बहुत अनूूूूठा है जापान का शिंतो धर्म
Shintoism in Japan
दोस्तो, जापान से दूसरी चिट्ठी आ गई है। जापान की पहली चिट्ठी वाली पोस्ट के बाद आप में से कुछ पाठक मित्रों ने जापान से जुड़े तमाम विषयों के बीच
जापान के शिंतो धर्म पर चिट्ठी पढ़ने की ख्वाहिश ज़ाहिर की थी। सो इस बार अपनी इस
चिट्ठी के ज़रिए रुचिरा शुक्ला हमें जापान के बेहद अनूठे शिंतो धर्म के रहस्यों को
समझा रही हैं। मेरे लिए भी अभी तक जापान का ये धर्म एक पहेली ही था। बहुत से लोग इसे
बौद्ध धर्म से जुड़ी कोई शाखा मात्र ही समझते हैं, मग़र ऐसा है नहीं। तो आइये, आज जापान की दूसरी चिट्ठी में दुनिया के
इस बेहद अनूठे शिंतो धर्म की नब्ज़ टटोल कर देखें।
शिंतो एक धर्म नहीं बल्कि जीवन शैली है
जापान में बौद्ध धर्म के आने से बहुत पहले, जापानी लोगों का अपना स्वदेशी धर्म था जिसे हम शिंतोवाद या शिंतो धर्म (Shintoism)
के नाम से जानते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह धर्म लगभग 2000 वर्ष पुराना है जिसकी
जड़ें जापानी सभ्यता की शुरूआत में पाई जाती हैं। शिंतो धर्म न तो एक ईश्वर पर
आधारित है और न ही इसका कोई लिखित ग्रंथ या औपचारिक सिद्धांत है। शिंतो धर्म की
व्याख्या करने का कोई सरल तरीका नहीं है। मैं जैसे-जैसे जापान में ज्यादा समय गुज़ार रही हूं और जितना अधिक मैं इसकी संस्कृति का अध्ययन कर रही हूं, मुझे एहसास होने लगा है कि शिंतो धर्म वास्तव में एक धर्म
नहीं है, बल्कि एक विचार प्रक्रिया है, जीवन का एक तरीका है।
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मेजी श्राइन |
शिन्तो शब्द चीनी भाषा के शेन + ताओ (शेन ताओ ही बिगड़ कर शिंतो बना)
से आया है जिसका अर्थ है "देवताओं का मार्ग" और मुझे लगता है कि यह
शब्द ही इस अवधारणा की व्याख्या करता है। एक दिलचस्प बात ये है कि इस धर्म की
परंपराओं को नियंत्रित करने वाला कोई एक मठ, संगठन या धर्मगुरू आदि नहीं है। शिंतो धर्म
वास्तव में बहुत से देवी-देवताओं में विश्वास रखता है।
प्रकृति से गहरा नाता है शिंतो का
शिंतो धर्म का प्रकृति की पूजा से गहरा संबंध है। जापानी लोग प्रकृति की शक्ति के प्रति अपार श्रद्धा रखते
हैं और इसकी प्रचुरता के प्रति कृतज्ञ पाए जाते हैं। वे प्रकृति पर विजय प्राप्त करने में नहीं बल्कि उसके साथ सद्भाव से रहने में विश्वास रखते हैं। शिंतोवाद का मानना है कि कामी (Kami) या ईश्वर पहाड़ों, पत्थरों, पेड़ों, भूमि, समुद्र और हवा में पाया जाता है। सामान्य तौर पर कामी का अर्थ भगवान के रूप में समझा जाता है, लेकिन वास्तव में यह प्रकृति की चेतना या मूल तत्व को दर्शाता है। कामी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं – जैसे की दुनिया में मानव स्वभाव भी सकारात्मक और नकारात्मक होते हैं।
देवताओं की तहर क्यों पूजे जाते हैं जापान के सम्राट?
सबसे महत्वपूर्ण कामी आमातेरासु (Amaterasu) अर्थात सूर्य की देवी है। वह उगते हुए सूर्य का प्रतीक हैं और माना जाता है कि उन्होंने
ही जापान की रचना की है। जापान का शाही परिवार इस देवी का वंशज होने का दावा करता
है और यही उन्हें जापान पर शासन करने का दैवीय अधिकार देता है। यहां की मिथकीय कथाओं के अनुसार
जापान के पहले सम्राट जिन्मू (Jinmu-tennō) इसी
देवी के वंशज थे और बाद के सभी सम्राट इसी वंश से थे क्योंकि ये माना गया की सम्राट आमातेरासु का वंशज ही होना चाहिए। इसीलिए बाद में जापान के सम्राटों को भी कामी की तरह पूजा गया।
मेईजी शासन के दौरान
(1868-1912) जापान के शासकों ने शिंतो से बौद्ध धर्म के प्रभाव को समाप्त कर दिया
और शिंतो जापान का राजधर्म बन गया। इसका प्रयोग उन्होंने राष्ट्रवाद की भावना और
राजा की भक्ति को बढ़ावा देने के लिए किया। शासन ये भी चाहता था कि जापान के नागरिकों
पर ईसाई धर्म और पश्चिम के प्रगतिशील विचारों को प्रभाव न पड़े। इसलिए बाकायदा
जापान के संविधान में ही कुछ ऐसे प्रावधान कर दिए गए जिनसे जापान के सम्राट की प्रतिष्ठा कामी (देवता) की तरह स्थापित हो जाए। तीर्थ स्थल अब सरकारी
प्रभाव में थे और जापान के सम्राट को कामी जैसे ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया
गया।
20 वीं शताब्दी की शुरुआत में जापानी साम्राज्य के फलने-फूलने के साथ ही
शिंतो धर्म अन्य पूर्वी एशियाई देशों में भी पहुंचा। लेकिन दूसरे विश्व युद्ध ने
हालातों को बदल कर रख दिया। जापान को इस युद्ध में करारी हार का सामना करना पड़ा और
शिंतो औपचारिक रूप से सरकारी प्रभाव से मुक्त हो गया।
जीवन मूल्यों पर ज्यादा ज़ोर देता है शिंतो धर्म
चूँकि शिंतोवाद एक स्थापित धर्म होने के बजाय जीवन का तरीका अधिक है, इसलिए जापान में छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म की शुरुआत होने के बाद भी, ये दोनों धर्म शांति से एक दूसरे के साथ रहने में समर्थ थे। वास्तव में अब कुछ कामियों (Kamis) को बुद्ध की ही अभिव्यक्ति माना जाता है।
असल में ये बात मुझे सबसे
ज्यादा आकर्षित करती है कि जापानी लोग वास्तव में किस तरह इन दोनों धर्मों को
अपने जीवन में आत्मसात कर पाते हैं? यदि आप जापानियों से पूछेंगे कि वे किस धर्म के हैं, तो वे शायद बौद्ध धर्म और शिंतोवाद दोनों कहेंगे। जापानी विशेष रूप से धार्मिक लोग नहीं हैं, वे ईश्वर पर जोर देने के बजाय ईमानदारी, आपसी सौहार्द, कड़ी मेहनत, राष्ट्रीय गौरव और सादगी जैसे मूल्यों पर अधिक जोर देते हैं। ये सब शिंतोवाद से ही आते हैं।
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मेजी श्राइन में एक शादी समारोह के दौरान एक दुल्हन |
चूँकि शिंतोवाद जीवन और सद्भाव के बारे में है, इसलिए जिन आयोजनों का संबंध जीवन से है, उन्हें शिंतो परंपरा के अनुसार मनाया जाता है और
जिन आयोजनों का संबंध मृत्यु और मृत्यु के बाद जीवन से है, उन्हें बौद्ध परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इसलिए, लगभग सभी जापानी विवाह शिंतो परंपरा के अनुसार होते हैं, जबकि मृत्यु समारोह बौद्ध परंपराओं के हिसाब से
होते हैं।
शिंतोवाद में प्रकृति पर
जोर दिए जाने के कारण, हमें शिंतो तीर्थ स्थल (Shrines) या जिंजा (Jinja) आदि हमेशा खूबसूरत
प्राकृतिक परिवेश में देखने को मिलते हैं। टोक्यो के मुख्य शिंतो तीर्थ स्थलों में से एक - मेइजी (Meiji) श्राइन एक शहरी जंगल के बीच में है, लेकिन फिर भी, यह घने वन और एक बहुत ही सुंदर जापानी उद्यान से घिरा हुआ है।
बौद्ध मंदिरों और शिंतो तीर्थ स्थलों में क्या है खास अंतर ?
लोग आमतौर पर बौद्ध मंदिरों और शिंतों तीर्थ स्थलों के बीच भ्रमित होते हैं। दोनों की विशेषताएं एक जैसी हैं। मैं आपको उन दो खास चीजों के बारे में बताती हूं जो शिन्तो तीर्थों को बौद्ध मंदिरों से अलग करती हैं – और ये हैं तोरी (Tori) और शीमेनावा (Shimenawa)।
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मेजी श्राइन की विशालकाय तोरी
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तोरी विशाल द्वार होते हैं, और अब ये जापान का प्रतीक बन गए हैं। वे मंदिरों के प्रवेश द्वार हैं और आमतौर पर लाल रंग के होते हैं। माना जाता है कि तोरी आध्यात्मिक दुनिया को भौतिक और सांसारिक दुनिया से अलग करता है। जैसे ही आप तोरी के नीचे से गुज़रते हैं माना जाता है कि आप देवताओं की उपस्थिती में हैं। एक तरह से आप सांसरिक दुनिया छोड़कर आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश करते हैं। मेजी श्राइन की तोरी जापान की सबसे बड़ी तोरियों (Tories) में गिनी जाती है और ये देवदार की लकड़ी से बनी है।

शिमेनावा शुद्धता और पवित्रता को दिखाने के लिए किसी वस्तु के चारों ओर बंधी एक रस्सी है। ये वस्तुएं आमतौर पर प्रकृति से
ही जुड़ी हुई होती हैं जैसे कोई पत्थर या कोई पेड़। नीचे की तस्वीर में मेजी श्राइन में कपूर के दो पेड़ोंं को शीमेनवा से बंधे हुए देखा जा सकता है। पेड़ संग को प्रदर्शित करते हैं और लोग यहां अपने संबंधों की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना करने के लिए भारी संख्या में आतेे हैं। कपूर के पेडों के कारण, मेजी श्राइन शादियों के लिए लोगों की पसंदीदा
जगह है। मुझे भी यहां एक दूल्हे और दुल्हन को देखने का मौक़ा मिला था।
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हिए श्राइन में तोरी जहां एक नहीं बल्कि कई द्वार हैं |
बहुत खास हैं शिंतो के उत्सव
शिंतो का एक महत्वपूर्ण पक्ष इसके मत्सुरी या उत्सव भी हैं। लगभग हर श्राइन अलग-अलग उत्सवों का आयोजन करता है जिनमें मिकोशी या पालकी में कामी की यात्रा निकाली जाती है। कुछ वैसे ही जैसे भारत में जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा निकलती है। मत्सुरी में न केवल शांत और गंभीर किस्म के अनुष्ठान होते हैं बल्कि संगीत और नृत्य के साथ उत्सव भी मनाया जाता है। मत्सुरी के जुलूस बेहद रंगीन और देखने लायक होते हैं। क्योतो का गिओन उत्सव सबसे बड़ा शिंतो उत्सव है। असल में इसकी शुरुआत महामारी आदि से बचाने के लिए देवताओं को खुश करने के लिए की गई थी। क्योतो की सड़कों पर बड़े धूम-धाम से इसके जुलूस निकलते हैं जो बस देखते ही बनते हैं।
शिंतोवाद अपनाए जाने के लिए एक सुंदर मार्ग है।यह हमें खुद के साथ, दूसरों के साथ और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना सिखाता है।मुझे यह आजकल के अशांत समय में बहुत प्रासंगिक लगता है।
इस श्रंखला में रुचिरा जी की अँग्रेजी चिट्ठियों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। आपको कैसी लगी ये दूसरी चिट्ठी, हमें ज़रूर बताइएगा. यदि आप जापान के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में लिख दीजिए...
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रुचिरा शुक्ला |
रुचिरा शुक्ला जापानी भाषा और जापानी संस्कृति की विशेषज्ञ हैं. वे इन दिनों टोकियो में रह रही हैं और आईटी क्षेत्र में काम कर रही हैं. रुचिरा अपना समय यात्राओं, जापान के विभिन्न पहलुओं को देखने-समझने और उनके बारे में लिखने में बिता रही हैं. वे जापान के बारे में अपने ब्लॉग Tall Girl in Japan और अपने फेसबुक पेेज और इंस्टाग्राम पर लिख रही हैं.
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