले एक दिन में सामने आए हैं और
अब तक कोरोना से कुल 6,275 मौत हो चुकी
हैं. उधर पूरी दुनिया में अब तक संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या 66,35,347 है
और अब तक कुल 3,89,699
मृत्यु हो चुकी हैं. इस गति से अगलेे 15 दिनों में भारत में कुल 5 लाख लोग संक्रमित हो चुके होंगे और जुलाई के पहले सप्ताह तक 10 से 12 लाख. दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की स्थिति हमारे सामने ही है.
संक्रमण
की रफ़्तार की ये स्थिति तब है जब देश में प्रतिदिन तकरीबन 1 लाख टेस्ट ही हो पा
रहे हैं. जैसे-जैसे टेस्ट की संख्या बढ़ रही है,
संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. एम्स के निदेशक, श्री रणदीप गुलेरिया बार-बार आगाह कर रहे हैं कि जून और जुलाई में मामलों में बहुत तेजी
आएगी...कोरोना के मामलों की पीक अभी देखनी बाकी है.
इधर दुनिया
में सबसे संक्रमित देशों की सूची में अब भारत टॉप 10 में बड़ी तेजी से ऊपर के
पायदान चढ़ रहा है. इस वक्त़ यूएसए, ब्राजील, यूके, स्पेन और इटली के बाद अगले पायदान पर भारत
ही है और यूके, स्पेन और इटली को भारत इसी सप्ताह पीछे
छोड़ सकता है. अभी पीक दूर हैै लेकिन अस्पतालों पर बोझ बढ़ने लगा है और हमारे हैल्थ केयर सिस्टम की सांसें उखड़ने लगी हैं. आगे क्या होगा?
क्या हो चुका है
सामुदायिक प्रसार
?
सामुदायिक प्रसार
महामारी की तीसरी स्टेज है जिसमें ये पता लगा पाना मुश्किल होता है कि किसको किस से
संक्रमण हुआ है? कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग भी असंभव हो. सरकार ने
आधिकारिक तौर पर कम्युनिटी स्प्रैड की घोषणा अभी नहीं की है लेकिन 1 जून को एम्स
के डॉक्टरों और आईसीएमआर के विशेषज्ञों के एक 16 सदस्यीय दल ने देश में कोविड-19
के संक्रमण के सामुदायिक प्रसार शुरू होने के प्रति सरकार को आगाह किया है.
इन
विशेषज्ञों का दावा है कि देश के बड़े शहरों और खासकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों
में सामुदायिक प्रसार हो चुका है और उन्होंने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री जी को
सौंप दी है. तो ऊपर की स्थिति को देखकर यह स्पष्ट है कि ख़तरा बहुत बड़ा है
और अभी ये कितना और फैलेगा कुछ ठीक से कहा नहीं जा सकता. तो इससे बचें कैसे? बस एक थम्ब रूल याद रखिए कि ‘हमारे घर के बाहर हर व्यक्ति संक्रमित हो चुका
है,
दुनिया में सिर्फ हम ही बचे हैं, अब हर व्यक्ति
से खुद को बचाना है’. तभी हम सतर्क रहेंगे और खुद को
और अपने परिवार को बचा पाएंगे.
टीवी बन्द कर देने से हम खुद को ख़बरों से दूर कर सकते हैं, संक्रमण के खतरे से नहीं. क्या हमें तभी खतरे का अहसास होगा जब हमारे मुहल्ले में कोई संक्रमित होगा या कोई अपनी जान गंवा देगा? ये कबूतर के आंख बंद करने पर बिल्ली के गायब हो जाने जैसी कहानी है. सकारात्मकता और अति सकारात्मकता में कुछ तो अंतर होता होगा.
क्या आपको लग रहा है कि मैं आपको डरा रहा हूँ? दोस्तो, थोड़ा डर ही हमें बचाएगा. व्हाट्सएप
यूनिवर्सिटी में इन दिनों जो कॉन्सपीरेसी थ्योरी और कोरोना के नजला-जुकाम जैसा मामूली
होने के संदेश आप तक पहुंच रहे हैं उन पर आंख बंद कर भरोसा न करें. दुनिया के तमाम
विकसित देश इस बीमारी के आगे धराशायी हो चुके हैं. लाखों लोग मर चुके हैं. कोरोना
से ठीक होने वाले लोग भी कब तब सुरक्षित हैं, उन्हें भविष्य
में कोई खतरा होगा या नहीं, इस बात का उत्तर दुनिया में अभी
किसी के पास नहीं है. हां, ये बात भी सही है कि हमें इससे
घबराना नहीं है लेकिन पूरी सतर्कता ज़रूरी है.
 |
अपनी और अपनों की हिफाज़त के लिए एहतियात ज़रूरी है...वरना सफ़़र तो मजबूरी है |
फिर कोरोना के साथ
जीने का मतलब क्या है ?
हमारी सरकारें
बार-बार कह रही हैं कि अब हमें लंबे समय तक कोरोना के साथ जीना होगा. लेकिन इस साथ
जीने का मतलब क्या है? क्या इसका मतलब ये है कि कोरोना भी हमारे आस-पास
रहे और हम हर तरह का ज़रूरी और ग़ैर-ज़रूरी काम करते रहें? या फिर हमें गैर-ज़रूरी कामों को फिलहाल टालना
चाहिए? यहांं सवाल उठना लाजमी है
कि यदि हमें कोरोना के साथ ही जीना था तो फिर इतने दिन लॉकडाउन क्यों रखा गया
और अब जब मामले बढ़ रहे हैं तो इसे क्यों खोला जा रहा है?
इसका
सीधा सा जवाब है कि लॉकडाउन से पहले सिस्टम इस संक्रामक महामारी से मुक़ाबला करने
के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था. हमारी सरकारों ने इन दो महीनों के समय का इस्तेमाल
हैल्थकेयर सिस्टम को मजबूत बनाने मसलन अस्पतालों में बेड, वेंटिलेटर, पीपीई किट्स आदि का
इंतजाम करने के लिए किया है. अब जब सिस्टम इस स्थिति में है कि हर शहर में कुछ
हज़ार लोगों को अस्पतालों में भर्ती किया जा सकता है और उधर गिरती अर्थव्यवस्था
को संभालने के लिए इसे तत्काल शुरू किया जाना ज़रूरी हो चुका है तो सरकारों ने
कुछ अपवादों को छोड़कर तमाम प्रतिबंध हटा लिए हैं.
सरल शब्दों में इसका अर्थ ये
हुआ कि लोगों की जान के जोखिम के बावजूद अर्थव्यवस्था को चलाए रखना भी हमारी
प्राथमिकता है. पिछले दो महीने के वक़्त को हम अपने लिए कोरोना से लड़ने के लिए
बेसिक ट्रेनिंग के रूप में समझ सकते हैं. इसलिए अब दायित्व सीधा हम लोगों पर है.
सरकार अभी भी बार-बार कह रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग करें, मास्क पहनें, फेसकवर
लगाएं, हाथों को बार-बार सेनेटाइज़ करें? किसलिए? इसीलिए न कि अभी ख़तरा बरकरार है?
लेकिन पूरी सावधानी के साथ ये सब एहतियात रखते
हुए भी हम आश्वस्त नहीं हो सकते कि हम संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे. इस
डर की एक वजह ये है कि पूरी एहतियात बरतने के बावजूद लोग संक्रमित हो रहे हैं. लोग
मशीन या कंप्यूटर नहीं हो सकते कि कहीं गलती की गुंजाइश ही न रहे. बाहर निकलेंगे, टैक्सी, फ्लाईट या ऑटो में लोगों के साथ स्पेस शेयर करेंगे तो कहीं भी चूक हो सकती है. एक बार सावधानी हटी
नहीं कि दुर्घटना घटी.
 |
ठहर गई है पर्यटन की दुनिया |
ऐसे हालातों में क्या
ख़तरे हैं पर्यटन के?
हम जानते हैं कि इस
आपदा ने पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है. होटल, टैक्सी, रेस्तरां, एविएशन, गाइड, टूर ऑपरेटर्स सब संकट में हैं. हम समझ सकते
हैं कि इस उद्योग का पटरी पर लौटना कितना ज़रूरी है. लेकिन किस कीमत पर? क्या इसके लिए अपनी या अपने प्रियजनों की
जिंदगी को दांव पर लगाया जा सकता है? हममें से कई लोगों को लगता है कि कोरोना हमारा
कुछ नहीं बिगाड़ सकता. ये दुनिया को हो सकता है मगर हमें नहीं. ऐसी खुशफ़हम दुनिया
की कमी नहीं. हममें से कई लोगों को अपनी अच्छी इम्युनिटी पर गुमान है. शायद
इसीलिए हम इन दिनों बहुत बेफिक्र होकर बसों, ट्रेनों, हवाई जहाजों की उड़ान भरने की योजना बना रहे हैं
या हममें से कुछ इन दिनों ये यात्राएं कर भी रहे हैं. इन दिनों जो लोग बिना मास्क
और गमछे के नज़र आ रहे हैं वे ऐसे ही बेफिक्र लोग हैं. लेकिन यहांं हम लोग एक चीज भूल रहे हैं.
कोराना भले ही हमें ज्यादा प्रभावित
न करे मगर हम लोग कोराना वायरस के कैरियर बन कर उन दूसरे लोगों की जिंदगी ख़तरे
में डाल सकते हैं जिनकी इम्युनिटी कमज़ोर है. ये कोई भी हो सकते हैं. हमारे घर में बुजुर्ग, बच्चे, हमारी
डोमेस्टिक हेल्प, या फिर हमारे संपर्क में आने वाला कोई भी शख़्स.
यदि इनमें से किसी एक की भी जिंदगी हमारी वजह से ख़तरे में पड़ती है तो क्या हम खुद को माफ़ कर पाएंगे? मैं, आप या हमारा
परिवार सिस्टम के लिए सिर्फ एक नंबर हैं, मगर हम
एक दूसरे के लिए पूरी दुनिया.
मुझे वाकई बड़ी हैरानी होती है उन लोगोंं को देखकर जो खुद तो लापरवाही कर ही रहे हैैं और साथ ही बाकी लोगों को भी ऐसी मूर्खताएं करने के लिए उकसा रहे हैं. अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखिए जो मास्क, फेस कवर या सैनिटाइज़़र का प्रयोग करने पर आपका मज़ाक उड़ाते हैं या यात्राओं पर चलने के लिए आपसे आग्रह कर रहे हैं. कोई कुछ भी कहे, आप अपने विवेक से निर्णय लीजिए. जब आप मुसीबत में होंगेे तो ये लोग आपकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे.
क्या कुछ दिन और
इंतजार नहीं कर सकते हम ?
क्यों नहीं? किसी वैश्विक महामारी के बीच यात्राएं हमारी
प्राथमिकता में शायद आखिरी पायदान पर होनी चाहिएं. अभी इस आपदा को देश में दस्तक दिए
जुम्मा-जुम्मा तीन महीने बीते हैं और हम अभी से बेचैन हो उठे दुनिया देखने के
लिए. दुनिया कहीं नहीं जा रही. यहीं रहेगी. ये नदी, ये पहाड़, ये
समंदर सब यहीं रहेंगे....बशर्ते इन्हें देखने के लिए हम और हमारा परिवार सुरक्षित
रहें. युद्ध में विपरीत
परिस्थितियों में यदि एक कदम पीछे भी हटना पड़े तो बुद्धिमानी होती है. ये वक़्त
भी कुछ ऐसा ही है. कोरोना से ‘आ बैल मुझे मार’ कह कर भिड़ने या उससे टकराने के लिए पर्यटन के
नाम पर तमाम ख़तरे उठाने की ऐसी कौन सी आफ़त आन पड़ी है कि हमें इन्हीं दिनों
बाहर निकलना है, अभी कोई जगह देखकर अपना रिकॉर्ड बनाना है. खुद को तीसमारखां साबित करना है. ये सब
तो हम छह महीने बाद भी कर सकते हैं. यकीनन उस वक़्त भी हो सकता है कि कोरोना पूरी
तरह ख़त्म न हो लेकिन उस वक़्त मामले बहुत कम और ढ़लान पर होंगे.
इस वक़्त जब डोमेस्टिक ट्रेवल के लिए हमें हज़ार बार सोचना पड़ रहा है तो देश के बाहर की घुमक्कड़ी के बारे में सोचना दूर की कौड़ी ही है. दुनिया के किसी भी देश को सुरक्षित नहीं माना जा सकता इस वक़्त, मामले कहीं कम तो कहीं ज़्यादा. WHO भी कोरोना की दूसरी लहर आने की बात कह चुका है. इसके मुताबिक इस वक़्त हम पहली लहर के बीच में हैं. आप स्वयं अंदाज़ा लगा सकते हैं कि स्थिति क्या है. हो सकता है अगले दो-तीन महीने में इंटरनेशनल फ्लाइट्स शुरू हो जाएं, ज़रूरतमंदों और मज़बूरी के मामलों में ऐसा ट्रेवल ज़रूरी भी होगा लेकिन सैर सपाटे के लिए ? मुझे बिल्कुल नहीं लगता.
क्या दूर-दराज
इलाकों और होम स्टे के भरोसे सुरक्षित है ट्रैवल?
बात फिर वहीं आ जाती
है. इस वक़्त देश का कौन सा ऐसा गांंव या शहर है जहां
कोई मामला न पहुंचा हो? या अगर है तो क्या हम गारंटी से कह सकते हैं कि
अगले कुछ दिनों में वहांं नहीं पहुंचेगा? बेशक ये
जगहें कोरोना से सुरक्षा की दृष्टि से शहरों की तुलना में कुछ बेहतर हैं. लेकिन
इनकी खूबी ही इनकी कमजोरी है. इन दूर-दराज के इलाकों में यदि संक्रमण फैलता है तो
पर्यटकों को समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना भी मुश्किल हो सकता है.
दूसरे आज
भी हम इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हो सकते कि देश के कौन से इलाके में कब सीमाएं
सील कर दी जाएं. हिमाचल या उत्तराखंड जैसे राज्यों में ऊंचे पहाड़ों पर स्वास्थ्य
सेवाओं की सीमाओं से हम सभी परिचित हैं. इन इलाकों तक पर्यटन के साथ भी संक्रमण के पहुुंचने का ख़तरा है. इस बात में कोई शक नहीं कि आने वाले समय में ऐसे दूर-दराज के इलाकों में पर्यटन करना बेहतर होगा. लेकिन मेरे हिसाब से अभी मुनासिब वक़्त नहीं.
 |
हिमाचल का एक दूर-दराज का गांव |
क्या होटल और हवाई
यात्राएं हैं सुरक्षित?
थम्ब रूल चैक
कीजिए. ‘बाहर हर शख़्स संक्रमित है.....’. तो साहब, पूरी तरह सुरक्षित
कुछ नहीं है. आजकल आप लोगों के इनबॉक्स में तमाम होटलों से ई-मेल भी आ रहे होंगे
कि फलां-फलां होटल में क्या-क्या एहतियात बरती जा रही हैं. किसी होटल में किसी विशेष कैमिकल से होटल का
सेनेटाइजेशन किया जा रहा है तो किसी में माइक्रोबायोलॉजिस्ट को ऑन बोर्ड लिया गया
है. लेकिन ये सब सुरक्षा की एक कवायद है....गारंटी नहीं. इस बात में कोई शक नहीं कि
लोगों को बिजनेस आदि के लिए बाहर निकलना होगा, यात्राएं करने की
मजबूरी होगी सो दूसरे शहरों में होटलों में ठहरना भी होगा.
मजबूरी और शौकिया
ट्रैवल के फर्क को हमें समझना होगा. यही बात हवाई सफ़र पर भी लागू होती है. इकॉनोमी
क्लास में चिपक कर बैठने वालेे तीन यात्रियों के बीच कैसे होगी सोशल डिस्टेंसिंग? माना कि थर्मल स्कैनर से सभी चेक करके बोर्ड किए
गए हैं. लेकिन एसिम्पटोमैटिक पेशेंट्स का क्या कीजिएगा...किसी के चेहरे पर तो
नहीं लिखा न. संभव है खुद ऐसे व्यक्ति को भी न मालूम हो. इसके अलावा, इस समय हवाई जहाजों से पहुंचने वाले यात्रियों को
7 से 14 दिन तक क्वारंटीन रहने की तमाम राज्यों द्वारा लागू की गई शर्तें भी जारी
हैं. ऐसे में क्या ख़ाक मज़ा आएगा पर्यटन का?
तो कब होगा सुरक्षित
बाहर निकलना
इस बारे में तो
निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता इस वक़्त. लेकिन एक बार ज़रा कोरोना का उफान
थम जाए....ज़रा मामलों की रफ्तार में कमी होनी शुरू हो, कोई दवा या वैक्सीन नज़र आने लगे, हमारा हैल्थकेयर सिस्टम ज़रा दम भर ले. तब
निकलेंगे न बाहर. ख़तरा होगा मगर अब से कम होगा. और ये स्थिति बहुत ज्यादा दूर
नहीं है. दुनिया के तमाम देशों में कोरोना के रुझान देखकर लगता है कि अगले तीन से
चार महीनों में स्थिति काफी बेहतर होगी.
मैं भी उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर
रहा हूँ जब अपना बैग पैक कर हवाई अड्डे की ओर निकलूंगा किसी लंबे सफ़र पर. जब बगल
वाले यात्री को ख़तरा नहीं समझूंगा, जब किसी शहर में
थोड़ा बेफिक्र होकर टहल सकूंगा, जब हर शख़्स को
ख़तरा नहीं समझूंगा, हर चीज पर शक नहीं करूँगा. तभी तो आनंद आएगा
यात्रा और पर्यटन में. अपने बेटे और पत्नी को तो शायद उसी दिन ले जा पाऊंगा जब
दुनिया से कोरोना का डिब्बा पूरी तरह गोल हो चुका होगा. क्योंकि उनके लिए मैं ही
उनकी दुनिया हूँ और मेरे लिए वही मेरा जहान हैं.
तब तक क्या हाथ पर
हाथ धरे बैठे रहें?
 |
सुंंदर नर्सरी |
नहीं. तब तक
यात्राओं पर पुस्तकें पढ़ें, अगर ब्लॉगर या
लेखक हैं तो जो अब तक नहीं लिख पाए, उसे लिख डालें, ऐसा वक़्त फिर कहाँ मिलेगा. वीडियो बनाने का
शौक रखते हैं तो पुरानी यात्राओं के वीडियो एडिट कर तैयार करें. हां, तफरी की बहुत ही ज्यादा तलब उठे तो पैदल, साइकिल, स्कूटर-बाइक उठाकर
अपने ही शहर की किसी ऐसी जगह को देख आएं जहांं सोशल डिस्टेंसिंग हो सकती हो.
ये जगहें दिल्ली के लोधी गार्डन, सफदरजंग का मक़बरा, सुंदर नर्सरी, कुतुब
कॉम्पलेक्स, लोधी कॉलोनी की स्ट्रीट आर्ट जैसी हो सकती हैं
जहांं आप थोड़ी ही सावधानी के साथ बेफिक्र होकर घूम
सकते हैं.
बंद एयरकंडीशंड बसों, टैक्सियों, हवाई जहाजों की यात्राओं से बचें. लोकल हो जाएं
कुछ दिनों के लिए, ग्लोबल होने के लिए उम्र पड़ी है. हमारे आस-पास इतना कुछ बिखरा हुआ जो अक्सर नज़रअंदाज होता रहा
है. तो जब तक दुनिया थोड़ा होश में नहीं आती है तब तक लोकल चीजों का सावधानी से
आनंद लिया जाए. बैकयार्ड टूरिज़्म :)
बड़ी जिम्मेदारी है
ट्रैवल इन्फ्लुएंसर्स पर
ये वक़्त ब्लॉगर्स
और ट्रैवल इन्फ्लुएंसर्स के लिए वाकई जिम्मेदारी भरा है. लोग आपकी ओर इस आशा और
विश्वास से देखते हैं कि आप उन्हें सही मार्गदर्शन देंगे. जल्द ही तमाम ट्रैवल
कंपनियां, टूरिज्म बोर्ड, होटल
या रिसॉर्ट ब्लॉगर्स और इन्फ्लुएंसर्स को आमंत्रित करना शुरू करेंगे कि आइये
हमारे यहांं, ठहरिए, आनंद लीजिए और फिर
दुनिया को बता दीजिए कि सब सुरक्षित है. ताकि उनका बिजनेस रफ़्तार पकड़ सके.
यहां
सोच-समझकर आगे बढ़ना होगा. हमें घूमता-फिरता देख हज़ारों लोग भी अपना मन बनाएंगे. सो इस वक़्त पूरी ईमानदारी से सच को सामने रखने की ज़रूरत होगी. खुशी की बात है कि इन दिनों तमाम ट्रैवल राइटर्स इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैैं. ऐसी ही एक ट्रैवल राइटर मंजुलिका प्रमोद इन दिनों अपने आर्ट वर्क से लोगों को धैर्य रखने का संदेश दे रही हैं.
मुझे इस बात में कोई
संदेह नहीं कि ये बुरा वक़्त जल्दी ही ख़त्म हो जाएगा. हमारी और आपकी यात्राओं, मेले-ठेलों की दुनिया फिर से गुलज़ार होगी. ऐसा ख़ूबसूरत वक़्त बहुत जल्द आएगा. हम फिर पहले की तरह आज़ाद घूम सकेंगे. तब तक धैर्य रखिए, इम्युनिटी को बढ़ाते
रहिए, जिम्मेदारी से आगे बढि़ए, अपनी और
अपने परिवार की जिंदगी का ख़्याल कीजिए क्योंकि जान है तभी जहान है! हम और हमारा परिवार सुरक्षित रहेगा तो खूब घूमेंगे, खूब
सैर करेंगे.....बस कुछ वक़्त और.
नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी राय भी ज़रूर बताएं. आप सभी स्वस्थ और प्रसन्न रहें, इस आपदा के गुज़रने के बाद खूब दुनिया देखें. अशेष शुभकामनाओं सहित !
- सौरभ आर्य
--------------------
सौरभ आर्य, को यात्राएं बहुत प्रिय हैं क्योंकि यात्राएं ईश्वर की सबसे अनुपम कृति मनुष्य और इस खूबसूरत क़ायनात को समझने का सबसे बेहतर अवसर उपलब्ध कराती हैं. अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. और एम. फिल. की शिक्षा के साथ-साथ कॉलेज और यूनिवर्सिटी के दिनों से पत्रकारिता और लेखन का शौक रखने वाले सौरभ देश के अधिकांश हिस्सों की यात्राएं कर चुके हैं. इन दिनों अपने ब्लॉग www.yayavaree.com के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और पोर्टल के लिए नियमित रूप से लिख रहे हैं.
© इस लेख को अथवा इसके किसी भी अंश का बिना अनुमति के पुन: प्रकाशन कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।
यहां भी आपका स्वागत है:
facebook: www.facebook.com/arya.translator
#travel #pandemic #travelinthetimesofcorona #safetravel #homestays #india